आप नहीं करते पितरों को तर्पण, जानें क्या हो सकता है नुकसान
विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में श्राद्ध कर्म को वंशजों को लिए अनिवार्य बताया गया है. इन ग्रंथों के मुताबिक जो वंशज अपने पुरखों का तर्पण नहीं करते, उन्हें उनका कोपभाजन बनना पड़ता है. ऐसे हालात में घर में अनिष्ठ होने, मांगलिक कार्यों में बाधा पैदा होने की आशंका रहती है.;
पितृपक्ष का पखवाड़ा चल रहा है. देश ही नहीं नहीं दुनिया भर से लोग बिहार के गया स्थित पितर धाम पहुंच कर अपने पितरों को तर्पण और पिंडदान कर रहे हैं. वहीं जो लोग गया नहीं जा पा रहे, वो अन्य तीर्थों और घर के नजदीकी स्थानों पर पवित्र सरोवरों के पास पिंडदान कर रहे हैं. मान्यता है कि पितृपक्ष में तर्पण से पितर प्रसन्न होते हैं और वंशजों के कल्याण का आशीर्वाद देते हैं. लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि यदि पिंडदान ना करें तो? इस सवाल का जवाब विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में मिलता है. इन ग्रंथों के मुताबिक पितृपक्ष में सभी पितर धरती पर इस आशा में आते हैं कि उनके वंशज पिंडदान करेंगे.
वह 16 दिन तक यहां इंतजार करते हैं. बावजूद इसके, जब उनके वंशज या उत्तराधिकारी पिंडदान नहीं करते तो पुरखे रुठ कर चले जाते हैं. कई बार वह जाते जाते अपने वंशजों को शाप भी दे जाते हैं. इसकी वजह से घर में नुकसान होना शुरू हो जाता है. इस प्रसंग में हम विभिन्न ग्रंथों के माध्यम से यही समझने की कोशिश करते हैं कि पुरखों के रुठने पर किस तरह के नुकसान होने की आशंका होती है. गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण के मुताबिक पितरों को पिंडदान नहीं करने पर खानदान में पितृदोष लगता है. ऐसा होने पर पुरखे अपनी ही संतति को कष्ठ पहुंचाने लगते हैं. मार्कंडेय पुराण के मुताबिक जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता है, वहां संतानें दीर्घायु नहीं होती.
पिंडदान नहीं करने पर हो सकते हैं ये नुकसान
इन परिवारों में जो संतानें पैदा होती हैं, वो रोगी और कायर भी होती हैं. इसके अलावा मांगलिक कार्यों में अक्सर कोई ना कोई बाधा आती ही रहती है. गरुड़ पुराण के मुताबिक जो वंजश अपने पितरों का श्राद्ध या तर्पण नहीं करते, उन्हें बेवजह की परेशानियों से भी जूझना पड़ता है. कई बार तो वह ऐसे आरोपों से घिर जाते हैं, जिनसे उनका कोई वास्ता भी नहीं होता. बावजूद इसके उन्हें जीवनभर अपमान का घूंट पीकर जीना पड़ता है. कहा गया है कि ऐसे वंशजों को समाज में उचित सम्मान भी नहीं मिलता. वहीं विष्णु पुराण में कहा गया है कि पितृपक्ष में श्राद्ध ना करने पर व्यक्ति पर तो बुरा असर पड़ता ही है, कहीं ना कहीं, संतानों को भी इसके असर से प्रभावित होना पड़ता है.