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पत्नी अगर शेयर मार्केट में लेती है कर्ज, तो पति को होगा चुकाना... सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

Supreme Court: एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक पति ओरल एग्रीमेंट के आधार पर अपनी पत्नी के शेयर बाजार कर्ज के लिए संयुक्त रूप से और अलग-अलग जिम्मेदार होंगे.

पत्नी अगर शेयर मार्केट में लेती है कर्ज, तो पति को होगा चुकाना... सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
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Supreme Court
सचिन सिंह
Edited By: सचिन सिंह

Published on: 12 Feb 2025 3:36 PM

Supreme Court: अगर पत्नी शेयर बाजार में कर्ज लेती है, तो पति इसे चुकाने के लिए जिम्मेदारी हो सकता है. ऐसा एक फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है. जिसमें कहा गया कि अगर पति-पत्नी के बीच ओरल एग्रीमेंट हो तो पति की जिम्मेदारी है कि वह पत्नी का कर्ज चुकाए. ये मामला शेयर मार्केट से जुड़ा हुआ है.

मामला सबसे पहले आर्बिट्रल ट्राइब्यूनल में पहुंचा, तो कोर्ट ने दोनों को कर्जदार बताया. तब पति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पति को मौखिक समझौते के आधार पर अपनी पत्नी के शेयर बाजार कर्ज के लिए संयुक्त रूप से और अलग-अलग रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है.

क्या पत्नी के शेयर बाजार में हुए नुकसान के लिए पति को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

जस्टिस पीएस नरसिम्हा और संदीप मेहता की बेंच के फैसले के मुताबिक, ऐसे मामलों में जहां एक पंजीकृत स्टॉक ब्रोकर अपने ट्रेडिंग खाते में घाटे में चल रही महिला के खिलाफ मध्यस्थता शुरू करता है. महिला के पति को मध्यस्थता में पक्ष बनाया जा सकता है. सरल शब्दों में ऐसी परिस्थितियों में मध्यस्थ न्यायाधिकरण लागू कानून के तहत महिला का पति उसका कर्ज चुकाने के लिए जिम्मेदार होगा.

क्या है पूरा मामला?

महिला के ट्रेडिंग खाते में डेबिट बैलेंस को लेकर ऐसा ही विवाद हुआ, जिसके लिए मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने महिला और उसके पति दोनों को संयुक्त रूप से और अलग-अलग रूप से उत्तरदायी ठहराया. 1999 में पति और पत्नी ने अपीलकर्ता-स्टॉक ब्रोकर के साथ अलग-अलग ट्रेडिंग खाते खोले थे.

हालांकि, अपीलकर्ता ने दावा किया कि दोनों ने संयुक्त रूप से उन्हें संचालित करने और किसी भी देयता को शेयर करने पर सहमति व्यक्त की. लगभग दो साल बाद पत्नी को अपने ट्रेडिंग खाते में काफी नुकसान हुआ, जो पति के ट्रेडिंग खाते में लाभ के बिल्कुल विपरीत था.

पति से मौखिक निर्देश मिलने पर अपीलकर्ता ने घाटे की भरपाई के लिए अपने खाते से पत्नी के खाते में पैसे ट्रांसफर कर दिए. लेकिन फिर बाजार में गिरावट आई जिससे घाटा कई गुना बढ़ गया, जिससे अपीलकर्ता के पास दोनों प्रतिवादियों से वसूली की मांग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा. तब पति अपनी बात से मुकर गया और मामला कोर्ट तक पहुंच गया.

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