ईरान-इज़रायल युद्ध का असली इतिहास: पारसी और यहूदियों की एक सी कहानी, सनातन से जुड़े ईरानियों के तार
प्राचीन ईरान (पर्शिया) हिंदू धर्म से जुड़ा था, क्यों अहुर मज़्दा के भक्तों को भागना पड़ा अपने ही देश से, और कैसे यहूदियों के साथी ईरान आज उनका सबसे बड़ा दुश्मन बन गया. पारसियों के भारत आने की मार्मिक कहानी;
धर्म में देवता होते हैं, और शैतान होते हैं. लेकिन अगर एक धर्म का देवता दूसरे धर्म का शैतान हो, तो किसे मानोगे सच्चा?
ये सवाल एक झटके में सदियों की मान्यताओं को हिला सकता है. हिंदू धर्म में देव पूजनीय हैं - इंद्र, अग्नि, वरुण, मित्र. पर क्या हो अगर आपको पता चले कि एक धर्म ऐसा भी है, जहाँ यही देवता 'बुराई' के प्रतीक हैं?
हम बात कर रहे हैं Zoroastrianism की - जिसे पारसी धर्म भी कहा जाता है. इसके भगवान हैं Ahura Mazda, जिनका नाम ही 'अहुरा' यानी 'सच्चे/उज्ज्वल देव' से आया है. और जिनसे उनका विरोध है, वो हैं Daevas - यानि वही Daevas जो संस्कृत में 'देव' कहे जाते हैं.
वैदिक और अवेस्ताई देवताओं की उलटी तस्वीर
संस्कृत और अवेस्ता दोनों ही इंडो-ईरानी भाषाओं से निकली हैं. दोनों सभ्यताएँ आर्यव्रत से निकली थीं. लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, भारत के वेद और ईरान के अवेस्ता अलग-अलग परंपराओं की नींव बन गए.
भारत में इंद्र वर्षा के देवता, वीरता और शक्ति के प्रतीक हैं.
लेकिन अवेस्ता में Indra एक झूठ का दैत्य है.
'असुर' जिन्हें भारत में राक्षस माना गया, वो Zoroastrian धर्म में भगवान के रूप में पूजे गए - Ahura.
Zarathustra की क्रांति
Zarathustra या Zoroaster एक ऐतिहासिक ऋषि थे. इतिहासकारों के अनुसार इनका काल लगभग 1500–1000 BCE के बीच माना जाता है. उनका जन्म उस समय हुआ जब ईरान में कई देवी-देवताओं को पूजा जाता था, यज्ञ होते थे, और सामाजिक असमानता थी.
Zarathustra ने अहुरा मज़्दा को एकमात्र ईश्वर घोषित किया और बाक़ी सब Daevas को अस्वीकार कर दिया. यही उनकी धार्मिक क्रांति थी - monotheism की शुरुआत.
Ahura Mazda – कौन हैं ये भगवान?
Ahura Mazda का अर्थ है: Ahura = प्रभु / देव और Mazda = बुद्धिमत्ता / प्रकाश
अर्थात, ज्ञान और प्रकाश का भगवान.
इनका कोई पिता नहीं है, जैसा कि वेदों या पुराणों में देवताओं के वंश होते हैं. Ahura Mazda को "अज्ञेय", "अनादि" और "शाश्वत" माना गया है.
Zarathustra ने तीन मूल विचार दिए: अच्छा सोचो (Humata), अच्छा बोलो (Hukhta) और अच्छा करो (Hvarshta)
ये विचार किसी भी धर्म के सबसे सरल और पवित्र मूल्यों में आते हैं.
Indo-Aryans और Indo-Iranians - एक जड़, दो शाखाएं
Indo-Iranians दो भागों में बँट गए:
Indo-Aryans: सिंधु घाटी होते हुए भारत आए.
Indo-Iranians: ईरान और अफगानिस्तान की दिशा में फैले.
दोनों की भाषाएं (संस्कृत और अवेस्ता), पूजा पद्धतियाँ और मिथकीय चरित्र एक जैसे थे. लेकिन समय के साथ विचारधारा बदली.
भारत में देव = पूजनीय
ईरान में Ahura = पूजनीय, और देव = अस्वीकार्य
इस बदलाव का कारण था Zarathustra का दर्शन - सत्य और असत्य के बीच स्पष्ट विभाजन.
असुर Vs देव
भारत में:
असुर = दैत्य, राक्षस, अधर्मी
देव = धर्म, यज्ञ, प्रकृति
ईरान में:
Ahura (असुर) = सत्य, प्रकाश, पवित्रता
Daeva (देव) = अंधकार, झूठ, लालच
ये अंतर यह दर्शाता है कि धर्म केवल ईश्वर की पूजा नहीं, बल्कि सोचने का तरीका भी तय करता है.
Zoroastrianism में 'असुर' यानी Ahura सच्चाई के प्रतीक हैं. और हिंदू धर्म में असुरों को विष्णु द्वारा मारा जाता है - जैसे हिरण्यकश्यप, रावण, बाणासुर आदि. तो क्या हम कह सकते हैं कि यह दो अलग सभ्यताओं की टकराहट थी? शायद हाँ.
त्रिमूर्ति नहीं, बल्कि ईश्वर एक ही : अहुरा मज़्दा
Zoroastrian धर्म का ईश्वर केवल एक है - कोई ब्रह्मा, विष्णु, महेश की तरह अलग-अलग रूप नहीं. बल्कि Ahura Mazda ही सबकुछ हैं. ये विचार एकेश्वरवाद को जन्म देता है, जो बाद में यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्मों में दिखा.
Zoroastrianism ने एक वैश्विक धार्मिक चेतना में यह पहली बार बताया कि:
- दुनिया अच्छाई और बुराई की लड़ाई है
- इंसान को अपने कर्म से रास्ता तय करना है
- मृत्यु के बाद आत्मा का न्याय होता है
भारत में 'देव' और 'असुर' के मायने
आज हम 'असुर' शब्द को नकारात्मक रूप में इस्तेमाल करते हैं. लेकिन हो सकता है कि कभी ये शब्द एक पुरानी सभ्यता, एक संस्कृति, एक धर्म का प्रतीक रहा हो. एक ऐसा धर्म जो किसी ज़माने में खुद को 'सच्चे देवों' का धर्म कहता था.
और वो धर्म आज भारत में जिंदा है - पारसी धर्म के रूप में.
651 ईस्वी. ईरान में इस्लामी आक्रमण के बाद Zoroastrians के लिए जीना मुश्किल हो गया. जज़िया टैक्स, धार्मिक दमन, और जबरन धर्म परिवर्तन ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वे अपना देश छोड़ दें.
उनकी आँखों में आंसू थे, पर दिल में Ahura Mazda की लौ थी. उन्होंने समुद्र का रास्ता पकड़ा - और पहुँचे गुजरात के तट पर.
“दूध में घुलती शक्कर” - भारत की स्वीकृति
गुजरात के राजा जादी राणा ने इन अजनबियों को देखा. राजा ने कहा, “हमारा राज्य दूध से भरा प्याला है. अगर तुम इसमें आओगे तो छलक जाएगा.”
तब पारसियों ने शक्कर की चुटकी उस दूध में डाल दी और कहा:
“जैसे ये शक्कर दूध को मीठा बनाती है, वैसे ही हम इस धरती को.”
राजा भावुक हो गया. उसने पारसियों को शरण दी, मगर कुछ शर्तों पर:
- वे तलवार नहीं उठाएँगे,
- देश की भाषा बोलेंगे,
- बेटियों से शादी नहीं करेंगे,
- और सूर्य पूजा करेंगे.
अग्नि से जुड़ा रिश्ता - हिंदू और पारसी धर्म
- Zoroastrianism और Hinduism में कई सांस्कृतिक समानताएँ हैं:
- पूजा का केंद्र - पारसी में: अग्नि मंदिर (Fire Temple) और सनातन में: यज्ञ और हवन
- नैतिक मूल - पारसी में: अच्छा सोचो, बोलो, करो और सनातन में: मनसा, वाचा, कर्मणा
- कर्म सिद्धांत - पारसी में: कर्म के अनुसार आत्मा का मूल्यांकन और सनातन में: कर्म और पुनर्जन्म
- प्रकाश का रूप - पारसी में: Ahura Mazda: प्रकाश और अच्छाई और सनातन में: देवता: सूर्य, अग्नि
- शव संस्कार - पारसी में: डखमा (Tower of Silence) और सनातन में: दाह संस्कार
भाषा और लिपि - संस्कृत से अवेस्ता तक
- Zoroastrians की मूल भाषा: अवेस्ताई
- हिंदू धर्म की प्राचीन भाषा: संस्कृत
- दोनों में Indo-Iranian linguistic roots हैं.
- फारसी भाषा का असर भारत की उर्दू, हिंदी और गुजराती में आज भी दिखता है.
फ़ारसी शब्द जैसे 'बादशाह', 'दस्तूर', 'नवाब', 'रोज़गार', 'तख़्त', 'दीवान' आदि आज हमारी रोज़मर्रा की भाषा में हैं.
त्योहार जो जोड़ते हैं
- नवरोज़: पारसियों का नया साल, जो वसंत ऋतु में आता है. ये हिंदुओं के चैत्र नवरात्र जैसा ही है.
- गहांबर: छह ऋतुओं पर आधारित त्योहार - ठीक वैसे जैसे भारत में वसंत, वर्षा आदि पर पर्व होते हैं.
- फरवर्दिगन: मृत पूर्वजों की आत्मा को सम्मान देने का दिन, हिंदुओं के पितृ पक्ष जैसा.
यहूदियों से ऐतिहासिक दोस्ती
Zoroastrians और यहूदी धर्म में एक गहरा संबंध है:
Cyrus the Great (559 BCE) - फारसी राजा ने यहूदियों को बाबुल की कैद से छुड़ाया और येरुशलम में मंदिर बनाने दिया.
यहूदी आज भी उन्हें “भगवान द्वारा चुना गया राजा” मानते हैं.
दोनों धर्मों ने उत्पीड़न सहा, अपनी ज़मीन खोई, लेकिन आत्मा नहीं.
भारत - एक नई मातृभूमि
आज पारसी भारत के नागरिक हैं, और शायद उससे ज़्यादा - भारत की आत्मा में घुल चुके हैं.
भारत में पारसी समुदाय:
- जनसंख्या: करीब 55,000 - 57,000
- मुख्य क्षेत्र: मुंबई, नवसारी, पुणे, उधवाड़, सूरत
- भाषाएँ: गुजराती, अंग्रेज़ी, और पारसी गुजराती (mix)
भारत को जिन महान पारसियों ने दिया योगदान:
- जे. आर. डी. टाटा: भारत का पहला पायलट और Tata Empire का जनक.
- रतन टाटा: आज भी भारत के सबसे सम्मानित उद्योगपति.
- होमी भाभा: परमाणु विज्ञान के पितामह.
- फ़िरोज़ गांधी: इंदिरा गांधी के पति और राजनेता.
- ज़ुबिन मेहता: मशहूर संगीत निर्देशक.
Persia से Iran
जब फ़ारस के मंदिरों पर चढ़ा अज़ान का साया
651 ईस्वी. आखिरी Zoroastrian सम्राट Yazdegerd III की हार हुई. अरबों की इस्लामी सेना ने फारस (Persia) पर चढ़ाई की. साथ आया इस्लाम, और शुरू हुआ वो सफाया जिसे “Islamization of Iran” कहते हैं.
कैसे हुआ सब कुछ:
- इस्लामी शासन ने Zoroastrianism को “काफिर धर्म” कहा.
- मस्जिदें बनीं, और Fire Temples जलाए गए या तोड़े गए.
- “जज़िया टैक्स” लगाया गया - जो भी मुस्लिम नहीं था, उसे भारी टैक्स देना पड़ता था.
- जिन लोगों ने टैक्स नहीं दिया - उन्हें या तो जबरन मुसलमान बनाया गया या क़त्ल.
Zoroastrians की आबादी कुछ ही सदियों में 90% से घटकर 5% रह गई.
'Iran' नाम कब और कैसे आया?
Persia नाम दुनिया भर में Zoroastrian और Indo-Iranian विरासत का प्रतीक था.
लेकिन… 1935 में Reza Shah Pahlavi, ईरान के शासक ने एक आदेश जारी किया - अब से दुनिया हमें Persia नहीं, Iran के नाम से पुकारे.
क्यों बदला गया नाम?
“Iran” शब्द ‘Aryānām’ (आर्यनों की भूमि) से निकला है. लेकिन इसका उद्देश्य था:
- देश को एक नया इस्लामी-अरब से प्रभावित चेहरा देना,
- पश्चिमी दुनिया से पहचान तोड़ना,
- एक "नई राष्ट्रीयता" बनाना, जो इस्लामी हो, Zoroastrian नहीं.
यह वो मोड़ था जहाँ Persian identity की अंतिम सांस्कृतिक हत्या हुई.
जब पारसी को भागना पड़ा
भारत आ चुके पारसी पहले से जानते थे कि जो Iran में हुआ वो सभ्यता का अंत था. लेकिन जो बचे थे, वे भी 20वीं सदी में भारत, पाकिस्तान, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया भाग गए.
आज Zoroastrians की दुनिया में संख्या:
- ईरान: लगभग 12,000
- भारत: लगभग 55,000
- दुनिया भर में कुल: 1.2 लाख के आसपास
धर्म जिसकी शुरुआत ईरान से हुई - आज वहां अल्पसंख्यक है.
Fire Temples जो बचे - और जो बर्बाद हुए
- Yazd (ईरान) में एकमात्र प्रसिद्ध Zoroastrian Fire Temple अब भी जल रहा है - 1500 साल से.
- लेकिन हज़ारों मंदिर मस्जिद में बदले गए या खत्म कर दिए गए.
पारसियों और यहूदियों की दोस्ती
ईरान का राजा Cyrus the Great वो पहला "गैर-यहूदी" था जिसने Jerusalem में Jewish Temple बनवाया.
- Cyrus को आज भी यहूदी "मसीहा" (Messiah) मानते हैं.
- यहूदी ग्रंथों में उनका नाम दर्ज है (Isaiah 45:1).
- Zoroastrian साम्राज्य में यहूदी मुक्त रूप से पूजा कर सकते थे.
यानी एक वक्त था जब ये दो धर्म इतिहास के सबसे करीबी दोस्त थे.
फिर ये दुश्मनी क्यों?
Zoroastrians और Jews की दुश्मनी नहीं है - असली टकराव है इस्लामी ईरान और यहूदी राष्ट्र इज़रायल के बीच.
ये धर्मों की नहीं, राजनीति और पहचान की लड़ाई है.
- 1948 में जब Israel बना, तब Iran (उस वक्त modern secular था) पहला मुस्लिम देश था जिसने उसे मान्यता दी.
- 1979 में Islamic Revolution हुआ - ईरान अब शिया इस्लामी गणराज्य बन गया.
- अब वहां की सरकार कहती है: Israel एक अवैध, ज़ायोनी शासन है जिसे खत्म कर देना चाहिए.
- और Israel? उसने कहा: “ईरान दुनिया में यहूदियों का सबसे बड़ा दुश्मन है.”
Zoroastrian ईरान और यहूदी Israel - कभी मिलकर मंदिर बनवाते थे
अब Islamic Republic of Iran और Zionist State of Israel - एक-दूसरे को मिटाना चाहते हैं.
Zoroastrianism कभी रोशनी का धर्म था. Ahura Mazda, यानी ज्ञान, प्रकाश और सच्चाई का देवता. लेकिन वही धरती - जहाँ हजारों साल पहले यह धर्म पनपा - आज ईरान है, और वहाँ Ahura Mazda का नाम लेने वाला कोई नहीं बचा.
अब वहाँ शिया इस्लाम का बोलबाला है, और वो देश दुनिया के एकमात्र यहूदी राष्ट्र - इज़रायल को मिटा देने की कसम खा चुका है.
लेकिन कहानी यहाँ से नहीं, बहुत पीछे से शुरू होती है.
Zionism: यहूदियों की वापसी की जिद
- 70 CE: रोमन साम्राज्य ने यहूदियों को येरुशलम से भगा दिया.
- 2000 साल तक ये लोग बिखरे रहे - यूरोप, अरब, भारत तक.
- 1897: Theodor Herzl ने Zionism की नींव रखी - यहूदियों का एक “अपना देश” होना चाहिए.
- 1948: यहूदियों ने Israel नाम से एक राष्ट्र बनाया - वहीं, येरुशलम के पास.
- अरब देशों को यह मंज़ूर नहीं था - उन्होंने हमला किया.
- लेकिन Israel बचा, और धीरे-धीरे मज़बूत होता गया.
एक समय था जब: Ahura Mazda की लौ पूरी फारस में जलती थी.
आज: Zoroastrianism अपने ही जन्मस्थान में अल्पसंख्यक है, Israel और Iran एक दूसरे के खून के प्यासे हैं, आज हम जब ईरान और इज़रायल के बीच की तल्ख़ियों की बात करते हैं, तो हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ये दोनों कभी अच्छे दोस्त हुआ करते थे. 1950 में जब इज़रायल बना, तो पूरे अरब जगत ने उसे नकार दिया. पर एक देश था जिसने उसका गुप्त दोस्त बनना शुरू किया - वो था ईरान.
उस समय ईरान में शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी की सरकार थी. शाह एक पश्चिमी सोच वाले, आधुनिक राजा थे, जो अमेरिका और इज़रायल के करीब थे. इज़रायल के साथ डिप्लोमैटिक संबंध, ट्रेड, तेल और हथियार के सौदे चलते रहे.
ईरान ने यहूदियों को इज़रायल पलायन करने दिया, और तेहरान में यहूदी मंदिर भी बना. शाह के समय, इज़रायल की सेना मोसाद और ईरान की खुफिया एजेंसी सावक मिलकर काम करती थीं.
लेकिन फिर सब बदल गया.
1979: जब इस्लाम ने राज संभाला
1979 में ईरान में आया इस्लामी क्रांति का तूफान.
अयातुल्ला खुमैनी ने राजशाही गिरा दी, और शरिया पर आधारित इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की स्थापना की. अब वह देश जहाँ कभी यहूदी मंदिर बनते थे, वहाँ अब "Death to Israel!" के नारे लगने लगे.
इज़रायल के साथ सारे संबंध तोड़ दिए गए. यहूदी और ज़ोरास्ट्री धर्म के लोग खतरनाक minority बन गए. ईरान अब फिलिस्तीनी आतंकी संगठनों को हथियार और पैसा देने लगा - खासकर हिज़्बुल्लाह और हामास को.
ईश्वर के नाम पर दुश्मनी?
यह सिर्फ राजनीतिक या सैन्य दुश्मनी नहीं है - यह धार्मिक प्रतीकों की भी लड़ाई है.
- Zionism यानी यहूदी राष्ट्र की विचारधारा, जो कहती है कि यहूदियों को उनका पवित्र देश वापस मिलना चाहिए - यानी इज़रायल.
- Velayat-e-Faqih यानी ईरानी इस्लामिक शासन की विचारधारा, जो कहती है कि मुस्लिम उम्मा का नेतृत्व शिया इमाम करेंगे - और इज़रायल का अस्तित्व ही नहीं होना चाहिए.
ईरान के लीडर्स बार-बार कहते हैं कि इज़रायल का नक्शे से नाम मिटा देंगे. जबकि इज़रायल ईरान को सबसे बड़ा खतरा मानता है और उसका परमाणु कार्यक्रम किसी भी हाल में रोकना चाहता है.
नहीं. यह टकराव हजारों साल पुराना है - बस इसके चेहरे बदलते रहे हैं. इज़रायल और Zoroastrianism के बीच एक समय पर धार्मिक जुड़ाव रहा है. जब बेबीलोनिया के यहूदियों को क़ैद किया गया था (6वीं सदी BCE), तब ईरानी राजा साइरस महान (Zoroastrian) ने उन्हें आज़ादी दिलाई. यही कारण है कि आज भी यहूदी, साइरस को मसीहा की तरह देखते हैं. तेहरान में एक ज़ोरास्ट्री मंदिर आज भी ऐसा है, जहाँ हिब्रू में साइनबोर्ड लगे हैं.
हथियारों से भरा भविष्य
आज ईरान क्या कर रहा है?
- Hezbullah (लेबनान) और Hamas (ग़ाज़ा) को सपोर्ट करता है.
- Syria में मिलिट्री बेस बना रहा है.
- खुद का nuclear program चला रहा है.
और इज़रायल क्या कर रहा है?
- Mossad (जासूसी एजेंसी) से ईरानी वैज्ञानिकों की हत्याएं.
- Lebanon और Syria में air strikes.
- UN में ईरान के खिलाफ कूटनीतिक अभियान.
लेकिन ईरान में क्यों बनी यह लड़ाई ज़हर?
Zoroastrianism अब ईरान में सिर्फ नाम का धर्म बचा है. 1979 के बाद, वहाँ शिया इस्लाम के कट्टर रूप को लागू किया गया. पारसियों को जबरन धर्म परिवर्तन करवाया गया या देश छोड़ने पर मजबूर किया गया.
आज ईरान में Zoroastrian बचे हैं सिर्फ 20,000 से कम. जबकि भारत में इनकी संख्या अब भी 50,000 के करीब है.
Islamic Regime के लिए यहूदी, Zionist और Israel - तीनों शत्रु हैं. Zoroastrianism तो अब उनके लिए गुजरे जमाने की मूर्ति-पूजा बन गया है.
आज की तस्वीर: परमाणु, हिज़्बुल्लाह और मिसाइलें
ईरान लगातार परमाणु बम की ओर बढ़ रहा है.
इज़रायल इसे रोकने के लिए कई साइबर हमले, सैन्य हमले और वैज्ञानिकों की हत्या कर चुका है.
ईरान की शिया मिलिशिया - हिज़्बुल्लाह (लेबनान), हौथी (यमन), PMF (इराक) - ये सब इज़रायल को घेरने के लिए तैयार हैं.
हाल ही में ईरान ने पहली बार सीधा हमला किया - April 13, 2024 को 300+ ड्रोन और मिसाइल इज़रायल पर फेंकीं.
इज़रायल ने अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से 99% हमले विफल किए.
अब दुनिया के सबसे पुराने धार्मिक झगड़ों में से एक, परमाणु युद्ध की कगार पर है.
DNA नहीं, विचारों का युद्ध
Zoroastrians और Jews - दोनों उत्पीड़ित लोग थे.
- दोनों ने अपना घर खोया,
- दोनों ने नया देश ढूंढ़ा (Israel और India),
- दोनों ने धर्म को जीवित रखा.
और अब irony ये है - एक (Zoroastrian मूल की धरती) यानी ईरान,
दूसरे (Jewish राष्ट्र) यानी इज़रायल का सबसे बड़ा दुश्मन है.
क्या फिर होगी शांति?
ये सवाल सिर्फ इतिहास नहीं पूछता - ये सवाल आज का है:
क्या Zoroastrianism कभी वापस ईरान लौटेगा?
क्या इज़रायल और ईरान फिर दोस्त बन सकते हैं?
क्या हिंदुस्तान वो पुल बन सकता है - जो इन दो संस्कृतियों को जोड़ सके?
भविष्य की तस्वीर
आज ईरान और इज़रायल की लड़ाई सिर्फ सीमा या राजनीति की नहीं है - ये सभ्यता की लड़ाई बन चुकी है. एक तरफ वो देश है जो कभी असुरों का देश था - जिसने सत्य, प्रकाश और आग को पूजा.
दूसरी तरफ वो देश है जो कभी यहूदियों की वादा की गई ज़मीन था - जहां से सृष्टि, नियम और एकेश्वरवाद फैला. दोनों के बीच अब खून की दीवार खड़ी है. पर क्या ये दीवार धर्म की है? या सत्ता की? क्या इज़रायल असुरों की आत्मा का बदला ले रहा है? या फिर ईरान यहूदी प्रभुत्व से डरकर हावी हो रहा है?
Asura और Zion - कौन सच्चा?
सच ये है कि इतिहास को कोई एक धर्म, कोई एक राजा, कोई एक किताब नहीं परिभाषित कर सकती. Ahura Mazda और Yahweh दोनों ईश्वर हैं - बस इंसानों ने उन्हें हथियार बना लिया. Iran और Israel दोनों सभ्यताएं हैं - बस नेताओं ने उन्हें दुश्मन बना लिया. Parsis और Jews दोनों सताए गए - दोनों ने नए देश ढूंढे - भारत और इज़रायल.
शायद एक दिन ऐसा आए जब तेहरान में फिर से यहूदी मंदिर बजे.
शायद यरूशलम में कभी फिर Zoroastrians आग जलाएं.
शायद… इतिहास फिर इंसानियत को मौका दे.
भारत : खोई हुई सभ्यता की आखिरी लौ
भारत में बसे पारसी, ज़ोरास्ट्री परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं.
मुंबई, नवसारी और पुणे जैसे शहरों में आग के मंदिर (Fire Temples) हैं, जो Ahura Mazda को समर्पित हैं.
भारत में पारसी समाज ने कभी यहूदियों के साथ दुश्मनी नहीं रखी. दोनों अल्पसंख्यक समुदाय, एक दूसरे के साथ सहज रहे.
यहाँ तक कि जब इज़रायल का निर्माण हुआ, तब भारत के यहूदियों और पारसियों ने एक-दूसरे के त्योहारों में भाग लिया. इज़रायल ने कई पारसी कारोबारियों को विशेष सम्मान भी दिए.
भारत में पारसी समुदाय ने आजाद हवा में सांस ली. टाटा, गोदरेज, होमी भाभा जैसे नाम भारत की रगों में बहते हैं. इन्होंने भारत को सिर्फ उद्योग नहीं, विचार, विज्ञान और समाज सेवा भी दी. मुंबई के टावर ऑफ साइलेंस, जहाँ पारसी मृतकों को गिद्धों के हवाले करते हैं, आज धर्म और विज्ञान का अनोखा संगम हैं. इन्होंने कभी किसी से दुश्मनी नहीं की - न मुसलमान से, न हिंदू से, न यहूदी से. भारत
- पारसियों को पूरा सम्मान देता है.
- Israel और Iran - दोनों से रिश्ते रखता है.
- दुनिया का एकमात्र देश है जहाँ Zoroastrians खुले में पूजा कर सकते हैं.
- और भारत ही वो धरती है जहाँ 'Asura' कहे जाने वाले Zoroastrians, देव बनकर बस पाए.
- भारत के पास Israel की military technology है.
- साथ ही, भारत ईरान से तेल और ट्रेड करता है.
- और भारत - Zoroastrians की आख़िरी ज़मीन है, जहाँ Ahura Mazda की लौ आज भी जलती है.