खेला करने वाले हैं पारस! पार्टी की स्थापना दिवस पर चिराग की बढ़ाएंगे मुश्किलें; पढ़ें अदावत की पूरी कहानी
अब पशुपति पारस ने पार्टी की बैठक कर बिहार की 243 सीटों पर विधानसभा चुनाव की तैयारी करने का ऐलान किया है. पशुपति पारस ने पार्टी का स्थापना दिवस समारोह रामविलास पासवान के पैतृक गांव खगड़िया जिले के शाहरबन्नी गांव में मनाने का निर्णय लिया है. 28 नवंबर को लोजपा का स्थापना दिवस है.;
बिहार में चाचा-भतीजे की लड़ाई किसी से छुपी नहीं है. हम बात चिराग पासवान और पशुपति पारस की कर रहे हैं. लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक राम विलास पासवान के निधन के बाद पार्टी दो गुटों में बंट गई. चिराग को अकेला छोड़कर पशुपति पारस ने सभी सांसदों को लेकर बगावत कर ली. इधर, पिता की पार्टी को बिखरता देख चिराग ने सभी को पार्टी से निकाल दिया.
रामविलास पासवान ने नारा दिया था कि 'मैं उस घर में दीया जलाने चला, जहां सदियों से अंधेरा है', लेकिन उनके घर में ही अंधेरा हो गया. अब दोनों के बीच शुरू हुआ विवाद कोर्ट में चला गया. अंत में दोनों को अलग अलग पार्टी का नाम मिला. चिराग पासवान को लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और पशुपति पारस को राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी नाम मिला.
पार्टी तोड़कर बने केंद्रीय मंत्री
उस समय पशुपति पारस एनडीए से गठबंधन कर सरकार में आ गए. उन्हें केंद्र सरकार में फ़ूड प्रोसेसिंग मिनिस्ट्री मिली. उन्होंने पटना स्थित पार्टी दफ्तर पर भी कब्ज़ा कर लिया. इस पूरे घटनाक्रम में चिराग दरकिनार हो गए. हालांकि वो हर जगह कह रहे थे कि मैं 'मोदी का हनुमान' हूं. कहा जाता है कि 'भगवान के घर देर है अंधेर नहीं'. समय का चक्र पलटा और एनडीए को राष्ट्रपति चुनाव के समय चिराग की याद आई. राजनाथ सिंह ने फोन कर उनसे समर्थन मांगा. उन्होंने तुरंत ही समर्थन दे दिया और खुद को एनडीए का पार्ट बताया.
चिराग को मिला एनडीए का साथ
इसके बाद चिराग की एनडीए में पकड़ मजबूत होने लगी. अब आया 2024 का लोकसभा चुनाव जहां चाचा-भतीजा का विवाद फिर से शुरू हो गया. दोनों एनडीए का हिस्सा थे और दोनों एक ही सीट पर दावेदारी ठोक रहे थे. हाजीपुर लोकसभा सीट पर वर्षों से रामविलास पासवान का कब्ज़ा रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान ने अपने भाई पशुपति पारस को जीत मिली थी. अब वो फिर से अपने लिए हाजीपुर और भतीजे प्रिंस के लिए समस्तीपुर सीट की मांग कर रहे थे. वहीं. जमुई से सांसद रहे चिराग पासवान भी पिता की पुरानी सीट हाजीपुर से चुनाव लड़ना चाह रहे थे.
अब एनडीए की मुख्य पार्टी बीजेपी असमंजस में पड़ गई कि आखिर सीट का बंटवारा कैसे हो. अंत में बीजेपी ने निर्णय लिया कि पशुपति पारस गुट को छोड़कर चिराग गुट को समर्थन दिया जाए. इसकी वजह यह थी कि चिराग को लेकर जनता में काफी समर्थन था. वहीं, पशुपति पारस को लोग गद्दार जैसे शब्दों से संबोधित करने लगे थे. चिराग को समर्थन देकर बीजेपी ने 5 सीटें दी.
इंडिया गठबंधन से भी मिला झटका
इस बात से नाराज पशुपति पारस इंडिया गठबंधन के पास सीट की आस लेकर गए, लेकिन वहां भी निराशा हाथ लगी. इंडिया गठबंधन में भी राजद और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर घमासान चल रहा था. खाली हाथ लौटने के बाद उन्होंने एनडीए से फिर से बातचीत शुरू की तो उन्हें राज्यपाल पद का ऑफर दिया गया लेकिन इस प्रस्ताव को उन्होंने ठुकरा दिया और भारी मन से कहा कि मैं एनडीए का हिस्सा रहूंगा.
चिराग बने केंद्रीय मंत्री
पारस गुट के चुनाव न लड़ने का फायदा चिराग को मिला और उन्होंने पांच की पांच सीटों पर जीत दर्ज की. उन्हें केंद्र में मंत्री पद भी मिला. उन्हें भी पिता और चाचा की तरह फ़ूड प्रोसेसिंग मिनिस्ट्री मिली. इसी दिन का इंतजार चिराग कई साल से कर रहे थे. अब बात आई कि पटना में पार्टी ऑफिस पर किसका कब्ज़ा होगा. इस मामले में चिराग पासवान ने बाजी मारी और चाचा को ऑफिस खाली करना पड़ा.
चाचा पशुपति पारस ने पटना स्थित पार्टी दफ्तर खाली करने के बाद एनडीए से बाहर होने के संकेत दे दिए, उन्होंने अपने नाम से मोदी का परिवार भी हटा लिया. इसपर भतीजे चिराग ने कहा कि वो एनडीए में थे ही कब जो अलग हो रहे है.
पशुपति पारस का क्या है अगला कदम?
अब पशुपति पारस ने पार्टी की बैठक कर बिहार की 243 सीटों पर विधानसभा चुनाव की तैयारी करने का ऐलान किया है. पशुपति पारस ने पार्टी का स्थापना दिवस समारोह रामविलास पासवान के पैतृक गांव खगड़िया जिले के शाहरबन्नी गांव में मनाने का निर्णय लिया है. 28 नवंबर को लोजपा का स्थापना दिवस है. इस दिन पासवान परिवार में एक और सदस्य की एंट्री होने वाली है. पारस अपने बेटे यशराज पासवान को लॉन्च करने वाले हैं. ये स्थापना दिवस यशराज के लिए लॉन्चिंग पैड होने वाला है.
पशुपति पारस का सियासी सफर
रामविलास पासवान के बारे में कहा जाता है कि राजनीति में उनको सबसे ज़्यादा भरोसा अपने परिवार पर ही था. इसलिए उन्होंने अपने भाइयों, बेटे और भतीजे को भी राजनीति में आगे बढ़ाया. रामविलास पासवान का क़द इतना बड़ा हो गया कि चालीस साल के सियासी सफर के बाद भी पशुपति कुमार पारस को आमतौर पर रामविलास पासवान के भाई के तौर पर ही पहचाना जाता है. पशुपति कुमार पारस सबसे पहले जनता पार्टी के टिकट पर साल 1977 के बिहार विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने थे. पशुपति पारस 7 बार बिहार विधानसभा के सदस्य रहे हैं. वो बिहार विधान परिषद के सदस्य और राज्य सरकार में मंत्री भी रहे हैं.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान ने चुनावी राजनीति को छोड़कर अपने भाई को हाजीपुर से चुनाव लड़वाया और वह सांसद बने. रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके परिवार में मची सियासी खींच-तान में उनकी पार्टी के दो टुकड़े हो गए. 6 में से 5 सीटों के साथ पारस ने नरेंद्र मोदी सरकार को समर्थन दिया और उन्हें फ़ूड प्रोसेसिंग मिनिस्ट्री मिली थी, जो पहले रामविलास पासवान के पास थी.