मृत्यु के बाद इस लोक में चले जाते हैं लोग, जानें कौन हैं पितर देवता?
मृत्यु लोक की तरह ही पितरों का भी एक लोक होता है. चंद्रमंडल के उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में स्थित इस लोक में महर्षि कश्यप और देवमाता अदिति के तीसरे पुत्र अर्यमा को श्रेष्ठ और इस लोक का देवता कहा गया है.;
अक्सर सवाल उठता है कि मृत्यु के बाद लोग आत्मा निकलकर कहां जाती है. विभिन्न पुराणों में इस सवाल का जवाब दिया गया है. पौराणिक मान्यता के मुताबिक पितरों का एक अलग ही लोक होता है. यह लोक चंद्रमंडल के उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में होता है. इसे पितर लोक कहा गया है. इस लोक के देवता के रूप में अर्यमा का नाम आता है. अब सवाल यह उठ सकता है कि ये अर्यमा कौन हैं? इस सवाल का जवाब भी इन्हीं पौराणिक ग्रंथों में है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक ऋषि कश्यप और देव माता अदिति से 12 पुत्रों अंशुमान, इंद्र, अर्यमन, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और त्रिविक्रम (वामन) का जन्म हुआ था.
इनमें तीसरे पुत्र अर्यमन को ही पितरों का देवता कहा गया है. अर्यमन का ही एक नाम अर्यमा भी है. वह इंद्र के छोटे भाई हैं. कहा जाता है कि आकाश गंगा मूलत: अर्यमा की ही मार्ग सूचक है. गुरुड़ पुराण और अग्निपुराण में वर्णित प्रसंगों के मुताबिक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ऊपर की किरण (अर्यमा) पृथ्वी पर आती है. इस लिए अश्वनि कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक के समय को पितृपक्ष कहा जाता है. चूंकि पितरों के अधिकृत देवता अर्यमा का इन 16 दिनों में प्रवास धरती पर होता है, इसलिए वह अपने लोक में बैठे सभी पितरों को भी साथ में लेकर यहीं आ जाते हैं. इसी लिए पितृपक्ष में पितरों को पिंडदान और कव्य आदि दिया जाता है. इसे पाकर पितरगण प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं. कहा गया है कि जड़-चेतन मयी सृष्टि में पितृ ही जीव के शरीर का निर्माण भी करते हैं.
इन तीन पीढ़ियों को श्राद्ध
जब श्राद्ध कर्म होता है, तो पिता पक्ष के तीन पीढ़ी के साथ माता पक्ष के तीन पीढ़ी के पूर्वजों को तर्पण किया जाता है. इसके बाद तीन पीढ़ी के पूर्वज पत्नी पक्ष के भी आते हैं. इन सभी को पितर कहा गया है. जब इन्हें तर्पण होता है तो पहले दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात ही स्वयं पितृ तर्पण का विधान है. उस समय मंत्र बोला जाता है कि 'ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।...ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।' इस मंत्र का अर्थ है कि पितरों में श्रेष्ठ अर्यमा को प्रणाम, हे पिता, पितामह, और प्रपितामह, हे माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम करते हैं. कृपया आप हमें मृत्यु से अमृत की राह प्रशस्त करें.