जमीयत को भेज दूंगा बांग्लादेश... इस्तीफे की मांग पर 'अंगूठा' दिखाकर गरजे सीएम सरमा, कही ये बात
हिमंत बिस्वा सरमा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए जमीयत पर राजनीतिक एजेंडा चलाने का आरोप लगाया. उन्होंने जमीयत को कांग्रेस का सहयोगी बताते हुए कहा कि राज्य में सत्ता परिवर्तन की उनकी कोशिशें असफल होंगी क्योंकि असम की जनता इन सबको समझ चुकी है.;
असम में जारी अतिक्रमण हटाने की सरकारी कार्रवाई ने राज्य की राजनीति और साम्प्रदायिक विमर्श को नई दिशा दे दी है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा द्वारा बेदखली अभियान को लेकर दिए गए तीखे बयान और जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की कड़ी प्रतिक्रिया ने एक बार फिर इस बहस को तेज कर दिया है.
जमीयत ने सीएम पर घृणा फैलाने का आरोप लगाते हुए इस्तीफे की मांग की है. इस पर सरमा ने कहा कि वह कोई नहीं होते इस्तीफा मांगने वाले. असम की जनता तय करेगी सरकार में कौन रहेगा.
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बांग्लादेश भेजने की धमकी
इस विवाद पर मुख्यमंत्री ने कहा कि ' जमीयत के नेताओं को बांग्लादेश भेज देना चाहिए.' उनके इस बयान ने फिर इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने वाला बताया जा रहा है. साथ ही उन्होंने मीडिया के सामने कहा कि 'मैं उन्हें बुरहा अंगुली (अंगूठा) दिखा रहा हूं,' जो साफ तौर से एक आक्रामक और असामान्य राजनीतिक प्रतिक्रिया थी.
सरकारी बेदखली अभियान
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने दावा किया है कि उनकी सरकार अब तक 160 वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि को अतिक्रमण से मुक्त करा चुकी है. इस प्रक्रिया में वन भूमि, ग्राम चरागाह रिजर्व (वीजीआर), पेशेवर चरागाह रिजर्व (पीजीआर), वैष्णव मठ और नामघरों से अतिक्रमण हटाया गया है. सरकार का तर्क है कि ये सभी सार्वजनिक और धार्मिक स्थलों की भूमि है, जिस पर वर्षों से अवैध कब्जे थे.
50 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित
हालांकि, इस अभियान की कीमत हजारों परिवारों को चुकानी पड़ी है. रिपोर्ट्स के अनुसार, 50,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं, जिनमें अधिकांश बांग्ला भाषी मुसलमान हैं. इसी बिंदु पर विवाद शुरू होता है कि क्या कार्रवाई का तरीका मानवीय है? और क्या इसका असर एक विशेष समुदाय पर अधिक पड़ रहा है?
जमीयत-उलेमा-ए-हिंद का आरोप
देश के सबसे पुराने और प्रभावशाली मुस्लिम संगठनों में से एक जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने इस अभियान के खिलाफ विरोध दर्ज कराया है. मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में हुई कार्यसमिति की बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति और भारत के प्रधान न्यायाधीश से हस्तक्षेप की मांग की गई. संगठन ने मुख्यमंत्री पर नफरत फैलाने वाले भाषण देने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग की है.
जमीयत का कहना है कि यह अभियान केवल अतिक्रमण हटाने का प्रयास नहीं, बल्कि एक खास समुदाय को निशाना बनाने की योजना है. उनका दावा है कि इस प्रक्रिया में संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और बेघर हुए परिवारों के पुनर्वास की कोई योजना नहीं है.
जमीयत नहीं जनता करेगी फैसला
हिमंत बिस्वा सरमा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए जमीयत पर राजनीतिक एजेंडा चलाने का आरोप लगाया. उन्होंने जमीयत को कांग्रेस का सहयोगी बताते हुए कहा कि राज्य में सत्ता परिवर्तन की उनकी कोशिशें असफल होंगी क्योंकि असम की जनता इन सबको समझ चुकी है.
असम की बदलती राजनीति और सामाजिक तानाबाना
असम में भूमि और पहचान का सवाल लंबे समय से राजनीतिक विमर्श का केंद्र रहा है. 1979 से शुरू हुआ असम आंदोलन, और 1985 में हुआ असम समझौता, राज्य की मूल पहचान और अवैध घुसपैठ के मुद्दे को लेकर ही था. बीजेपी सरकार इन भावनाओं को पुनः जीवित करते हुए भूमि और पहचान की रक्षा का दावा कर रही है.