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जो डरते नहीं बोलने से... बेबाक तेवरों वाला सांसद असदुद्दीन ओवैसी, संसद से सड़कों तक है जिसकी गूंज

असदुद्दीन ओवैसी, हैदराबाद से चार बार के सांसद और AIMIM के अध्यक्ष, अपने तीखे भाषणों और बेखौफ राजनीति के लिए पहचाने जाते हैं. लंदन से कानून पढ़े ओवैसी ने मजलिस को राष्ट्रीय पहचान दिलाई. वे संसद रत्न पुरस्कार से सम्मानित हैं और दुनिया के 500 प्रभावशाली मुस्लिमों में शामिल हैं. उनका जीवन संघर्ष, तेवर और विस्तार की कहानी है.

जो डरते नहीं बोलने से... बेबाक तेवरों वाला सांसद असदुद्दीन ओवैसी, संसद से सड़कों तक है जिसकी गूंज
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नवनीत कुमार
By: नवनीत कुमार

Updated on: 13 May 2025 7:43 AM IST

भारत में सबसे चर्चित और बेबाक सांसदों की सूची तैयार की जाए, तो हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी का नाम शीर्ष पर रहेगा. उनका जन्म 13 मई 1969 को हैदराबाद में हुआ था. ओवैसी ने निजाम कॉलेज (उस्मानिया विश्वविद्यालय) से स्नातक की डिग्री हासिल की और फिर लंदन के प्रसिद्ध लिंकन इन से कानून की पढ़ाई पूरी की.

विदेश में कानूनी शिक्षा पूरी करने के बाद वे भारत लौटे और 1994 में चारमीनार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर आंध्र प्रदेश की राजनीति में कदम रखा. इसके बाद 2004 में वे पहली बार हैदराबाद से लोकसभा पहुंचे और अब तक चार बार लगातार सांसद चुने जा चुके हैं. 2025 में एक बार फिर वह चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिन्दूर के बाद उन्होंने पाकिस्तान को जमकर लताड़ा जिसकी पूरे भारत के लोग तारीफ कर रहे हैं.

केंद्र को कहा था नालायक सरकार

ओवैसी के तीखे तेवर और तल्ख बयान हमेशा सुर्खियों में रहे हैं. जब CAA और NRC को लेकर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, तब संसद में खड़े होकर उन्होंने केंद्र सरकार को "नालायक सरकार" कह दिया. यह बयान संसद के इतिहास में दर्ज हुआ और सत्ता पक्ष के सांसदों के कड़े विरोध के बावजूद ओवैसी अपने शब्दों से पीछे नहीं हटे. उनके भाषणों में तथ्यों के साथ व्यंग्य और कटाक्ष भी होता है, जिससे वे विपक्ष की राजनीति में एक मजबूत उपस्थिति दर्ज कराते हैं.

बिहार में पांच सीटें जीतकर सबको चौंकाया

असदुद्दीन ओवैसी का राजनीतिक सफर शुरू से ही आक्रामक और स्पष्टवादी रहा है. उन्होंने AIMIM को हैदराबाद की सीमाओं से बाहर निकालकर राष्ट्रीय पहचान दिलाई. बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बंगाल जैसे राज्यों में पार्टी के प्रत्याशी उतारकर उन्होंने साबित किया कि AIMIM केवल एक स्थानीय पार्टी नहीं रही. बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पांच सीटें जीतकर राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया था. यह एक संकेत था कि देश के मुस्लिम समुदाय में असदुद्दीन ओवैसी एक वैकल्पिक राजनीतिक आवाज बनकर उभर रहे हैं.

मिल चुका है संसद रत्न पुरस्कार

2014 में उन्हें उनके संसदीय प्रदर्शन के लिए "संसद रत्न पुरस्कार" से नवाज़ा गया. यह पुरस्कार उन्हें 15वें लोकसभा सत्र के दौरान दिए गए उनके उत्कृष्ट भाषणों और मुद्दों को प्रभावशाली ढंग से उठाने के लिए दिया गया था. इसके अलावा उन्हें "द वर्ल्ड्स 500 मोस्ट इन्फ्लुएंशियल मुस्लिम्स" की सूची में भी जगह दी गई. यह दिखाता है कि उनकी छवि केवल एक भारतीय सांसद की नहीं बल्कि एक वैश्विक मुस्लिम नेता के रूप में भी पहचानी जाती है.

हिम्मत है तो जूता उतार के दिखा

उनके जीवन से जुड़े कुछ किस्से उनकी छवि को और रोचक बनाते हैं. एक बार हैदराबाद में उनके काफिले को रोककर एक युवक ने भगवा झंडा लहराया. ओवैसी गाड़ी से उतरकर बोले, “हिम्मत है तो जूता उतार के दिखा!” यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ और उनके साहसी स्वभाव का प्रतीक बन गया.

कभी सीने पर गोली खाई है?

संसद में उन्होंने एक बार तीखे लहजे में कहा था, “56 इंच की बात करने वालों से पूछिए, क्या उन्होंने कभी सीने पर गोली खाई है?” यह बयान उस समय आया जब उनके काफिले पर हमला हुआ था. उनके जवाबों और किस्सों से साफ है कि असदुद्दीन ओवैसी सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा के प्रतीक बन चुके हैं.

परिवार में कौन-कौन?

उनकी निजी जिंदगी भी उतनी ही सादी और अनुशासित है. 11 दिसंबर 1996 को उन्होंने फरहीन ओवैसी से शादी की. उनके छह बच्चे हैं. एक बेटा सुल्तानुद्दीन ओवैसी और पांच बेटियां: खुदसिया, यास्मीन, अमीना, महीन और अतिका ओवैसी. ओवैसी राजनीतिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहते हैं. वे हैदराबाद स्थित ओवैसी हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के चेयरमैन हैं, जो गरीबों और जरूरतमंदों के इलाज के लिए एक बड़ी सेवा संस्था के रूप में काम करता है.

1928 में बनी थी ओवैसी की पार्टी

ओवैसी जिस पार्टी के प्रमुख हैं, उसकी जड़ें बेहद पुरानी हैं. मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (MIM) की स्थापना वर्ष 1928 में नवाब महमूद नवाज खान ने की थी. उस समय यह संगठन हैदराबाद रियासत के मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करता था और स्वतंत्र भारत में हैदराबाद को एक मुस्लिम राज्य के तौर पर बनाए रखने की मांग करता रहा. लेकिन 1948 में जब भारत ने हैदराबाद का विलय किया, तब इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया और उसके तत्कालीन अध्यक्ष कासिम राजवी को जेल भेज दिया गया. बाद में राजवी पाकिस्तान चले गए और संगठन की कमान एक वकील अब्दुल वहाद ओवैसी को सौंप दी.

पूर्वजों की बढ़ा रहे विरासत

अब्दुल वहाद ओवैसी के नेतृत्व में संगठन को पुनर्जीवित किया गया. 1957 में इसे राजनीतिक पार्टी के रूप में दोबारा खड़ा किया गया और इसके नाम में "ऑल इंडिया" जोड़ा गया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि पार्टी केवल हैदराबाद तक सीमित नहीं रहना चाहती. पार्टी के संविधान में बदलाव कर इसे लोकतांत्रिक राजनीतिक संगठन का स्वरूप दिया गया. अब्दुल वहाद के बाद उनके बेटे सलाहउद्दीन ओवैसी ने पार्टी की कमान संभाली और 1984 से लेकर 2004 तक लगातार छह बार हैदराबाद के सांसद रहे. उन्हीं की विरासत को अब उनके बेटे असदुद्दीन ओवैसी आगे बढ़ा रहे हैं.

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