देश में IAS नहीं, टीचर्स की हो ज्यादा सैलरी: सिसोदिया
पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि सनातन काल से शिक्षकों का दर्जा भगवान से भी ऊंचा रहा है. 2047 का सपना पूरा करने के लिए उन्हें यह दर्जा लौटाना होगा.

दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दावा किया है कि दिल्ली के स्कूलों की दशा सुधरी है. देश भर में दिल्ली के बच्चे बेहतर शिक्षा हासिल कर रहे हैं. यह सबकुछ दिल्ली के स्कूलों में तैनात शिक्षकों की वजह से संभव हो सका है. हालांकि यह कोई नई बात नहीं है. हमारे देश के शिक्षक यानी गुरू को हमेशा से भगवान से भी ऊंचा दर्जा हासिल है. अब यह सही समय हो कि गुरूओं की सैलरी भी इसी हिसाब से हो. मतलब सबसे ज्यादा, किसी आईएएस से भी ज्यादा. सिसोदिया गुरुवार को दिल्ली नगर निगम के शिक्षक सम्मान समारोह में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि उन्हें जब भी शिक्षकों को सम्मानित करने का मौका मिलता हैं तो वह खुद को गौरवांनित महसूस करते हैं.
उन्होंने कहा कि शिक्षक अपनी काबिलयत से देश का भविष्य गढ़ने का काम करते हैं. यदि हमारा देश विकास की तौड़ में, तकनीक के क्षेत्र में दुनिया के अन्य देशों के साथ कदम ताल कर रहा है तो इसका श्रेय शिक्षकों को ही जाता है. ऐसा इसलिए हो पाता है कि शिक्षक छात्रों का भविष्य गढ़ने में अपना जी जान लगा देते हैं. उन्होंने कहा कि यही वक्त है कि देश में शिक्षकों का वेतन किसी भी सरकारी कर्मचारी से अधिक कर दिया जाए. यही नहीं, 30-35 साल के अनुभवी शिक्षकों का वेतन तो कैबिनेट सेक्रेटरी से भी अधिक होनी चाहिए.
कई देशों में ज्यादा है शिक्षकों की सैलरी
उन्होंने कहा कि हम एक तरफ 2047 में विकसित भारत का सपना देख रहे हैं. यदि इस सपने को सचमुच में कर दिखाना है तो इसके लिए नींव तैयार करनी होगी. यह शिक्षकों को उनका सम्मान लौटाकर ही संभव है. उन्होंने कहा कि केवल किसी नेता के सपने देख लेने भर से देश विकसित नहीं होगा. उन्होंने फिर दोहराया कि देश के किसी भी सरकारी कर्मचारी से शिक्षक का वेतन अधिक होना चाहिए. उन्होंने दूसरे देशों का उदाहरण दिया. कहा कि कई ऐसे देश हैं, जहां शिक्षकों की सैलरी वहां के अधिकारियों से भी अधिक है. जर्मनी में ही शिक्षकों की औसतन सैलरी 72 लाख रुपये हर साल है. जबकि वह अधिकारियों की औसतन सैलरी 71 लाख ही है. यही स्थिति बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, अमेरिका, जापान आदि देशों में भी है.