EXCLUSIVE: पूर्व पीएम का बेटा भी था यूरिया घोटाले में शामिल, CBI डायरेक्टर नहीं दर्ज कराना चाहते थे केस
1995 में हुआ 133 करोड़ रुपये का यूरिया घोटाला भारत के इतिहास का एक बड़ा घोटाला था, जिसमें बिना यूरिया की आपूर्ति के ही भुगतान कर दिया गया. जांच में प्रधानमंत्री कार्यालय, मंत्रालयों और प्रभाकर राव के करीबियों की संलिप्तता सामने आई. CBI जांच सीमित रही और कई दोषी बच निकले. शांतनु सेन ने इस सच्चाई को उजागर किया, लेकिन उन्हें भी हटवा दिया गया.
1995 में भारत में हुआ एक ऐसा घोटाला, जिसने सत्ता की गलियों से लेकर जांच एजेंसियों तक, हर संस्थान की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए. 133 करोड़ रुपये का भुगतान एक तुर्की कंपनी को यूरिया की आपूर्ति के लिए कर दिया गया, लेकिन न एक दाना यूरिया आया और न किसी को इसकी भनक लगी. ना प्रधानमंत्री कार्यालय को, ना इंटेलिजेंस एजेंसियों को, ना रॉ को, और ना ही CBI को.
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के रिटायर्ड जॉइंट डायरेक्टर शांतनु सेन ने स्टेट मिरर हिंदी के पॉडकास्ट में, एडिटर क्राइम संजीव चौहान से बातचीत की. उन्होंने 133 करोड़ रुपये के इस यूरिया घोटाले से जुड़े अपने अनुभवों पर विस्तार से बात की. उन्होंने पॉडकास्ट में बताया कि उस समय देश के प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव थे और केंद्रीय केमिकल मंत्री लक्ष्मण लखन सिंह यादव. मंत्रालयों ने एमएमटीसी जैसी अनुभवी संस्थाओं को दरकिनार कर, बिना किसी पूर्व अनुभव के नेशनल फर्टिलाइज़र लिमिटेड (NFL) को यूरिया इंपोर्ट का जिम्मा सौंप दिया. NFL ने तुर्की की एक कंपनी से करार किया और बिना कोई माल मंगवाए 133 करोड़ की रकम एडवांस में भेज दी.
मंत्रालय से शुरू हुई थी गलती
CBI के तत्कालीन संयुक्त निदेशक शांतनु सेन बताते हैं कि जब ये केस सामने आया, तब मंत्रालय खुद इससे हाथ झाड़ने की कोशिश कर रहा था. उन्हें बतौर कंसल्टेंट मंत्रालय ने तीन महीने के लिए नियुक्त किया और उन्होंने पाया कि सारा दोष सिर्फ NFL (नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड) के अफसरों पर मढ़ा जा रहा है, जबकि असली गलती मंत्रालय और पीएमओ से शुरू हुई थी.
पीएम से सीधे जुड़े थे घोटाले के तार
सेन ने खुलासा किया कि ये फैसला खुद प्रधानमंत्री की अनुमति से हुआ था और इस प्रक्रिया में प्रधानमंत्री के सचिव, कैबिनेट सेक्रेटरी और मंत्रालय के कई बड़े अधिकारी शामिल थे. तुर्की फर्म का एजेंट, प्रधानमंत्री नरसिंह राव के बेटे प्रभाकर राव का करीबी दोस्त था जिससे घोटाले की जड़ें सीधे सत्ता के उच्चतम स्तर तक जुड़ी हुई थीं.
अटल जी ने दिए थे CBI जांच के आदेश
जब शांतनु सेन ने यह मामला उठाया, तब अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की अंतरिम सरकार सत्ता में आई थी. सेन ने अपने करीबी पत्रकार और बीजेपी थिंक टैंक टीवीआर शेनॉय के जरिए यह मामला बड़वानी साहब और जोशी जी तक पहुंचाया. इसके बाद वाजपेयी सरकार ने फौरन केस CBI को सौंपने का आदेश दिया. लेकिन CBI के तत्कालीन निदेशक विजय राम राव, जो नरसिंह राव के बेहद करीबी माने जाते थे, इस केस को दर्ज करने के इच्छुक नहीं थे. दबाव के बाद ही केस शुरू हुआ. जांच के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय, केमिकल मंत्रालय और यहां तक कि प्रधानमंत्री के बेटे के दोस्त तक जांच की जद में आए.
प्रभाकर राव को नहीं हुई सजा
CBI की जांच में यह स्पष्ट हुआ कि प्रभाकर राव का इस घोटाले से अप्रत्यक्ष संबंध था, पर उन्हें किसी भी प्रकार की सज़ा नहीं मिली. जबकि तुर्की फर्म के एजेंट्स और अन्य कुछ निजी पक्षों को दोषी ठहराया गया. कुल 16 साल चले इस मुकदमे में 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा और दोषियों को सज़ा भी हुई, पर बड़ी मछलियां बच निकलीं.
CBI डायरेक्टर ने जांच से हटवाया
शांतनु सेन बताते हैं कि वह अप्रैल 1996 में रिटायर हो चुके थे. वह कंसल्टेंट के रूप में इस घोटाले की जांच कर रहे थे. वह बताते हैं कि उन्हें इस केस के दौरान मंत्रालय से हटवा दिया गया. CBI डायरेक्टर ने उनकी कंसल्टेंसी को बीच में ही खत्म करवा दिया, क्योंकि उनकी जांच की दिशा उच्च स्तर तक पहुंचने लगी थी. यहां तक कि उनके स्थान पर कार्यरत CBI अफसर, जिसने प्रभाकर राव का नाम जांच में डाला था, उसे भी हटा दिया गया.
अभी भी हाईकोर्ट में चल रहा केस
सेन का मानना है कि यदि उन्हें सीबीआई में रहते हुए यह जांच सौंपी गई होती, तो यह घोटाला किसी और मोड़ पर पहुंच सकता था. लेकिन सत्ता में बैठे लोगों की सुरक्षा के लिए ईमानदार अफसरों को हटा दिया गया और जांच को सीमित दायरे में समेट दिया गया. यह घोटाला सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि संस्थागत नैतिकता का भी पतन था. आज भी यह केस दिल्ली हाईकोर्ट में अपील के दौर से गुजर रहा है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब देश के प्रधानमंत्री कार्यालय तक की संलिप्तता सामने आ जाए, तो क्या वास्तव में न्याय हो सकता है? और यदि जांच एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्ति भी सत्ता की मर्ज़ी से हो, तो क्या सच्चाई कभी पूरी तरह सामने आ पाएगी?





