माता रानी के नौ रूप, हर रूप का होता है अलग संदेश; क्या जानते हैं आप?
देवी भागवत और मार्कंडेय पुराण में देवी के नौ रुपों का वर्णन मिलता है. ये नौ रूप सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर विकास के क्रम को दर्शाते हैं. श्रीदुर्गा सप्तसती के कवच मंत्र में माता रानी के इन सभी नौ रुपों का वर्णन करते हुए एक श्लोक भी दिया गया है.;
माता रानी की उपासना नौ रूपों में होती है. देवी भागवत और मार्कंडेय पुराण में देवी के इन नौ रुपों का विस्तार से वर्णन मिलता है. इन महान ग्रंथों में देवी के ये नौ रूप सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर विकास के क्रम को दर्शाते हैं. श्रीदुर्गा सप्तसती के कवच मंत्र में माता रानी के इन सभी नौ रुपों का इस प्रकार से उल्लेख मिलता है-
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
देवी भागवत के मुताबिक माता रानी का नाम शैलपुत्री उनके पर्वत राज हिमालय के पुत्री होने की वजह से पड़ा है. माता का यह रूप सृष्टि के प्रारंभिक चरण का प्रतीक है. मान्यता है कि इस रूप में माता की की पूजा आरोग्य प्राप्त होता है. इसके अलावा धर्म एवं अर्थ एवं काम की भी प्राप्ति होती है. इसी प्रकार माता का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है. माता का यह रूप सृष्टि के दूसरा चरण को प्रतिनिधित्व करता है. इसका मतलब यह है कि लोग मानव योनी में जन्म लेने के बाद ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए शिक्षा ग्रहण करें और फिर गृहस्थ रूप लेकर सृस्टि का विकास करें. माता का यह स्वरुप में यम, नियम, योग और प्राणायाम का महत्व भी बताता है.
भव भय को भी दूर करता है माता का यह रूप
चन्द्रघण्टा माता रानी तीसरा स्वरूप है. इस स्वरुप में माता रानी के माथे पर घंटे के आकार का चंद्रमा है. शास्त्रों में इन्हें संतुष्टि की देवी माना गया है. जबकि चौथे स्वरुप कूष्माण्डा से ही ब्रह्मांड की रचना की बात कही गई है. माता का यह स्वरुप सीता फल के आकार का है. भव भय दूर करने वाली इस माता के पूजन से अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है. माता रानी का पांचवां स्वरुप स्कन्दमाता का है. माता को यह नाम शिव पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की माता होने की वजह से मिला है. इस रूप में माता शक्ति संचय और सृजन की क्षमता प्रदान करती है. छठा रुप माता माता कात्यायनी का है.
महागौरी के रूप में सभी पापों का शमन करती है माता
इस रुप में माता ऋषि कात्यायन की बेटी बन कर आई थीं. इनकी पूजा से निरोगी काया की प्राप्ति होती है. सातवां रुप कालरात्री का है. यह रुप सर्व सिद्धियों को प्रदान करने वाला है. माता के इस रूप की पूजा से आलौकिक शक्तियों, तंत्र सिद्धि, मंत्र सिद्धि आदि की प्राप्ति होती है.वहीं आठवें यानी महागौरी के रूप में माता रानी अपने साधक को सभी पाप कर्मों से मुक्ति देकर चाल-चरित्र और चेहरे से पवित्र बना देती हैं. ऐसे साधक अपने जीवन काल के बाद माता के लोक में स्थान पाते हैं. माता का नौंवा रुप सिद्धिदात्री का है. इस रूप में माता अपने साधक को सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं.