घुसपैठिए या भारतीय नागरिक? 'बांग्लादेशी' कहकर असम में मिया मुस्लिमों पर हमला, मांगे जा रहे NRC के कागजात
असम में मिया मुस्लिम समुदाय पर लगातार हमले और बेदखली की घटनाएं सामने आ रही हैं. बांग्लादेशी घुसपैठिए कहकर इन पर हिंसा हो रही है. वहीं, स्थानीय संगठनों ने अल्टीमेटम देकर उन्हें घर-ज़मीन छोड़ने पर मजबूर किया है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी मिया मुसलमानों को लेकर कड़ा रुख दिखाया है. हालात ने राज्य में साम्प्रदायिक तनाव को और बढ़ा दिया है और यह मुद्दा अब NRC व अवैध घुसपैठ की बहस से सीधा जुड़ गया है.;
Assam Miya Muslims eviction: असम के ऊपरी जिलों में मिया मुस्लिमों के खिलाफ नफरत और हिंसा की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. तिनसुकिया जिले के शाहीन आलम, जो एक बढ़ई, मस्जिद के मुअज्ज़िन और मदरसे के शिक्षक हैं, को हाल ही में ‘राष्ट्रीयतावादी’ समूहों ने घेर लिया और धमकी दी कि उन्हें अपना गांव छोड़ना होगा. 10 अगस्त को कुछ लोग उनके मक्तब पहुंचे और सवाल करने लगे कि यह क्यों खोला गया है. शाहीन बताते हैं, “उन्होंने मेरा आधार कार्ड देखा और कहा ‘तू असली बांग्लादेशी है.’ थोड़ी देर बाद बुलडोज़र और पुलिस आई और मक्तब तोड़ दिया गया.”
सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में दिखा कि मक्तब को तोड़ते समय युवक 'जय आई असम' (Jai Aai Axom) और 'वीर लाचित सेना ज़िंदाबाद' के नारे लगा रहे थे.
मिया मुस्लिमों पर बढ़ रहे हमले
2016 में बीजेपी सरकार आने के बाद से राज्य में बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान तेज हुआ है. रिपोर्ट्स के मुताबिक अब तक 15,000 से ज्यादा परिवार उजाड़े जा चुके हैं, जिनमें ज्यादातर मिया मुस्लिम हैं. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा कई बार इन परिवारों को 'गैरकानूनी बांग्लादेशी' बता चुके हैं. इंडिया हेट लैब की रिपोर्ट बताती है कि सरमा के बयानों के बाद 14 जिलों में कम से कम 18 घटनाएं हुई हैं, जिनमें जबरन बेदखली का जश्न, मुसलमानों के खिलाफ हेट स्पीच और अवैध ढंग से बस्तियों को उजाड़ने की मांग शामिल है.
मिया मुस्लिमों से मांगे जा रहे आधार और एनआरसी के कागजात
असम के कई हिस्सों में कथित राष्ट्रवादी संगठन, जैसे- जातीय संग्राम सेना, वीर लाचित सेना और ऑल ताई आहोम स्टूडेंट्स यूनियन, मिया मुस्लिमों के घरों पर जाकर आधार और एनआरसी के कागजात मांग रहे हैं. कई वीडियो में साफ दिखता है कि लोगों को 24–48 घंटे में इलाका छोड़ने की धमकी दी जा रही है.
विपक्षी नेताओं ने की कड़ी निंदा
स्थानीय बुद्धिजीवियों और विपक्षी नेताओं ने इन घटनाओं की कड़ी निंदा की है. वरिष्ठ विद्वान हीरेन गोहाईं ने कहा, “यह असमिया अस्मिता की सही भावना नहीं है. इसे राजनीतिक हथियार बनाकर डर और नफरत फैलाई जा रही है.” कांग्रेस और रायजोर दल जैसे विपक्षी दलों का आरोप है कि यह सब सरकार की नज़र के सामने हो रहा है और प्रशासन पूरी तरह से चुप है. रायजोर दल प्रमुख अखिल गोगोई ने इसे बीजेपी-आरएसएस की साज़िश बताते हुए कहा कि चुनाव से पहले मुस्लिम परिवारों की बेदखली सिर्फ राजनीतिक स्टंट है.
'बांग्लादेशी' कहकर मिया मुस्लिमों को डराया-धमकाया जा रहा
मिया मुस्लिम ज्यादातर ब्रह्मपुत्र नदी के चार-चापोरी (टापू और तटबंध) इलाकों में रहते हैं. यहां दशकों से बाढ़ और नदी कटाव के चलते हजारों लोग अपनी ज़मीन गंवा चुके हैं. कई परिवार सरकारी जमीन पर या किराए के छोटे कमरों में रहकर मजदूरी, मछली बेचने और खेती का काम करते हैं. हालांकि, अब इन्हें लगातार 'बांग्लादेशी' कहकर डराया-धमकाया जा रहा है. स्थानीय मजदूर बताते हैं कि असमिया समाज को काम के लिए मिया मजदूर चाहिए, लेकिन 'मिया खेद आंदोलन' के नाम पर उनकी रोज़ी-रोटी पर हमला हो रहा है.
सिर्फ मिया या बांग्लादेशी कहकर बेदखल करना असंवैधानिक
अखिल भारतीय अल्पसंख्यक छात्र संघ (AAMSU) ने चेतावनी दी है कि किसी भी भारतीय नागरिक को सिर्फ मिया या बांग्लादेशी कहकर बेदखल करना असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के बावजूद राज्य सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही. वहीं विपक्ष का कहना है कि यह सब ‘इस्लामोफोबिया’ को हवा देने और असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की रणनीति है.