भूलकर भी एकादशी के दिन नहीं खाना चाहिए चावल, जानें क्या है इसके पीछे की धार्मिक मान्यता
Ekadashi: हिंदू धर्म में एकादशी के दिन चावल का सेवन वर्जित किया गया है, ताकि व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध और पवित्र रह सके.;
Ekadashi: हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है और इसे धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत शुभ और पवित्र दिन माना जाता है. यह दिन हर महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में आता है, और इस दिन व्रत रखने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. एकादशी व्रत का पालन करने वालों के लिए कुछ खास नियम होते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है. इन नियमों में से एक प्रमुख नियम है कि एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं किया जाता. इसके पीछे धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक कथाओं से जुड़ी कई गहरी मान्यताएं और कारण बताए गए हैं.
एकादशी के दिन चावल का सेवन न करने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही कारण मौजूद हैं. जहां धार्मिक दृष्टिकोण से इसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का माध्यम माना गया है, वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह शरीर की शुद्धि और मानसिक शांति के लिए लाभदायक होता है.
धार्मिक मान्यता और पौराणिक कथा
एकादशी के दिन चावल न खाने की मान्यता के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं हैं। एक प्रमुख मान्यता यह है कि जब भगवान विष्णु ने महर्षि वशिष्ठ से पूछा कि एकादशी का व्रत कैसे किया जाए, तब महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें बताया कि इस दिन चावल का सेवन वर्जित होना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन यदि व्यक्ति चावल खाता है, तो उसे व्रत का फल नहीं मिलता और उसकी पूजा-अर्चना अधूरी रह जाती है.
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय में माता पृथ्वी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि पृथ्वी पर पापों का भार बढ़ रहा है, उसे कम करने का उपाय बताएं. तब भगवान विष्णु ने कहा कि हर महीने की एकादशी तिथि को जो लोग व्रत रखेंगे, उनके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे और वे स्वर्ग लोक की प्राप्ति करेंगे. इस व्रत को पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए भगवान ने कहा कि एकादशी के दिन चावल का सेवन वर्जित है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल खाने से पाप की प्रवृत्ति बढ़ती है और व्यक्ति के मन में अशुद्ध विचार आते हैं.
चावल और जल का संबंध
एक और धार्मिक मान्यता यह है कि चावल में जल की मात्रा अधिक होती है. एकादशी के दिन जल का अधिक सेवन करने से शरीर में तमोगुण और रजोगुण की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, जिससे मन अशांत होता है और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है. चावल में पानी की अधिकता के कारण शरीर में आलस्य और भारीपन भी बढ़ता है, जो आध्यात्मिक साधना के विपरीत माना जाता है. इसलिए, इस दिन चावल खाने से मानसिक और शारीरिक शुद्धि की प्रक्रिया बाधित होती है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी दिए जाते हैं. एकादशी का व्रत अमूमन हर 15 दिनों के अंतराल पर आता है, और यह माना जाता है कि यह समय शरीर के डिटॉक्सिफिकेशन यानी विषहरण के लिए उपयुक्त होता है. चावल को पचाने में समय लगता है और इसमें स्टार्च की मात्रा अधिक होती है, जिससे शरीर पर अतिरिक्त भार पड़ता है. व्रत के दिन हल्का भोजन या फलाहार का सेवन करने से पाचन तंत्र पर कम दबाव पड़ता है, जिससे शरीर विषैले तत्वों से मुक्त होता है और ऊर्जाका संतुलन बना रहता है.
डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसके सही या ग़लत होने की पुष्टि नहीं करते.