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दिल्ली की सड़कों से कुत्तों का सफाया! सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने में जुटी रेखा सरकार, मेनका गांधी ने क्यों उठाए सवाल?

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR से तीन लाख आवारा कुत्तों को हटाने का आदेश दिया है. आदेश का उल्लंघन करने वालों पर अवमानना की कार्यवाही होगी. मेनका गांधी ने इसे अव्यवहारिक बताते हुए पारिस्थितिक संकट का अलार्म बजाया. प्रशासन फेज़वाइज एक्शन प्लान बना रहा है, जबकि पशु प्रेमी इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

दिल्ली की सड़कों से कुत्तों का सफाया! सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने में जुटी रेखा सरकार, मेनका गांधी ने क्यों उठाए सवाल?
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( Image Source:  sora ai )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 12 Aug 2025 9:50 AM IST

सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश ने दिल्ली में अचानक हलचल मचा दी है. कोर्ट ने साफ कहा है कि दिल्ली और एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को तुरंत पकड़कर अन्य स्थानों या शेल्टर होम में भेजा जाए. आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया कि अगर कोई व्यक्ति या संगठन इस प्रक्रिया में बाधा डालता है तो उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही होगी. इस आदेश के बाद प्रशासनिक हलकों में भी अफरा-तफरी का माहौल है.

दिल्ली नगर निगम (MCD) और पशुपालन विभाग के अनुसार, राजधानी में करीब तीन लाख आवारा कुत्ते मौजूद हैं. बीते पांच साल में कुत्तों के काटने की घटनाओं में लगातार इजाफा हुआ है. 2023 में ऐसे मामलों की संख्या 55,000 से ज्यादा रही. कई रिहायशी इलाकों में लोग सुबह-शाम टहलने तक से डरने लगे हैं. हालांकि, पशु अधिकार कार्यकर्ता मानते हैं कि इन घटनाओं के पीछे सिर्फ आक्रामक कुत्ते नहीं, बल्कि मानवीय लापरवाही और कचरे की समस्या भी जिम्मेदार है.

एक्शन प्लान पर मंथन

दिल्ली सरकार ने आदेश के बाद तुरंत उच्च स्तरीय बैठक बुलाने का फैसला लिया है. बैठक में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, मंत्री कपिल मिश्रा, MCD के आयुक्त, पशुपालन विभाग के अधिकारी और विधि विशेषज्ञ मौजूद रहेंगे. सूत्रों का कहना है कि सरकार एक “फेज़वाइज एक्शन प्लान” बनाएगी. पहले चरण में भीड़भाड़ वाले इलाकों, स्कूलों, पार्कों और अस्पतालों के पास से कुत्तों को पकड़ा जाएगा. दूसरे चरण में कॉलोनियों और बाजारों पर फोकस होगा.

मेनका गांधी का तीखा विरोध

पूर्व केंद्रीय मंत्री और मशहूर पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने इस आदेश को अव्यवहारिक बताया है. उनके मुताबिक, तीन लाख कुत्तों को हटाने में 15,000 करोड़ रुपये से कम खर्च नहीं होगा. साथ ही, रोजाना इनके खाने-पीने पर करोड़ों रुपये खर्च होंगे. उन्होंने चेतावनी दी है कि कुत्तों के हटने के बाद दिल्ली में बंदरों और चूहों की समस्या तेजी से बढ़ सकती है, जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है.

पारिस्थितिकी संतुलन पर सवाल

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि शहरी पारिस्थितिकी में आवारा कुत्तों की भी एक भूमिका होती है. ये कई बार कचरा साफ करने और चूहों की आबादी नियंत्रित करने में मदद करते हैं. अचानक इनकी कमी से संतुलन बिगड़ सकता है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि समस्या का समाधान “कैच एंड रिलीज़” मॉडल से किया जाए, यानी कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद उसी इलाके में छोड़ दिया जाए.

इंडिया गेट पर प्रदर्शन

कोर्ट के आदेश के खिलाफ इंडिया गेट पर दर्जनों पशु प्रेमी और फीडर्स एकत्र हुए. उन्होंने प्लेकार्ड लेकर नारेबाजी की और कहा कि यह आदेश न सिर्फ अमानवीय है बल्कि एबीसी (Animal Birth Control) नियमों का भी उल्लंघन है. प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि सरकार को इस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए.

फर्जी रिपोर्ट का मामला

मेनका गांधी का आरोप है कि यह आदेश एक फर्जी रिपोर्ट के आधार पर दिया गया है, जिसमें कहा गया कि एक बच्चे की मौत कुत्ते के हमले से हुई. जबकि असल में, वह मौत मेनिनजाइटिस से हुई थी. उन्होंने इस मामले की जांच की मांग की है और कहा है कि अगर आधार गलत है तो आदेश भी पुनर्विचार योग्य है.

आर्थिक बोझ और प्रशासनिक चुनौती

नगर निगम अधिकारियों के मुताबिक, इतने बड़े पैमाने पर कुत्तों को पकड़ना, ट्रांसपोर्ट करना और शेल्टर में रखना एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती होगी. न सिर्फ संसाधनों की कमी है बल्कि प्रशिक्षित डॉग कैचर्स की संख्या भी सीमित है. साथ ही, शेल्टर की क्षमता अभी महज 10,000 कुत्तों तक ही है.

संभावित विकल्प और आगे की राह

कई विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को नसबंदी और टीकाकरण की गति कई गुना बढ़ानी चाहिए. इसके साथ ही कचरा प्रबंधन को मजबूत करने से भी कुत्तों की आक्रामकता और संख्या दोनों नियंत्रित हो सकती हैं. वहीं, जनजागरूकता अभियान चलाकर लोगों को भी जिम्मेदार पालतू मालिक बनने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.

आदेश और मानवीय दृष्टिकोण के बीच संतुलन

दिल्ली में आवारा कुत्तों की समस्या गंभीर है, लेकिन समाधान ऐसा होना चाहिए जो मानवीय भी हो और प्रभावी भी. सुप्रीम कोर्ट का आदेश तत्काल राहत तो दिला सकता है, लेकिन अगर इसके दीर्घकालिक नतीजों और पारिस्थितिक असर को नजरअंदाज किया गया तो आने वाले समय में यह नई समस्याओं को जन्म दे सकता है.

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