सुर्खियों में आया Sarai Kale Khan, सदियों पहले क्या था यहां- कौन थे काले खां? सारे सवालों के एक साथ जवाब
Sarai Kale khan: दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदलकर भगवान बिरसा मुंडा चौक हो गया है. यह स्थान ऐतिहासिक है. आइए, मुगलों के सराय की सराय काले खां बनने की पूरी कहानी जानते हैं...;
Sarai Kale Khan: केंद्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 15 नवंबर को दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदलने की घोषणा की. यह चौक अब बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा. यह एलान बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर किया गया.
केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि सराय काले खां आईएसबीटी बस स्टैंड के बाहर बने चौक को भगवान बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा. उन्होंने कहा कि बिरसा मुंडा की प्रतिमा और चौक के नाम को देखकर न केवल दिल्ली, बल्कि दूसरे देश से आने वाले लोग भी उनकी जिंदगी से प्रेरणा लेंगे.
सराय काले खां का नाम कैसे पड़ा?
सराय का मतलब उस स्थान से है, जहां लोग आराम करते हैं. मुगल काल में दिल्ली आने वाले लोग यहां कुछ समय रुककर आराम करते थे. फिर वे अपनी यात्रा जारी रखते थे. काले खां का नाम जुड़ने के बाद इस स्थान का नाम सराय काले खां हो गया. यह दक्षिण पूर्वी दिल्ली जिले में स्थित है.
कौन थे काले खां?
काले खां को लेकर दो कहानियां प्रचलित हैं. एक काले खां बहलोल लोदी (1 जून 1401-12 जुलाई 1489) के दरबारी थे, जबकि दूसरे काले खां एक प्रसिद्ध सूफी संत थे. उन्हें शेरशाह सूरी (1471/1486- 22 मई 1545) के समय का संत माना जाता है. उनकी मजार इंदिरा गांधी एयरपोर्ट क्षेत्र में है. उनका मकबरा दिल्ली के कोटला मुबारकपुर कॉम्प्लेक्स में है, जिसका निर्माण 1481 में किया गया था.
सराय काले खां का इतिहास
सराय काले खां दक्षिण पूर्वी दिल्ली का एक गांव है. यहां एक अंतर-राज्यीय बस टर्मिनस भी है. यह स्थान हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के नजदीक है. यह दिल्ली के पांच मुख्य स्टेशनों में से एक है. सराय काले खां एतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. यहां की संस्कृति में सूफी परंपरा की गहरी छाप दिखाई देती है.
बता दें कि मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के शासनकाल में दरबारी रहे नवाब कासिम जान के बेटे नवाब फैजुल्लाह बेग, बहादुर शाह जफर के दरबारी था. उन्होंने एक परिसर का निर्माण करवाया, जिसे बाद में अहाता काले साहब कहा गया. इसी का नाम बाद में काले खां के नाम पर सराय काले खां हो गया.