महिला ने बच्चे की देखभाल की खातिर छोड़ी नौकरी, अब पति को देने होंगे इतने रुपये: दिल्ली HC
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर कोई महिला बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ती है, तो उसे स्वैच्छिक बेरोजगारी नहीं माना जाएगा और वह भरण-पोषण (alimony) की हकदार रहेगी. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पत्नी की कमाने की क्षमता नहीं, बल्कि उसकी वास्तविक आमदनी को आधार माना जाएगा.;
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि कोई महिला अपने बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ती है, तो यह स्वैच्छिक बेरोजगारी (Voluntary Unemployment) नहीं मानी जाएगी. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भत्ते (Maintenance) की राशि तय करते समय महिला की कमाई की क्षमता नहीं, बल्कि उसकी वास्तविक आय को आधार बनाया जाना चाहिए.
यह मामला एक ऐसी महिला से जुड़ा है जिसने अपने पति से अलग होकर अपने छह साल के बेटे की परवरिश के लिए नौकरी छोड़ दी थी. फैमिली कोर्ट ने 2023 में पति को आदेश दिया था कि वह हर महीने पत्नी को ₹7,500 और बेटे को ₹7,500 की राशि दे. पति ने इस आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी. पति का कहना था कि वह एक जिला अदालत में वकील हैं और उनकी आय केवल ₹10,000 से ₹15,000 प्रति माह है. उन्होंने दावा किया कि उनकी पत्नी शिक्षित है और पहले एक शिक्षिका के रूप में ₹40,000–₹50,000 कमा रही थी, इसलिए वह भत्ते की हकदार नहीं है.
महिला ने देखभाल के लिए छोड़ी नौकरी
महिला की ओर से कहा गया कि वह एकल माता-पिता के रूप में बच्चे की पूरी देखभाल कर रही है और लंबी दूरी के कारण उसे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. उसके पास घर के पास कोई और विकल्प नहीं था, इसलिए बच्चे की परवरिश की प्राथमिक जिम्मेदारी उठानी पड़ी. कोर्ट ने माना कि महिला की नौकरी छोड़ने की वजहें जायज और तार्किक हैं. "छोटे बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी आमतौर पर उसी अभिभावक पर ज्यादा पड़ती है जिसके पास बच्चा रहता है, और ऐसे में फुल टाइम नौकरी करना मुश्किल हो जाता है, खासकर जब परिवार से कोई मदद भी न मिल रही हो,'
न्यायमूर्ति स्वराणा कांता शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ कमाने की क्षमता होना ही पर्याप्त नहीं है, जब तक कि महिला वास्तव में कमाई नहीं कर रही हो. इसलिए फैमिली कोर्ट का यह निर्णय कि महिला को भत्ता मिलना चाहिए, सही ठहराया गया. हालांकि हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पति की आय के बारे में सभी पक्षों की ओर से दी गई बैंक डिटेल्स और शपथ पत्रों को ठीक से नहीं देखा गया.
इसलिए मामले को फिर से फैमिली कोर्ट के पास भेजा गया है, जो एक महीने के भीतर सभी दस्तावेजों के आधार पर नई सुनवाई कर फैसला देगा. इस बीच अंतरिम व्यवस्था के तौर पर पति को ₹7,500 पत्नी और ₹4,500 बेटे को हर महीने देना होगा। यह राशि अंतिम निर्णय तक जारी रहेगी और आगे की गणना में समायोजित की जा सकेगी.