रिहाई के आदेश के बावजूद UAPA लगाकर की गिरफ्तारी, SC ने सुनवाई में अधिकारी को लगाई फटकार

इस सुनवाई में अदालत ने अधिकारियों को लताड़ लगाई है. साथ ही 28 फरवरी को पेश होकर जवाब मांगा है. अदालत का कहना है कि जब हमने याचिकाकर्ता को रिहा करने का आदेश दिया था फिर कैसे UAPA लगाकर गिरफ्तारी की गई. अधिकारी ने जवाब में कहा कि आरोपी पर पहले भी कई आपराधिक मामले दर्ज थे जमानत पर बाहर आ चुका है. हालांकि अदालत ने अधिकारी के इस आचरण की निंदा की है.;

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Edited By :  सार्थक अरोड़ा
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छत्तिसगढ़ के एक मामले पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इससे पहले अदालत ने अधिकरी को पेश होने को कहा था जिसने कोर्ट के आदेश के बाद भी UAPA लगाकर गिरफ्तार किया और कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया था. व्यक्ति मनीष राठोर के मामले पर सुनवाई जारी थी. कोर्ट ने जमानत देने का आदेश दिया था. इसके बावजूद अधिकारी ने व्यक्ति पर UAPA लगाया और गिरफ्तार किया था. सिर्फ गिरफ्तारी ही नहीं उसे पूरे शहर में घुमाया गया.

वहीं कोर्ट ने अधिकारी को 28 फरवरी को अदालत में पेश होने का आदेश दिया था. सुनवाई हुई और जस्टिस अभय एस ओका और न्यायमूर्ती उज्जल भुइयां ने कहा कि यह सपष्ट है कि दो जनवरी को अदालत द्वारा दिए गए आदेश का पालन न करने के लिए मनीष की गिरफ्तारी की गई थी. जबकी अपीलकर्ता जमानत पाने का हकदार है. अपीलकर्ता की जमानत स्वीकार की जाती है. इसलिए उन्हें रिहा किया जाए.

ऐसा क्यों किया उनसे पूछें

अदालत में अधिकारी की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि अधिकारी की कार्रवाई उचित नहीं थी. उन्होंने कहा कि हम न्यायालय की आपराधिक अवमानना के लिए कार्रवाई शुरू करने में जरा भी देरी या फिर संकोच नहीं करेंगे. क्योंकि उन्हें कोर्ट के आदेश की जानकारी थी. इसलिए उनके पूछें कि उन्होंने ऐसा क्यों किया.

पहले भी जमानत पर आ चुका बाहर

वहीं अधिकारी के वकील ने कहा कि आरोपी पहले भी जमानत पर छूट लेकर बाहर आ चुका है. पिछे की ओर गौर किया जाए तो उसके ऊपर पहले भी नक्सली गतिविधियों में शामिल होने वाले तत्व मौजूद है. इस तरह अधिकारी के वकील ने उनका बचाव करने की कोशिश की. लेकिन वकील की इस दलील से अदालत संतुष्ट नहीं हुई. साथ ही अदालत ने अधिकारी के ऐसे आचरण की निंदा की है.

कोर्ट के आदेश का नहीं किया गया पालन

आपको बता दें कि BNS की धारा 506 बी के तहत मनीष के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी. अब जब मामला अदालत पहुंचा तो अदालत ने सुनवाई कर रिहा करने का आदेश दिया था. लेकिन अधिकारियों ने कोर्ट के इस आदेश का पालन नहीं किया और मनीष पर UAPA लगाकर उसे गिरफ्तार कर लिया. अदालत को पता चलने पर अधिकारियों से जवाब मांगा गया था. 

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