जहां पूरी होती है भक्तों की हर मनोकामना, जानें कहां हैं देवी के 51 शक्ति पीठ

पौराणिक ग्रंथों में 51 शक्ति पीठ बताए गए हैं. हालांकि आदि शंकराचार्य 18 शक्तिपीठों की बात करते हैं. उन्होंने एक स्तोत्र की भी रचना की है. इसमें उन्होंने बताया है कि इन 18 स्थानों पर माता के कौन से अंग गिरे और यहां माता किस नाम से विराजमान हैं.;

प्रजापति दक्ष के यज्ञ को विध्वंस करने के बाद जब भगवान शिव ने माता सती के शरीर को उठा लिया और कुपित भाव में बड़े वेग के साथ तांडव करते हुए घूमने लगे तो भगवान नारायण ने सुदर्शन चक्र से शती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए. उस समय भगवान शिव के वेग की वजह से यह सभी 51 टुकड़े हवा में उड़ते हुए पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गए थे. चूंकि जहां देवी के अंग गिरे, वहीं देवी का शक्तिपीठ बन गया. इसलिए पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में शक्तिपीठ बने हुए हैं. उस समय भगवान नारायण ने वरदान दिया था कि इस 51 स्थानों पर देवी जीवंत रूप में वास करेंगी और अपने भक्तों का कल्याण करेंगी. इनमें कुछ शक्ति पीठ आज के पाकिस्तान में तो कुछ नेपाल और बांग्लादेश में भी हैं. हालांकि कालांतर में आदि शंकराचार्च ने 18 प्रमुख शक्तिपीठों का बखान किया. उन्होंने इन शक्तिपीठों को लेकर एक स्तोत्र भी लिखा.

लङ्कायां शङ्करीदेवी कामाक्षी काञ्चिकापुरे। प्रद्युम्ने शृङ्खलादेवी चामुण्डी क्रौञ्चपट्टणे ॥

अलम्पुरे जोगुलाम्बा श्रीशैले भ्रमराम्बिका। कोल्हापुरे महालक्ष्मी मुहुर्ये एकवीरिका ॥

उज्जयिन्यां महाकाली पीठिकायां पुरुहूतिका। ओढ्यायां गिरिजादेवी माणिक्या दक्षवाटिके ॥

हरिक्षेत्रे कामरूपी प्रयागे माधवेश्वरी। ज्वालायां वैष्णवीदेवी गया माङ्गल्यगौरिका ॥

वारणाश्यां विशालाक्षी काश्मीरेतु सरस्वती। अष्टादश सुपीठानि योगिनामपि दुर्लभम् ॥

सायङ्काले पठेन्नित्यं सर्वशत्रुविनाशनम्। सर्वरोगहरं दिव्यं सर्वसम्पत्करं शुभम् ॥

श्रीलंका में शंकरी देवी के नाम से है शक्तिपीठ

इस स्तोत्र की माने तो भारतीय उपमहाद्वीप में मुख्य रूप से 18 शक्तिपीठ हैं. शंकराचार्य ने इन सभी शक्तिपीठों को जाग्रत बताया है. आदि शंकराचार्य भी कहते हैं कि धरती पर जहां देवी के अंग गिरे, वह सभी शक्ति पीठ बन गए. उन्होंने अपने स्तोत्र के जरिए इन शक्तिपीठों का जिक्र करते हुए देवी की स्तुति की है. इसमें पहला शक्ति पीठ त्रिंकोमाली (श्रीलंका) को बताया है. बताया है कि यहां देवी के ऊसन्धि गिरे. यहां माता शंकरी देवी के नाम से प्रतिष्ठित हैं. इसी प्रकार कांचीपुरम (तमिलनाडु) में सतह का हिस्सा गिरा. यहां माता कामाक्षी देवी के रूप में हैं. प्रद्युम्न (पश्चिम बंगाल) में माता उदर भाग गिरा. यहां माता शृङ्खला देवी के नाम से जानी जाती है. मैसूर (कर्नाटक) में माता के बाल गिरे थे. यहां माता देवी चामुंडेश्वरी के नाम से विराजमान हैं.

कोल्हापुर में अंबाबाई की शक्तिपीठ

इसी प्रकार आलमपुर (आंध्र प्रदेश) में माता के ऊपरी दांत गिरे थे. यहां माता जगुलम्बा देवी कही जाती है. जबकि श्रीशैलम (आंध्र प्रदेश) माता का गर्दन गिरा और यहां माता भ्रामराम्बा देवी के नाम से प्रतिष्ठित हैं. कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में माता की आंखें गिरी. यहां माता अंबाई बाई के नाम से प्रतिष्ठित हैं. जबकि नांदेड़ (महाराष्ट्र) में दाहिना हाथ गिरा और यहां माता का नाम एकवीरा देवी है. माता के पेट का उपरी हिस्सा उज्जैन में गिरा. यहां माता का नाम देवी हरसिद्धि है. पीठापुरम (आंध्र प्रदेश) में माता का बायां हाथ गिरा. यहां पर माता का नाम पुरुहुतिका देवी है. आडिशा के ही जाजपुर में माता की नाभि गिरी थी. यहां माता को बिरजा या गिरिजा देवी के नाम से जाना जाता है. द्राक्षरमन (आंध्र प्रदेश) में माता का बायां गाल गिरा. यहां माता की पहचान मणिकाम्बा देवी के रूप में है.

गोहाटी में कामाख्या देवी के नाम से हैं देवी

गोहाटी असम में माता की योनी गिरी थी. यहां माता को कामाख्यादेवी कहा जाता है. इसी प्रकार प्रयागराज में जहां माता की उंगलियां गिरी, वहां माता माधवेश्वरीदेवी के रूप में विराजमान हैं. जबकि कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) में माता का सिर गिरा था. यहां माता ज्वाला देवी के नाम से जानी जाती है. गया (बिहार) में माता के स्तन का हिस्सा गिरा था. यहां पर माता मङ्गलागौरी के नाम से प्रतिष्ठित हैं. वहीं वाराणसी में कानों के कुंडल गिरे थे. इस स्थान पर माता का नाम विशालाक्षी है. जबकि कश्मीर के शारदा पीठ में माता का दाहिना हाथ और दाहिना कान गिरा था. यहां माता को शारदा देवी के नाम से जाना जाता है.

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