Balochistan: बगावत की जड़ें कहां से? क्यों पाकिस्तान की गले की फांस बने बलोची? देश बना तो लुट जाएगा पाकिस्तान!

बलोचिस्तान: वो ज़मीन जो पाकिस्तान के नक्शे में तो है, पर दिल में नहीं. अंग्रेजों की चाल, पाकिस्तान की लूट, और बलोचों की बगावत ने बना दिया है इसे सबसे बड़ा टाइम बम. जानिए कैसे एक अलग देश बनने की कोशिश, पाकिस्तान को तोड़ने की ओर ले जा रही है.;

By :  अमन बिरेंद्र जायसवाल
Updated On : 22 May 2025 1:29 PM IST

'काना यारी गद्दारी, इश्क़-ए-नामें घार आइदा...'

ये लाइन आपने कोक स्टूडियो के एक बलोची गाने में सुनी होगी - और पहली बार सुनते वक्त आपको लगा होगा कि ये किसी महबूब की बेवफाई की कहानी है.

लेकिन जनाब, ये सिर्फ इश्क़ की नहीं - एक क़ौम के साथ हुए धोखे की दास्तान है.

बलूचिस्तान के हर जवान की रग-रग में बसती है ये टीस -

'वो पहले यारी करते हैं, फिर गद्दारी करते हैं... वहां इश्क़ का कोई घर नहीं.'

ये गाना बगावत की नज़्म है, एक अधूरी आज़ादी की दास्तान, एक ऐसी ज़मीन की पुकार जो खुद को कभी पाकिस्तान का हिस्सा मानती ही नहीं थी.

जब कोई बच्चा ज़बरदस्ती गोद में डाला जाए… जब कोई ज़मीन बिना पूछे हड़प ली जाए… जब कोई मज़लूम अपनी ही मिट्टी में ग़ैर बन जाए… तो वहां बारूद नहीं, बगावत पनपती है.

सुनहरी रेत से ढंकी, गैस-तेल-तांबे और सोने से भरी ये ज़मीन… जिसके नीचे खजाना है, पर ऊपर खून बहता है.

जहां सूरज गरम है, पर दिलों में लपटें उससे भी तेज़ हैं.

जहां एक सवाल सदियों से गूंज रहा है - हम पाकिस्तानी कब से हो गए?

1947 में जब पाकिस्तान बना, तो सबको लगा कि एक नया मुल्क जन्म ले रहा है. लेकिन उसी वक्त बलूचिस्तान एक अलग कहानी लिख रहा था. खान ऑफ़ कलात, जो बलूचिस्तान का राजा था, उसने कहा – हम ना भारत में जाएंगे, ना पाकिस्तान में. हम आज़ाद हैं, हम तो खुद ही एक मुल्क हैं. ये दावा कोई सपना नहीं, दस्तावेज़ी सच्चाई थी. आज पाकिस्तान का सबसे बड़ा सूबा, बलूचिस्तान, कभी उसका हिस्सा था ही नहीं.

1947 में जब भारत और पाकिस्तान को आज़ादी मिली, उस वक्त बलूचिस्तान एक नहीं बल्कि तीन हिस्सों में बंटा हुआ था-

खान ऑफ़ कालात (State of Kalat)

  1. यह बलूचों की स्वतंत्र रियासत थी, जिसकी अपनी पहचान, राजशाही और संधियाँ थीं.
  2. मीर अहमद यार खान इसके शासक थे, और उन्होंने 11 अगस्त 1947 को कालात को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया, जो भारत और पाकिस्तान - दोनों से अलग था.
  3. ब्रिटिश राज में कालात को एक 'princely state under treaty obligations' माना जाता था, और 1947 में ब्रिटिश सरकार ने इसे स्वतंत्र मान्यता दी.

ब्रिटिश बलूचिस्तान (British Balochistan)

  1. यह इलाका ब्रिटिश द्वारा सीधे शासित था, जिसमें क्वेटा, पशीन, चगाई, झोब जैसे इलाके आते थे.
  2. इसे 'Chief Commissioner's Province' कहा जाता था.
  3. भारत-पाक विभाजन के वक्त यह हिस्सा सीधे पाकिस्तान में चला गया, बिना जनमत-संग्रह या स्वतंत्र इच्छा के.

फ्रंटियर स्टेट्स (मकरान, लसबेला, खारान)

  1. ये राज्य कालात के जागीरदार माने जाते थे, लेकिन धीरे-धीरे इन्होंने स्वतंत्रता का दावा करना शुरू किया.
  2. 1948 में इन रियासतों ने खुद को पाकिस्तान में मिला लिया, लेकिन यह प्रक्रिया भी बहुत विवादास्पद रही.

11 अगस्त 1947: स्वतंत्रता की घोषणा

ब्रिटिश राज से आज़ादी के समय, बलूचिस्तान के खान ऑफ़ कालात, मीर अहमद यार खान ने 11 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता की घोषणा की. यह घोषणा ब्रिटिश सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त थी, और बलूचिस्तान ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में 227 दिनों तक अस्तित्व बनाए रखा.

कालात और भारत: जो इतिहास भूला दिया गया

सबसे पहले ऑफर भारत को मिला.

जब 11 अगस्त 1947 को खान ऑफ़ कालात, मीर अहमद यार खान ने कालात को स्वतंत्र घोषित किया,

उन्होंने भारत और पाकिस्तान-दोनों से Treaty of Independence के तहत स्वतंत्र रहने की इच्छा जताई थी, क्योंकि कालात को 11 अगस्त 1947 को ब्रिटेन ने स्वतंत्र रियासत के रूप में मान्यता दी थी.

तब मीर अहमद यार खान की जानकारी के बिना उनके प्रधानमंत्री नवाबजादा मोहम्मद असलम खान ने भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और नेहरू सरकार को एक प्रस्ताव भेजा.

भारत से विलय का प्रस्ताव

इस प्रस्ताव में कालात राज्य के भारत संघ में शामिल होने की इच्छा जताई गई थी.

Kalat State के प्रधानमंत्री Nawabzada Aslam Khan ने भारत सरकार को प्रस्ताव दिया:

'हम भारत में शामिल होना चाहते हैं या treaty-based स्वतंत्रता चाहते हैं.'

भारत ने मना कर दिया. लेकिन भारत ने प्रस्ताव क्यों ठुकराया?

भारत ने राजनयिक चुप्पी अपनाई और स्पष्ट रूप से इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. क्यों?

भारत उस समय राज्यों का एकीकरण (Integration) बहुत ही रणनीतिक संतुलन से कर रहा था. बलूचिस्तान भारत से भौगोलिक रूप से पूरी तरह अलग-थलग था. साथ ही, नेहरू सरकार नहीं चाहती थी कि भारत और पाकिस्तान के बीच एक और विवादित क्षेत्र बने, क्योंकि कश्मीर पहले से ही गंभीर मुद्दा बन चुका था. नेहरू और सरदार पटेल नहीं चाहते थे कि ये मामला इंटरनेशनल स्तर पर विवाद बने, खासकर जब जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसे मुद्दे पहले से चल रहे थे.

उधर पाकिस्तान बेचैन था.

क्योंकि अगर बलूचिस्तान अलग रहता, तो पाकिस्तान को समुद्र तक पहुंचने का रास्ता ही नहीं मिलता. ग्वादर पोर्ट, अरब सागर, और आगे चीन से संपर्क - सब खतरे में पड़ जाते. और यहीं से शुरू हुआ बलूचिस्तान पर पाकिस्तान की ज़बरदस्ती का खेल.

फिर पाकिस्तान ने क्या किया?

जब भारत ने प्रस्ताव नहीं स्वीकारा, तो खान ऑफ कालात ने स्वतंत्र रहने का फैसला किया.

लेकिन पाकिस्तान ने इस आज़ादी को कभी मान्यता नहीं दी.

पाकिस्तान ने 1948 में बलूचिस्तान (खासतौर पर ख़ानत-ए-कालात) पर कब्ज़ा साफ़ तौर पर मिलिट्री प्रेशर यानी सैन्य दबाव के ज़रिए किया था.

यह कोई संधि या लोकतांत्रिक विलय नहीं था - बल्कि एक राजनीतिक धोखा और सेना की धमकी से किया गया 'forced accession' था, जिसे आज भी बलूच नेता 'illegal annexation' कहते हैं.

क्या हुआ था 1947-48 में?

11 अगस्त 1947:

ख़ान ऑफ कालात (Mir Ahmad Yar Khan) ने खुद को एक स्वतंत्र राजा घोषित किया.

पाकिस्तान और ब्रिटिश दोनों ने उस वक्त इस आज़ादी को 'डिस्टर्ब' नहीं किया, बल्कि पाकिस्तान ने कालात को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्थायी मान्यता भी दी थी.

यानि कुछ महीने तक कालात एक इंडिपेंडेंट किंगडम की तरह पाकिस्तान और दुनिया के सामने खड़ा रहा.

अब असली खेल शुरू हुआ

पाकिस्तान ने बलूच क्षेत्रों के छोटे-बड़े स्टेट्स (Kharan, Makran, Las Bela) को पहले ही अपने साथ मिला लिया था.

अब केवल कालात बचा था - जो सबसे बड़ा और प्रमुख बलूच इलाका था.

मार्च 1948: फौजी दबाव

  1. पाकिस्तानी फौज ने बलूच इलाकों की सीमाओं पर मूवमेंट शुरू की.
  2. लाहौर से लेकर क्वेटा तक अफसरों को 'रेड अलर्ट' पर रखा गया.
  3. उसी समय खान ऑफ कालात पर भारी दबाव बनाया गया कि वे पाकिस्तान में विलय के दस्तावेज़ पर दस्तखत करें.

27 मार्च 1948 को, कालात के शासक मीर अहमद यार खान ने पाकिस्तान में विलय के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए. यह निर्णय उस समय लिया गया जब ऑल इंडिया रेडियो ने घोषणा की कि कालात ने भारत में शामिल होने की पेशकश की थी, जिसे भारत ने अस्वीकार कर दिया. इस घोषणा के बाद, खान ने पाकिस्तान में विलय का निर्णय लिया.

हालांकि पाकिस्तान सरकार ने कालात के विलय को एक स्वैच्छिक निर्णय के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन कई स्रोतों के अनुसार, यह निर्णय राजनीतिक दबाव और सैन्य धमकी के तहत लिया गया था.

तब से अब तक 5 बार बलूचों ने बगावत की

1948, 1958, 1962, 1973, और अब 2004 से लगातार चल रही छठी लड़ाई.

हर बार पाकिस्तान ने टैंकों से जवाब दिया, और हर बार बलूच ज़मीन से चिपके रहे.

हर बार बलूच लड़े, हर बार पाकिस्तान ने बम बरसाए, और हर बार दुनिया चुप रही.

आज बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे संसाधन-सम्पन्न इलाका है. नेचुरल गैस, सोना, कोयला, यूरेनियम - सब कुछ यहीं है. पाकिस्तान की कुल गैस का 36% यहीं से आता है, मगर खुद बलूचिस्तान के गांवों में चूल्हे लकड़ी से जलते हैं. बिजली नहीं, स्कूल नहीं, अस्पताल नहीं - और अगर कोई आवाज़ उठाए, तो वो 'गायब' हो जाता है.

'Missing Persons' – ये शब्द यहाँ रोज़ सुना जाता है. हज़ारों युवा, छात्र, पत्रकार, एक्टिविस्ट, गायब कर दिए जाते हैं. कुछ का शव मिलता है, कुछ mass graves में दफन. मांएं सड़कों पर बैठी हैं, तस्वीरें लिए - कोई बेटा लौट आए.

इन सबके बीच, armed struggle आज भी जारी है.

BLA (Baloch Liberation Army), BRA, UBLF जैसे संगठन पाकिस्तान और चीन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं.

CPEC, जो पाकिस्तान का 'economic dream' है, बलूचों के लिए मौत का सौदा है.

ग्वादर पोर्ट को Chinese colony बनने से रोकने की लड़ाई अब दुनिया देख रही है.

DNA: नस्ल, नस्लियत और नसों का नक्शा

बलूच लोग कौन हैं? कहां से आए थे?

ये सवाल जितना राजनीतिक है, उतना ही जेनेटिक भी.

बलूच लोग नस्लीय तौर पर कई Ethno-Genetic धागों से बुने गए हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

Aryan-Iranian मूल: बलूच लोग खुद को ईरान से आए Aryan tribes का वंशज मानते हैं.

सेमिटिक और द्रविड़ प्रभाव: कुछ बलूच समुदायों में ब्राहुई जैसी भाषाएं और DNA markers दिखाते हैं कि वे कभी भारत के दक्षिणी भाग से भी जुड़े थे.

Mitochondrial DNA टेस्ट से पता चलता है कि बलूच जनजातियों के अंदर Central Asia, Caucasus, और यहां तक कि कुछ Levantine (Lebanon, Syria) traces भी मिलते हैं.

यानी बलूच शरीर से पाकिस्तान के नक्शे में हैं, लेकिन उनके जीन पूरी प्राचीन दुनिया की दास्तान कहते हैं.

इतिहास: एक कबीलों की सल्तनत

कब से हैं बलूच?

बलूच लोगों का ज़िक्र पहली बार हमें मिलता है 10वीं सदी में, जब एक फारसी इतिहासकार अल-मक़दसी लिखता है कि बलूच लोग 'पहाड़ों में रहने वाले बहादुर और आज़ाद कौम' हैं. 12वीं–13वीं शताब्दी में मीर चाकर खान रिंद और मीर गोहेर खान लश्कारी जैसे नाम सामने आते हैं, जो बलूच पहचान के पहले राजनैतिक प्रतीक बनते हैं.

ये लोग कबीलों में बंटे थे, लेकिन इन्होंने एक loosely knit tribal confederacy बनाई, जिसमें आत्म-निर्णय और स्वतंत्रता ही सबसे बड़ा कानून था.

ख़ास राज्य – ख़ास कहानी: ख़ान ऑफ कलात

बलूच इतिहास का सबसे अहम मोड़ तब आता है जब 1666 में ‘ख़ान ऑफ कलात’ की स्थापना होती है. ये कोई गांव का राजा नहीं, बल्कि पूरा एक राज्य था:

ख़ान मीर अहमद यार खान, बलूचिस्तान के अंतिम शासक हुए, जिन्होंने ब्रिटिश इंडिया के साथ Standstill Agreement साइन किया.

ब्रिटिशों ने कलात को 'A fully sovereign state under indirect rule' माना था.

मतलब ये कि आज़ादी के वक्त बलूचिस्तान, पाकिस्तान की जायदाद नहीं था. वो खुद एक आज़ाद देश था.

कौन हैं बलूच?

बलूच एक प्राचीन नस्लीय समूह हैं, जिनकी जड़ें ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक फैली हुई हैं. बलूचिस्तान तीन देशों में बंटा हुआ है - ईरान का सिस्तान-बलूचिस्तान, पाकिस्तान का बलूचिस्तान, और अफगानिस्तान का दक्षिण-पश्चिमी हिस्सा.

बलूचों की भाषा है बलूची, जो फारसी, कुर्दिश और पाश्तो से मिलती-जुलती है.

धर्म से ये ज़्यादातर सुन्नी मुसलमान हैं, लेकिन इनमें ज़ातीय, कबीलाई पहचान ज़्यादा मज़बूत है. बलूच समाज में 'तुम मुसलमान पहले हो या बलूच?' पूछने पर जवाब आता है - 'मैं पहले बलूच हूं, मुसलमान बाद में.'

इनकी संस्कृति में गीत, शायरी, हथियार और घोड़े बहुत अहम हैं. बलूचों के लिए आज़ादी सिर्फ एक राजनीतिक मांग नहीं, उनकी संस्कृति और अस्मिता का हिस्सा है.

धर्म और पहचान की खाई

हालांकि बलूचिस्तान की बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम है, लेकिन उनका इस्लाम सूफी और आदिवासी परंपराओं से जुड़ा हुआ है.

उनके कबीलाई नियम और इज़्ज़त के क़ानून, अक्सर पाकिस्तान के आधुनिक इस्लामी ढांचे से टकराते हैं.

बलूचों के लिए पहले बलूच होना ज़रूरी है, मुसलमान होना बाद में आता है - और यही चीज़ पाकिस्तानी स्टेट से उनका टकराव बढ़ाती है.

आज़ादी की प्यास: संस्कृति से आंदोलन तक

बलूच आंदोलन केवल राजनीतिक नहीं, संस्कृतिक विद्रोह भी है.

जब पाकिस्तान कहता है कि 'आप हमारे हैं', बलूच संस्कृति पूछती है, 'तो फिर हमारी ज़ुबान, हमारे हीरो, हमारी यादें क्यों मिटा रहे हो?'

बलूचिस्तान में स्कूलों से बलूची भाषा हटाई गई, पुस्तकों में उनके इतिहास को दरकिनार किया गया.

रेडियो और टीवी पर बलूच लोकगीतों की जगह 'राष्ट्रीयता' थोपी गई.

बलूच खुद को पाकिस्तान का नहीं मानते, बल्कि कहते हैं – 'हमसे मुल्क छीना गया, हमें कब्ज़ा कर लिया गया.'

अलगाव की आग: क्यों मांगते हैं आज़ादी?

बलूचिस्तान पाकिस्तान के कुल इलाके का 44% है, लेकिन वहां की आबादी सिर्फ 5%.

बलूचिस्तान पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का इंजन है:

  1. गैस का सबसे बड़ा स्रोत
  2. कोयला, तांबा, यूरेनियम, सोना, लोहा
  3. और सबसे स्ट्रैटेजिक-ग्वादर पोर्ट, जो CPEC का जड़ है.

लेकिन वहां के लोग क्या पाते हैं?

  1. शिक्षा में सबसे पीछे
  2. स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे पिछड़ा
  3. बेरोजगारी सबसे ज़्यादा
  4. जबरन गायब किए गए हजारों नौजवान
  5. मिलिट्री का बूट हर दिन उनकी छाती पर

बलूचों का आरोप है- पाकिस्तान हमारी जमीन को खाता है, लेकिन हमारे बच्चों को भूखा रखता है.

बलूचिस्तान में है:

  1. पाकिस्तान के कुल गैस उत्पादन का 36%
  2. कोयले का 90%
  3. सोना, तांबा, यूरेनियम के खज़ाने
  4. ग्वादर पोर्ट – China-Pak CPEC का मोती

फिर भी?

  1. 46% से ज़्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे
  2. Infant mortality सबसे ज़्यादा
  3. Literacy rate सिर्फ 41%
  4. हर 100 में से 25 बच्चे स्कूल नहीं जाते

Sui से गैस पूरे पाकिस्तान को जाती है, पर खुद Sui अंधेरे में जीता है.

Rebellion Groups – हथियारबंद उम्मीद

आज बलूच armed struggle चला रहे हैं:

  1. BLA (Baloch Liberation Army)
  2. BRA (Baloch Republican Army)
  3. UBLF (United Baloch Liberation Front)

ये ग्रुप्स CPEC, ग्वादर और पाक आर्मी को निशाना बनाते हैं. China के engineers को बम से उड़ाना आम बात हो चुकी है.

बलूचिस्तान की सरज़मीं आज भी उस दर्द को अपने सीने में दबाए बैठी है, जिसे वहां की 'माएं सालों से हर दरगाह, हर दरबार, हर दफ्तर के बाहर तलाश रही हैं - अपने ग़ायब बेटों की शक्ल में.'

यहां एक शब्द है जो हर घर, हर गली और हर मुहल्ले में गूंजता है - 'Missing Persons'.

यह वो लोग हैं जिन्हें या तो सुरक्षा एजेंसियां उठाकर ले जाती हैं, या जो कभी घर लौट कर नहीं आते.

कोई कोर्ट, कोई वारंट, कोई मुकदमा नहीं - बस अचानक एक सुबह दरवाज़ा टूटता है, और बेटा, भाई, बाप उठाकर ले जाया जाता है. महीनों, सालों बीत जाते हैं - कोई खबर नहीं.

और जब खबर आती है…

या तो किसी पहाड़ी से एक अधजला शव बरामद होता है,

या फिर किसी रेगिस्तान में गड़ा एक Mass Grave खुलता है,

जहां कई लाशें बिना पहचान, बिना कफ़न, एक के ऊपर एक दफ़नाई जाती हैं.

Human Rights Commission of Pakistan (HRCP) के मुताबिक:

  1. अब तक 20,000 से ज़्यादा बलूच ग़ायब किए जा चुके हैं, जिनमें छात्रों से लेकर बुज़ुर्गों तक हर कोई शामिल है.
  2. इनमें से अधिकांश या तो वापस नहीं आते, और जो लौटते हैं - वो ज़िंदा कम और लाश ज़्यादा होते हैं.

माएं जो झुकी नहीं, थकी नहीं

इन लापता लोगों की माएं - जिन्हें बलूचिस्तान में 'दर्द की देवी' कहा जाता है - सालों से सड़कों पर बैठी हैं. नारे नहीं, आँसू बोलते हैं.

Qadeer Baloch (Mama Qadeer) जैसे एक्टिविस्ट ने 3000 किलोमीटर का पैदल मार्च किया, ताकि पाकिस्तान की राजधानी तक बलूच आवाज़ पहुंच सके.

कराची से इस्लामाबाद, क्वेटा से लाहौर तक ये महिलाएं तख्तियों और तस्वीरों के साथ प्रदर्शन करती हैं, जिन पर लिखा होता है - मेरे बेटे को वापस करो, 5 साल से ग़ायब है – ज़िंदा है या मरा, बताओ.

लेकिन जवाब में अक्सर मिलता है – खामोशी, डर और कभी-कभी एक और लाश.

Extra-Judicial Killings: खौफ का सिस्टम

बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे मिलिट्राइज़्ड रीजन है, जहां फौज, FC, और ISI हर शहर पर हावी हैं.

यहां हर dissent, हर विरोध को 'देशद्रोह', 'RAW एजेंट' या 'सुरक्षा के लिए खतरा' कहकर कानून से पहले ही सजा दे दी जाती है.

कोर्ट में केस चले – ऐसा rarely होता है.

Amnesty International, UNHRC और कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने पाकिस्तान पर 'forcible disappearances' और mass graves की कड़ी आलोचना की है.

तो क्यों नहीं रुक रहा ये सब?

क्योंकि बलूचिस्तान की लड़ाई सिर्फ आज़ादी की नहीं, बल्कि पहचान, इज्ज़त और इंसान होने के हक़ की है.

पाकिस्तान के लिए वो एक 'रिसोर्स हब' है – जहां से गैस, कोयला, सोना और अब CPEC जैसी बड़ी योजनाएं निकाली जाती हैं. लेकिन वहां के लोगों को बदले में सिर्फ ग़ायब कर दिए जाने का खौफ और चीखती हुई माओं की चुप्पी मिलती है. बलूचिस्तान का Missing Persons का मुद्दा, दुनिया के सामने पाकिस्तान की सबसे बड़ी हिपोक्रेसी को उजागर करता है - एक 'इस्लामिक रिपब्लिक' जहां इंसान का नामोनिशान तक मिटा दिया जाता है.

भारत का रोल और पाकिस्तानी डर

Pakistan बार-बार आरोप लगाता है कि India via RAW Baloch militants को ट्रेनिंग और हथियार देता है.

पाकिस्तान का दावा है कि बलूचिस्तान में चल रही आज़ादी की मांग के पीछे भारत है. कभी RAW का नाम लेते हैं, कभी मोदी का, कभी अफगानिस्तान में बैठे 'Indian Consulate' का. 2016 में तो भारत ने पहली बार खुलकर बलूचिस्तान की बात की-जब PM मोदी ने लाल किले से बलूचों का जिक्र किया. यह पहली बार था जब भारत ने globally इस मुद्दे को उठाया, बलोचों ने PM Modi को hero बना लिया. बलूच डाइस्पोरा ने PM को 'मसीहा' कह दिया. Pakistan तब से चिल्ला रहा है – RAW की साज़िश है! लेकिन हकीकत ये है - ये जंग बलूच अपनी पहचान के लिए लड़ रहे हैं, और बहुत पहले से लड़ रहे हैं.

अगर बलूचिस्तान आज़ाद होता है, तो पाकिस्तान की कमर टूट जाएगी. ग्वादर चला जाएगा, CPEC का खात्मा होगा, और चीन को अरब सागर में access मिलना रुक जाएगा. भारत को भी स्ट्रेटजिक बढ़त मिलेगी, लेकिन नया मुस्लिम देश क्या स्थिर रहेगा? क्या ये अफगानिस्तान बनने से बचेगा? क्या कट्टरपंथ वहां भी पनपेगा?

India के लिए बलूचिस्तान सिर्फ एक भूभाग नहीं, बल्कि पाकिस्तान की hypocrisy को बेनकाब करने का जरिया है-जो खुद कश्मीर में इंसाफ़ की बात करता है, लेकिन बलूचिस्तान में इंसानियत कुचलता है.

अगर बलूचिस्तान आज़ाद हो गया तो?

  1. पाकिस्तान का नक्शा बदलेगा.
  2. उसके पास न तेल रहेगा, न गैस.
  3. CPEC डूब जाएगा.
  4. ग्वादर पोर्ट चीन के हाथ से निकल जाएगा.
  5. और सबसे बड़ी बात-भारत के लिए स्ट्रैटेजिक बफर ज़ोन बन जाएगा.

बलूच आज़ाद होते हैं, तो भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधा रास्ता खुलेगा.

दोस्त बनेंगे या दुश्मन?

बलूचों की ideology सेक्युलर है, और पाकिस्तान से नफ़रत इतनी गहरी है कि भारत उनके लिए 'धर्म का दुश्मन' नहीं, 'ज़ुल्म का दुश्मन' लगता है. बलूच लीडर्स जैसे हिरबियार मर्री, ब्रह्मदाग़ बुग्ती, मजहर बलोच, भारत को ally मानते हैं.

अगर बलूचिस्तान एक दिन आज़ाद हुआ, तो भारत के लिए ये एक 'इस्राइल जैसा दोस्त' हो सकता है-छोटा, घेराबंदी वाला, लेकिन भरोसेमंद.

लेकिन खतरा भी...

बलूचिस्तान की आज़ादी पाकिस्तान को और ज़्यादा कट्टर बना सकती है.

ISI नए प्रॉक्सी खोल सकती है.

आतंकी संगठन भारत में बदले की कार्रवाई कर सकते हैं.

Strategic फायदे:

  1. पाकिस्तान टुकड़ों में बंटेगा.
  2. China का CPEC ध्वस्त.
  3. Arabian Sea में भारत की indirect पहुंच.
  4. एक स्वतंत्र, secular बलूच राष्ट्र भारत का ally बन सकता है.

Risk factors:

  1. नया मुस्लिम राष्ट्र कट्टरपंथी हुआ तो नया headache.
  2. China सीधे military base डाल सकता है.
  3. Islamic militancy vacuum में उग सकती है.

Sindhudesh: सूफ़ी धरती सिंध मांग रही पाकिस्तान से आज़ादी, झूलेलाल की ज़मीन पर लहरा रहा बगावत का झंडाक्या Balochistan अगला Bangladesh बनेगा?

Jinnah ने कहा था - East Pakistan is an integral part of Pakistan. फिर 1971 में एक नया मुल्क बना. आज Balochistan का हाल वही है

Similar News