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कंगना जी, 99% का जादुई आंकड़ा कहां से लाईं? क्या हैं असली आंकड़े और मर्दों के दर्द की हकीकत

NCRB के अनुसार 2021 में 70% सुसाइड पुरुषों ने किए, बाल यौन उत्पीड़न में 52% शिकार लड़के बने, और झूठे दहेज केसों का आंकड़ा 53% से ज्यादा. 'कन्वेंशन ऑफ मैस्कुलिनिटी' के चलते पुरुषों की मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं, लेकिन उनकी समस्याओं पर चर्चा करना अब भी 'टैबू' है.

कंगना जी, 99% का जादुई आंकड़ा कहां से लाईं? क्या हैं असली आंकड़े और मर्दों के दर्द की हकीकत
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डिअर कंगना जी,

आपका बयान आया कि "99% मर्द ही गलत होते हैं." शायद आप अपनी अगली फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने में व्यस्त थीं, या संसद में भाषण की तैयारी चल रही हो, तभी आंकड़ों पर ध्यान देना भूल गईं. पर कोई बात नहीं, हम आपकी मदद कर देते हैं.

देखिए, हमें आपकी बेबाकी पसंद है. आप हर मुद्दे पर खुलकर बोलती हैं—चाहे वो बॉलीवुड की गुटबाजी हो, या पॉलिटिक्स. लेकिन ये जो आपने 99% का जादुई नंबर निकाल दिया है, न, ये थोड़ा ज़्यादा हो गया. अगर आपने ये बयान थोड़ा सोच-समझकर दिया होता, तो शायद हम पुरुषों की समस्याओं पर भी चर्चा कर पाते.

मर्दों का दर्द: आंकड़ों की जुबानी

आत्महत्या के आंकड़े

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2021 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 70% पुरुष थे.

30-45 आयु वर्ग के पुरुषों में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है.

शादीशुदा पुरुषों की संख्या आत्महत्या करने वालों में काफी बड़ी है.

क्या आपने कभी सोचा कि 'मर्द को दर्द नहीं होता' जैसे जुमले इन आंकड़ों को और भी खराब बनाते हैं?

पुरुष भी बनते हैं रेप और यौन शोषण के शिकार

जी हां, यह सुनकर शायद आपको अजीब लगे, लेकिन पुरुष भी रेप और यौन शोषण के शिकार होते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार: मौजूदा भारतीय दंड संहिता (IPC) में पुरुषों के लिए रेप का कोई स्पष्ट कानून नहीं है.

सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन (SIFF): झूठे यौन शोषण के आरोपों के कारण हजारों पुरुष मानसिक, सामाजिक, और आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं.

बच्चों पर यौन शोषण: एक गंभीर समस्या

महिला और बाल विकास मंत्रालय की 2007 की रिपोर्ट के अनुसार:

53.22% भारतीय बच्चे किसी न किसी प्रकार के यौन शोषण का शिकार हुए हैं. इन बच्चों में 52.94% लड़के शामिल हैं.

क्या यह आंकड़े आपकी नज़र में आए? अगर आए होते, तो शायद आप समझ पातीं कि लड़कों और पुरुषों को कितने गंभीर संकटों का सामना करना पड़ता है.

सिस्टम और समाज का नजरिया

पुलिस का रवैया

जब पुरुष यौन शोषण या घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराने जाते हैं, तो पुलिस अक्सर उनका मजाक उड़ाती है. शिकायतें दर्ज नहीं की जातीं. पुरुषों को "कमजोर" या 'झूठा' कहकर भगा दिया जाता है.

कानूनी सुरक्षा की कमी

भारत में यौन शोषण और घरेलू हिंसा से संबंधित कानून मुख्य रूप से महिलाओं पर केंद्रित हैं.

POCSO एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) ने लड़कों को बचाने की कोशिश की है, लेकिन वयस्क पुरुषों के लिए ऐसी कोई व्यापक सुरक्षा मौजूद नहीं.

शादी: एक आर्थिक संकट?

आपने सही कहा कि 'करोड़ों रुपये की मांग की जा रही थी.' लेकिन यह समस्या सिर्फ अतुल सुभाष के साथ नहीं है.

सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन (SIFF) की रिपोर्ट कहती है कि झूठे दहेज और रेप के मामलों में 80% से ज्यादा केस खारिज हो जाते हैं.

नेशनल जुडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG): 2018-2022 के बीच 53% दहेज के केस झूठे साबित हुए.

'कन्वेंशन ऑफ मैस्कुलिनिटी' का बोझ

हमारा समाज मर्दों से उम्मीद करता है कि वे रोएं नहीं, शिकायत न करें, और हर परिस्थिति में मजबूत बने रहें.

मेंटल हेल्थ फाउंडेशन (यूके): 56% पुरुष अपनी समस्याओं पर बात नहीं करते, क्योंकि उन्हें 'कमजोर पुकारे जाने' का डर होता है.

भारत में यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है, क्योंकि यहां 'मर्द को दर्द नहीं होता' जैसे डायलॉग्स रियलिटी बन चुके हैं.

क्या आप जानती हैं कि पुरुषों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं महिलाओं से कहीं ज्यादा मुश्किल हैं?

आपके बयान की जिम्मेदारी

आपके पास एक बड़ा मंच है. लाखों लोग आपको सुनते हैं. लेकिन जब आप एकतरफा बयान देती हैं, तो आप उन पुरुषों की समस्याओं को अनदेखा कर देती हैं जो असली पीड़ित हैं. महिला सशक्तिकरण और पुरुषों की समस्याओं के बीच संतुलन बनाना जरूरी है. समाज को ऐसा बनाना होगा जहां महिलाओं और पुरुषों, दोनों की समस्याओं को समझा जाए. तो अगली बार जब आप किसी मुद्दे पर बयान दें, तो कृपया थोड़ा रिसर्च कर लें. आंकड़े और तथ्यों को शामिल करने से आपका बयान और मजबूत बनेगा.

सादर,

एक जागरूक नागरिक

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