कामाख्या मंदिर में होती है देवी के योनि की पूजा, आखिर क्या है इसके पीछे की असली कहानी, जानकर हैरान हो जायेंगे आप
Kamakhya Shaktipeeth: धार्मिक और तांत्रिक दृष्टिकोण से यह मंदिर न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जो देवी शक्ति की असीमित ऊर्जा और उसकी पूजा के अनूठे स्वरूप का केंद्र है.;
Kamakhya Shaktipeeth: भारत में देवी-देवताओं की पूजा का अनूठा स्वरूप देखने को मिलता है. असम के गुवाहाटी स्थित नीलाचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर ऐसा ही एक विशेष स्थान है, जहां शक्ति की देवी मां कामाख्या की पूजा की जाती है. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां देवी की योनि की पूजा होती है, जो इसे अन्य मंदिरों से अद्वितीय बनाती है. यहां हम जानेंगे इसके पीछे की असली कहानी, धार्मिक महत्व और अनोखी मान्यताएं.
कामाख्या मंदिर का इतिहास
कामाख्या मंदिर तांत्रिक पूजा और देवी पूजा के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है. ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर आत्मदाह कर लिया था, तो भगवान शिव उनका शरीर लेकर तांडव करने लगे. भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 51 हिस्सों में विभाजित कर दिया और जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई. ऐसा माना जाता है कि कामाख्या मंदिर उस स्थान पर बना है, जहां देवी सती की योनि गिरी थी. इसी कारण यहां देवी की योनि की पूजा होती है, जिसे देवी की सृजन शक्ति का प्रतीक माना जाता है.
तांत्रिक पूजा का केंद्र
कामाख्या मंदिर तांत्रिक पूजा का मुख्य केंद्र है. यहां तंत्र साधना और शक्तिपूजा का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं, जिसके चलते यहां तांत्रिकों का आना-जाना सदियों से जारी है. नवरात्रि और अंबुबाची मेला के दौरान यहां विशेष पूजा और साधना का आयोजन होता है.
अंबुबाची मेला और मासिक धर्म का महत्व
कामाख्या मंदिर की एक और अनोखी विशेषता यहां हर साल आयोजित होने वाला अंबुबाची मेला है. यह मेला देवी के मासिक धर्म का प्रतीक माना जाता है. इस दौरान मान्यता है कि देवी की योनि से रक्तस्राव होता है और इस समय मंदिर के कपाट तीन दिनों तक बंद रहते हैं. चौथे दिन मंदिर के कपाट खोले जाते हैं और भक्तों को देवी के प्रसाद के रूप में एक विशेष कपड़ा दिया जाता है, जिसे रजस्वला वस्त्र कहा जाता है. यह देवी की शक्ति और सृजनात्मकता का प्रतीक है.
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
कामाख्या मंदिर केवल धार्मिक महत्व का केंद्र नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक धरोहर भी है. यहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं, खासकर तंत्र साधना और देवी शक्ति की उपासना के लिए. इस मंदिर में पूजा का मुख्य उद्देश्य देवी की शक्ति, सृजन और मातृत्व को सम्मान देना है. यहां की मान्यताओं के अनुसार, जो भी भक्त सच्चे मन से देवी की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
कामाख्या मंदिर की वास्तुकला
कामाख्या मंदिर की वास्तुकला भी अद्भुत है. मंदिर का निर्माण शैली उत्तर पूर्वी भारत की पारंपरिक वास्तुकला को दर्शाती है. मुख्य गर्भगृह में देवी की प्रतिमा नहीं है, बल्कि एक पत्थर के रूप में योनि की पूजा की जाती है, जिससे हमेशा जलधारा बहती रहती है। यह प्राकृतिक जलधारा देवी की सृजनात्मक ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती है.
कामाख्या मंदिर भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक है, जहां देवी की सृजनात्मक शक्ति और मातृत्व का पूजन होता है. यहां देवी की योनि की पूजा भारतीय समाज में महिलाओं के सृजन और सम्मान के महत्व को दर्शाती है.
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