Begin typing your search...

दो राज्यों में कैसे कप सिरप बन गया काल? दो साल से कम उम्र के बच्चों को न पिलाएं, बच्चों की मौत पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने क्या कहा

मध्य प्रदेश और राजस्थान में हाल ही में बच्चों की मौतों के मामले सामने आए, जिनमें खांसी की दवाईयों का सेवन होने की संभावना बताई गई. इस पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जांच रिपोर्ट साझा की है. केंद्रीय टीम ने इन राज्यों से खांसी की दवाईयों के सैंपल इकट्ठा किए और उनकी जांच की. परीक्षण में किसी भी सैंपल में डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) या एथिलीन ग्लाइकोल (EG) नहीं पाया गया, जो गंभीर किडनी चोट का कारण बन सकते हैं.

दो राज्यों में कैसे कप सिरप बन गया काल?  दो साल से कम उम्र के बच्चों को न पिलाएं,  बच्चों की मौत पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने क्या कहा
X
( Image Source:  Social Media )
सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Updated on: 3 Oct 2025 6:55 PM IST

मध्य प्रदेश और राजस्थान में हाल ही में बच्चों की मौतों के मामले सामने आए, जिनमें खांसी की दवाईयों का सेवन होने की संभावना बताई गई. इस पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जांच रिपोर्ट साझा की है. केंद्रीय टीम ने इन राज्यों से खांसी की दवाईयों के सैंपल इकट्ठा किए और उनकी जांच की. परीक्षण में किसी भी सैंपल में डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) या एथिलीन ग्लाइकोल (EG) नहीं पाया गया, जो गंभीर किडनी चोट का कारण बन सकते हैं.

सरकार ने स्पष्ट किया कि दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खांसी और सर्दी की दवाएं नहीं दी जानी चाहिए. आम तौर पर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए इन दवाओं की अनुशंसा नहीं की जाती. किसी भी दवा का उपयोग करते समय सावधानीपूर्वक नैदानिक मूल्यांकन, कड़ी निगरानी, सही खुराक, न्यूनतम प्रभावी अवधि और विभिन्न दवाओं के संयोजन से बचना आवश्यक है. इसके अलावा, जनता को डॉक्टरों द्वारा दी जाने वाली दवाओं का पालन सही तरीके से करने के प्रति भी जागरूक किया जा सकता है.

क्या था मामला

राजस्थान के सीकर जिले में मुफ्त दवा योजना के तहत दी गई खांसी की सिरप पीने के बाद एक 5 साल के बच्चे की मौत हो गई, जबकि भरतपुर में 3 साल का बच्चा गंभीर रूप से बीमार हुआ. मध्य प्रदेश में भी इसी तरह के मामलों की सूचना मिली. प्रारंभिक रिपोर्ट में दवा की गुणवत्ता पर संदेह जताया गया. दोनों राज्यों में संदिग्ध सिरप के बैचों पर तत्काल रोक लगा दी गई.

केंद्रीय टीम की जांच और निष्कर्ष

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, "जांच में किसी भी सैंपल में डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) या एथिलीन ग्लाइकोल (EG) नहीं पाया गया, जो गंभीर किडनी चोट का कारण बन सकते हैं." NCDC, NIV, CDSCO और राज्य स्वास्थ्य अधिकारियों की टीम ने विभिन्न खांसी की दवाईयों के सैंपल इकट्ठा किए. मध्य प्रदेश SFDA ने भी तीन नमूनों की स्वतंत्र जांच की और DEG/EG की अनुपस्थिति की पुष्टि की.

इसके अलावा, NIV पुणे द्वारा रक्त और CSF सैंपलों की जांच की गई, जिसमें एक मामले में लेप्टोस्पायरोसिस पाया गया. मंत्रालय ने यह भी बताया कि जल, कीटजन्य वाहक और श्वसन नमूनों की जांच NEERI, NIV पुणे और अन्य प्रयोगशालाओं द्वारा जारी है.

नौ बच्चों की मौत में से कम से कम पांच बच्चों का इतिहास यह था कि उन्होंने कोल्डरेफ (Coldref) सिरप लिया था, जबकि एक बच्चे ने नेक्स्ट्रो (Nextro) सिरप लिया था. निजी डॉक्टरों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी वायरल मरीज का निजी क्लिनिक में इलाज न किया जाए और उन्हें सीधे सिविल अस्पताल भेजा जाए. इन दुखद घटनाओं के बाद डेक्स्ट्रोमेथोर्फ़न हाइड्रोब्रोमाइड सिरप की बैचों की तुरंत जांच शुरू की गई और पूरे राज्य में इनके वितरण पर रोक लगा दी गई. फिलहाल 1,420 बच्चों की सूची तैयार की गई है, जिन्हें सर्दी, बुखार और फ्लू जैसी लक्षणों के कारण नज़दीकी निगरानी में रखा गया है.

हालांकि, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि जिन खांसी की दवाओं पर बच्चों की मौत का आरोप था, उनके सैंपलों में कोई संदूषक पदार्थ नहीं पाया गया. मंत्रालय ने कहा कि जांच रिपोर्ट में यह पुष्टि हुई है कि इन सिरप में डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) या एथिलीन ग्लाइकोल (EG) नहीं था – ये रसायन गंभीर किडनी को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

बच्चों के लिए दवाईयों का सावधानीपूर्वक उपयोग

राजस्थान में दो बच्चों की मौत के संदर्भ में मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि संदर्भित दवा में प्रोपलीन ग्लाइकोल नहीं पाया गया. यह दवा डेक्स्ट्रोमेथोर्फ़न आधारित है और बच्चों के लिए अनुशंसित नहीं है. केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (DGHS) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बच्चों में खांसी की दवाईयों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए एडवाइजरी जारी की है.

MP news
अगला लेख