गाजियाबाद में कितने रैकेट : छांगुर बाबा के धर्मांतरण अड्डे और फर्जी दूतावास थाना पुलिस चलवाती है, कैसे मकड़जाल बुनता रहा हर्षवर्धन?

गाजियाबाद में फर्जी दूतावास कांड ने पुलिस महकमे की कलई खोल दी है. कवि-नगर थाना क्षेत्र में किराए की कोठी में चार-चार देशों के फर्जी दूतावास चल रहे थे, जिनका भंडाफोड़ यूपी एसटीएफ ने किया. इस काले कारोबार की भनक न लगने पर एलआईयू और कवि-नगर थाना पुलिस पर मिलीभगत के आरोप लगे. पूर्व डीजीपी डॉ. विक्रम सिंह ने कहा कि इतनी बड़ी ठगी बिना लोकल पुलिस के सहयोग के संभव नहीं. अब गाजियाबाद पुलिस अधिकारियों पर सवाल उठ रहे हैं कि कार्रवाई क्यों नहीं हुई.;

देश की राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के हाईटेक शहर में हुए फर्जी दूतावास भंडाफोड़ ने गाजियाबाद पुलिस को मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा है. अब जब गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट की स्थानीय सूचना इकाई (Local Intelligence Unit Ghaziabad LIU) और उसके थाना कवि-नगर थाने के गले में विभागीय कार्रवाई का फंदा फंसता दिखाई दिया, तो जिला पुलिस अफसरों का लाव-लश्कर, संदिग्ध भूमिका वाले अपनी जिला पुलिस खुफिया तंत्र और कवि नगर थाना पुलिस को ‘रगड़ने’ के बजाए, खाल बचाने के लिए बहाने तलाशने में जुट गए हैं.

पहला बहाना कि गाजियाबाद में घुसकर यूपी एसटीएफ ने अगर इतने बड़े काले-कारोबार के मकड़जाल को तार-तार कर डाला, तो कौन सा गुनाह हो गया है? वह भी तो (उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्क) अपने ही महकमे की पुलिस-टीम है. गुडवर्क तो सूबे की पुलिस की ही एसटीएफ ने किया है. अगर गाजियाबाद पुलिस की एलआईयू या वह कवि-नगर थाना पुलिस कई साल से नाक के नीचे एक ही कोठी में चल रहे, चार-चार देशों के फर्जी दूतावासों और ठगी के मास्टरमाइंड नकली राजदूत हर्षवर्धन को नहीं पकड़ सकी, तो कौन सा बड़ा गुनाह कर दिया गाजियाबाद पुलिस या थाना-कवि-नगर पुलिस ने?

चोरी की चोरी ऊपर से सीनाजोरी

चोरी की चोरी ऊपर से सीनाजोरी वाली कहावत पर अड़ी और ठगी के इस बड़े साम्राज्य का भंडाफोड़ यूपी एसटीएफ द्वारा किए जाने से पूरी तरह नंगी हो चुकी गाजियाबाद पुलिस, अब दूसरा बहाना यह बनाकर खुद की खाल बचाने में जुटी है कि जरूरी नहीं है कि इस तरह के बड़े और काले साम्राज्य की हर सूचना गाजियाबाद पुलिस की एलआईयू या लोकल थाना पुलिस (थाना कवि-नगर जिसकी नाक के नीचे कोठी में चार चार फर्जी दूतावास चल रहे थे) तक खुद-ब-खुद पहुंच ही जाए. इस बारे में स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने गाजियाबाद के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त आलोक प्रियदर्शी से बात की.

भला अपना ही अपने को क्यों नहीं बचाएगा?

एडिश्नल पुलिस कमिश्नर बोले, “देखिए इस मामले में जब हमारे पास कोई शिकायत लेकर आया ही नहीं, तब फिर हमें (गाजियाबाद पुलिस की खुफिया विंग और थाना कवि-नगर पुलिस) कैसे पता चलता कि इतना बड़ा ठगी का अड्डा कवि-नगर थाने की नाक के ठीक नीचे चल रहा है? एसटीएफ (जिसने ठगी के इस अंतरराष्ट्रीय अड्डे का भंडा फोड़कर गाजियाबाद पुलिस की एलआईयू और थाना कवि नगर पुलिस को चौतरफा घेरकर चौराहे पर ला खड़ा किया) के पास सूचना थी अपने नेटवर्किंग से तो उन्होंने पकड़ लिया इस अड्डे को. वह (यूपी पुलिस एसटीएफ) भी हमारा (गाजियाबाद या यूपी पुलिस) ही हिस्सा है न. मतलब, इससे नहीं है कि गाजियाबाद की एलआईयू और थाना कवि-नगर पुलिस क्यों कैसे चूक गई? सरोकार इससे होना चाहिए कि अपराध के अड्डे और अपराधी का भांडा फूट गया.”

 

लोकल थाना पुलिस मिली हुई होगी पक्का

इस बारे में स्टेट मिरर हिंदी ने बात की 1974 बैच के आईपीएस अधिकारी और उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह से. उन्होंने कहा, “देखिए बलरामपुर जिले में छांगुर बाबा-नसरीन द्वारा चलाया जा रहा धर्मांतरण का अड्डा हो या फिर, अब गाजियाबाद में यूपी एसटीएफ द्वारा तबाह किया गया थाना कवि-नगर की जड़ में संचालित चार चार फर्जी दूतावास. यह बिना थाना पुलिस के मिली भगत के चल ही नहीं सकते हैं. अरे भाई दो चार महीने की बात होती तो गले भी उतार लूं, हर्षवर्धन जैन जैसा मास्टरमाइंड ठग तो एक ही कोठी के अंदर छिपकर चार-चार फर्जी दूतावास चला रहा था. वह भी कोठी के बाहर तमाम देशों को झंडे टांगकर. मैं नहीं मानता कि बिना कवि नगर थाना पुलिस की मिलीभगत के इतना बड़ा ठगी का साम्राज्य खड़ा हो गया. चलिए मान लिया कि कवि-नगर थाना पुलिस मिली-भगत से खा-कमा रही होगी, तब फिर ऐसे में गाजियाबाद जिले की एलआईयू कहां सो रही थी?”

LIU-कवि नगर थाना पुलिस की सांठगांठ

अपनी दो टूक बात जारी रखते हुए सूबे के पूर्व पुलिस महानिदेशक आगे कहते हैं, “मैं अपने निजी लंबे आईपीएस अधिकारी के अनुभव से कह सकता हूं कि इस काले-कारोबार में गाजियाबाद जिले के कवि-नगर थाना पुलिस और लोकल इंटीलीजेंस यूनिट दोनों मिल-जुलकर अपना अपना उल्लू साध रहे होंगे बिना किसी शक के.” अगर गाजियाबाद की एलआईयू और कवि-नगर थाना पुलिस के बिना इतना बड़ा ठगी का अड्डा चल पाना संभव नहीं है तब फिर, गाजियाबाद के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त आलोक प्रियदर्शी क्यों और कैसे कह रहे हैं कि, एसटीएफ ने मामला पकड़ा या कवि-नगर थाना पुलिस नहीं पकड़ सकी? इससे क्या फर्क पड़ता है? पूछने पर डॉ. विक्रम सिंह बोले, “मैं किसी के कमेंट पर तो प्रतिक्रिया नहीं दूंगा. हां, इतना खुलकर कह सकता हूं कि पुलिस महकमे में जब हमाम में सब नंगे हों, तब अपना अपने को ही बचाने की हरसंभव कोशिश करता है. फिर ऐसे में बदनामी और नेकनामी की बात पांवों में पड़ी सिसकती है.

कवि-नगर थाना है या नगर-निगम दफ्तर?

मैं पूछता हूं कि कवि-नगर थाना पुलिस जिसकी नाक के नीचे ठगी का इतना बड़ा अड्डा चल रहा था, अगर वह इसमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इन्वॉल्व नहीं थी तब उसने, इस कांड का खुद पर्दाफाश क्यों नहीं किया? इस पर अब आप (स्टेट मिरर हिंदी) बता रहे हैं कि जिला गाजियाबाद के कोई एडिश्नल पुलिस कमिश्नर कह रहे हैं कि थाना पुलिस को किसी ने इस फर्जी दूतावास के बारे में खबर नहीं की थी. इसलिए कवि-नगर थाना पुलिस नहीं पकड़ सकी? मैं पूछता हूं कि कवि-नगर थाना और पुलिस है या फिर कोई नगर निगम या विकास प्राधिकरण? जिनको इलाके में हो रहे किसी ऐसे अनैतिक काले कारोबार से कोई वास्ता ही नहीं होता है.

कवि नगर थाना दूध का धुला तो फिर बताए...

पुलिस का तो काम ही ऐसे गोरखधंधों के अड्डों को बंद कराने का है. कवि नगर थाना पुलिस अगर ठग हर्षवर्धन जैन के साथ किसी भी तरह से मिली नहीं थी तो फिर सवाल यह है कि आखिर वह, इस बारे में थाने में शिकायत के खुद चलकर आने का इंतजार हाथ पर हाथ धरे बैठे क्यों रही? लखनऊ पुलिस महानिदेशालय का कोई सख्त मिजाज, या यूपी पुलिस के रिटायर्ड डिप्टी एसपी सुरेंद्र सिंह लौर उर्फ भगत जी जैसा कोई ईमानदार-तेज-तर्रार अफसर आकर पूछे गाजियाबाद पुलिस से कि कवि नगर पुलिस को जो काम करना चाहिए उसमें वह शिकायत का इंतजार क्यों करती रही इतने साल तक? और जिस जनता या आम आदमी का अपराध, कानून की रखवाली, थाने चौकी पुलिस से दूर-दूर का कोई लेना देना ही न हो. उस आम आदमी से गाजियाबाद पुलिस के एडिश्नल कमिश्नर उम्मीद कर रहे हैं कि कोई शिकायत देता इलाके में फर्जी दूतावास चलने की. तब गाजियाबाद पुलिस कोई कदम उठाती.

सब बकवास है थाना पुलिस को बचाने के लिए

सीधे सीधे गाजियाबाद के थाना कवि-नगर पुलिस को घेरने वाले पूर्व डीजीपी कहते हैं, “यह सब कोरी बकवास एसटीएफ के बाद इस मामले में फंस रहे कवि नगर थाना पुलिस और जिला एलआईयू टीम के गले से फंदा निकालने के लिए. मैं तो अब कुर्सी पर हूं नहीं. वरना मैं खुद कवि-नगर जैसे मक्कार थानों को सबक सिखा देता. सिखा ही नहीं देता जब मैं यूपी का डीजीपी था तब सिखाया भी है. पूछ लीजिए आज भी यूपी पुलिस में कि ऐसे कवि नगर जैसे मक्कार थाना पुलिस का क्या हाल करके रिटायर हुआ हूं अपने डीजीपी सेवाकाल में.”

क्या था फर्जी दूतावास का मामला

यहां जिक्र करना जरूरी है कि आजाद भारत में वह भी राजधानी दिल्ली की नाक के नीचे बसे यूपी के हाईटेक शहर गाजियाबाद में, किराए की एक ही कोठी में चार-चार फर्जी दूतावास चलने का यह पहला मामला है. इस मामले के जाल को भी गाजियाबाद पुलिस की एलआईयू या कवि नगर थाना पुलिस ने तार-तार नहीं किया है. वह तो भला हो कि गाजियाबाद की एलआईयू और जिस कवि-नगर थाने की जड़ में यह काला कारोबार चल रहा था, उन दोनों से बचते-बचाते किसी ने सीधे यूपी पुलिस की एसटीएफ से शिकायत कर दी. और एसटीएफ ने इस मामले का 22 जुलाई 2025 को भंडा फोड़कर, गाजियाबाद पुलिस की स्थानीय खुफिया सूचना इकाई व कवि-नगर थाना पुलिस को ही संदेह के घेरे में ला खड़ा किया.

अपना लूटे अपना ही बचाए!

इस पर गाजियाबाद पुलिस अफसरों का अब इस मामले में फंस रहे ‘अपनों’ को बचाने की नाकाम कोशिश में यह कहना कि, इस अड्डे के बारे में जब किसी ने थाना पुलिस को खबर ही नहीं दी, तब फिर ठगी के इस अड्डे का वह (कवि नगर थाना पुलिस) खुलासा कैसे कर पाते? मतलब, गाजियाबाद पुलिस के अफसरों की इस तुकबंदी से तय है कि, आइंदा भी इस कांड के लिए जिम्मेदार कवि-नगर थाना पुलिस के उन एसएचओ, दारोगा हवलदार सिपाहियों का बाल-बांका नहीं होगा, जिनकी भूमिका साफ तौर पर संदिग्ध नजर आ रही है. और तो और कवि नगर थाना पुलिस को खुद उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह ही कटघरे में कर रहे हैं. तब फिर ‘अपना लूटे अपना बचाए’ की बात में अब कोई गुंजाइश कहां बाकी बची रहती है?

Full View

Similar News