Paresh Rawal की 'The Taj Story' में मनगढ़ंत इतिहास? CBFC से कटौती की मांग, भड़का सकती है सांप्रदायिक तनाव
'द ताज स्टोरी' एक ऐसी फिल्म है जो शानदार एक्टिंग और कहानी का वादा करती है. इसमें ताजमहल से जुड़ी कुछ कम जानी-पहचानी घटनाओं को दिखाया जाएगा. फिल्म का मुख्य सवाल है कि आजादी के 79 साल बाद भी, क्या हम अभी भी दिमागी दबाव और गलत विचारों के गुलाम हैं?.
परेश रावल की मुख्य भूमिका वाली आने वाली फिल्म 'द ताज स्टोरी' के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की गई है. इस याचिका में कोर्ट से मदद मांगी गई है. याचिका में फिल्म के एक पोस्टर पर आपत्ति जताई गई है. उस पोस्टर में ताजमहल के गुंबद से भगवान शिव की मूर्ति निकलते हुए दिखाई गई है. याचिका कहती है कि यह पोस्टर ताजमहल को हिंदू मंदिर बताने वाले पुराने और विवादास्पद दावे को फिर से जीवित कर रहा है.
याचिका दाखिल करने वाले वकील का नाम शकील अब्बास है. उनका कहना है कि फिल्म 'द ताज स्टोरी' में ताजमहल की शुरुआत के बारे में झूठी और लोगों को उकसाने वाली बातें दिखाई गई हैं. ये काल्पनिक दावे लोगों के इतिहास पर विश्वास को कमजोर कर सकते हैं. इससे समाज में अलग-अलग समुदायों के बीच तनाव बढ़ सकता है और झगड़े हो सकते हैं.
याचिका में क्या मांगा गया है?
याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को फिल्म की जांच दोबारा करनी चाहिए. अगर फिल्म में कुछ दृश्य समाज को बांटने वाले या तनाव बढ़ाने वाले हैं, तो उन्हें काटना जरूरी करना चाहिए. फिल्म में ऐसे गंभीर दृश्य हैं जो लोगों के बीच लड़ाई-झगड़े पैदा कर सकते हैं और शहर या देश की शांति को खतरे में डाल सकते हैं. कोर्ट से अनुरोध है कि फिल्म बनाने वालों को मजबूर किया जाए कि वे फिल्म की शुरुआत में एक साफ-साफ सूचना (डिस्क्लेमर) डालें. इसमें लिखा हो कि फिल्म सच्चे इतिहास पर आधारित नहीं है, बल्कि एक विवादास्पद कहानी पर बनी है.
फिल्म 'द ताज स्टोरी' के बारे में
'द ताज स्टोरी' एक ऐसी फिल्म है जो शानदार एक्टिंग और कहानी का वादा करती है. इसमें ताजमहल से जुड़ी कुछ कम जानी-पहचानी घटनाओं को दिखाया जाएगा. फिल्म में परेश रावल के अलावा जाकिर हुसैन, अमृता खानविलकर, स्नेहा वाघ, नमित दास, वीना झा, लतिका वर्मा, स्वर्णिम और सर्वज्ञ जैसे कई अच्छे कलाकार हैं. फिल्म का मुख्य सवाल है कि आजादी के 79 साल बाद भी, क्या हम अभी भी दिमागी दबाव और गलत विचारों के गुलाम हैं? फिल्म बनाने वाले इसे 'एक सिनेमाई बहस' कहते हैं. इसमें कोर्ट की लड़ाई को बड़े सामाजिक और ऐतिहासिक मुद्दों से जोड़ा गया है. फिल्म ताजमहल के बनने के पुराने सवालों पर विचार करती है और ताजमहल के बारे में आमतौर पर सुनी जाने वाली कहानियों को चुनौती देती है.
परेश रावल का बयान
परेश रावल ने फिल्म के बारे में पहले कहा था, 'मेरा किरदार विष्णु दास बहुत हिम्मत वाला और मजबूत विश्वास वाला व्यक्ति है. वह ताजमहल के पीछे की सच्चाई को सामने लाने की कोशिश करता है. इस यात्रा के जरिए फिल्म पुरानी मान्यताओं को चुनौती देती है. दर्शकों को इतिहास से गहराई से जोड़ने और सोचने पर मजबूर करती है. मुझे गर्व है कि मैं ऐसी फिल्म का हिस्सा हूं जो मुश्किल सवाल पूछने से नहीं डरती. यह ईमानदारी से हमारे पुराने इतिहास पर विचार करने को कहती है.





