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आरोपी एक तो परिवार को सजा क्यों? बुलडोज़र एक्शन पर SC सख्त, कहा- गलती पर नपेंगे अधिकारी

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि किसी का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता है कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है. हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते.

आरोपी एक तो परिवार को सजा क्यों? बुलडोज़र एक्शन पर SC सख्त, कहा- गलती पर नपेंगे अधिकारी
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सागर द्विवेदी
Edited By: सागर द्विवेदी

Updated on: 13 Nov 2024 4:21 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन मामले पर अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने कहा कि किसी का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है. हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते. कोर्ट ने कहा है कि मौलिक अधिकारों को आगे बढ़ाने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं.

क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट ने अपराधों के आरोपी व्यक्तियों की संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा "बुलडोजर कार्रवाई" का फैसला सुनाते हुए कहा कि उसने संविधान के तहत गारंटीकृत अधिकारों पर विचार किया है जो व्यक्तियों को राज्य की मनमानी कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करते हैं.इसमें कहा गया है कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है कि व्यक्तियों को पता हो कि संपत्ति को मनमाने ढंग से नहीं छीना जाएगा.



'आरोपी या दोषी होने पर घर नहीं गिरा सकते'

सुप्रीम कोर्ट का मानना ​​है कि राज्य और उसके अधिकारी मनमाने और अत्यधिक कदम नहीं उठा सकते. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी घोषित नहीं कर सकती और जज बनकर किसी आरोपी व्यक्ति की संपत्ति को ध्वस्त करने का फैसला नहीं कर सकती.

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एक औसत नागरिक के लिए घर का निर्माण वर्षों की कड़ी मेहनत, सपनों और आकांक्षाओं की परिणति है. सदन सुरक्षा और भविष्य की सामूहिक आशा का प्रतीक है और यदि इसे छीन लिया जाता है, तो अधिकारियों को संतुष्ट करना होगा कि यह एकमात्र तरीका है.

सदन को पदावनत करने की ऐसी कार्रवाई किसी अपराध के दोषी व्यक्ति के खिलाफ भी नहीं हो सकती क्योंकि कार्यपालिका द्वारा की गई ऐसी कार्रवाई अवैध होगी और कार्यपालिका तब कानून को अपने हाथ में लेने की दोषी होगी. सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना है कि आश्रय के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है और निर्दोषों को इस अधिकार से वंचित करना पूरी तरह से असंवैधानिक होगा.

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