35 हफ्ते के बच्चे का अबॉर्शन कराना चाहती थी 26 साल की महिला, कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद दिया ये आदेश
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महिला को अबॉर्शन की मंजूरी दे ही, क्योंकि मेडिकल रिपोर्ट के बाद भ्रूण में बच्चा अबनॉर्मल पाया गया है. ऐसा भ्रूण के दिल की धड़कन को रोककर किया जाएगा, जिसका कानून में प्रावधान है. याचिकाकर्ता के प्रजनन स्वतंत्रता के अधिकार, अपने शरीर पर उसकी स्वायत्तता और उसकी पसंद के अधिकार के आधार पर विचार कर यह फैसला लिया गया है.

बॉम्बे हाई कोर्ट ने फीटस की धड़कन रोकने के प्रोसेस के जरिए 35 हफ्ते से ज्यादा की प्रेग्नेंसी को मेडिकली टर्मिनेट करने की एक महिला की याचिका को मंजूरी दे दी है. महिला को पिछले महीने भ्रूण की असामान्यता के बारे में पता चला. एजेजे अस्पताल के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट ने सभी की सहमति से प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की सिफारिश की, जिसमें पाया गया कि भ्रूण जन्मजात मैक्रोसेफली (असामान्य रूप से बड़ा सिर) से पीड़ित है और ब्रेन में डिफेक्ट है.
भ्रूण के 'लाइव बॉर्न' की उम्मीद है, जिसके लिए एनआईसीयू में रहने की जरूरत है. साथ ही, यह भी बताया गया कि बच्चे को ड्रग रेजिस्टेंस सीजर्स, डेवलपमेंट डिले. इंटेलेक्चुअल डेफिसिट, गंभीर कमजोरी, चाल में गड़बड़ी, खराब विजन बच्चे को जीवन को मुश्किल बनाती है.
कोर्ट ने क्यों लिया ये फैसला?
महिला ने 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ में गर्भपात के तरीकों के संबंध में मेडिकल बोर्ड को अगस्त 2018 में केंद्र द्वारा जारी दिशा-निर्देश के अनुसार प्रक्रिया की अनुमति देने का अनुरोध करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. याचिकाकर्ता के प्रजनन स्वतंत्रता के अधिकार, अपने शरीर पर उसकी स्वायत्तता और उसकी पसंद के अधिकार, याचिकाकर्ता की चिकित्सा स्थिति और मेडिकल बोर्ड के निष्कर्षों और राय पर विचार करने के बाद अदालत ने महिला को चिकित्सकीय रूप से गर्भपात करने की अनुमति दी.
कोर्ट ने क्या कहा?
इस मामले में कोर्ट ने कहा कि भारत संघ द्वारा जारी किए गए और महाराष्ट्र राज्य द्वारा अपनाए गए दिशा-निर्देश नोट के मद्देनजर हम डॉ. को दिशा-निर्देश नोट के खंड वी (सी) के तहत कंटेंप्लेटेड एमटीपी प्रोसीजर फॉलो करने की मंजूरी देते हैं. अगर डॉक्टर की राय में ऐसा करना जरूरी है.
क्या है प्रावधान?
महिला की वकील मीनाज काकलिया ने गाइडेंस नोट में क्लाउज वी (सी) का हवाला दिया, जिसमें 24 हफ्ते से अधिक की गर्भावस्था के मामलों में भ्रूण के जीवित जन्म से बचने के लिए भ्रूण के दिल की धड़कन को रोकने (अल्ट्रासाउंड- गाइडेड प्रोसेस) का प्रावधान है. इसके आगे, उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने भी केंद्र के दिशा-निर्देशों को अपनाया है और ऐसी स्थितियों में भ्रूण के दिल की धड़कन को रोकने का प्रावधान किया है.