अंगूठे से पितरों को तर्पण और अनामिका में क्यों पहनते हैं कुशा की अंगूठी?
हथेली के अंगूठे वाले भाग को पितृ तीर्थ कहा गया है. मान्यता है कि जब इस पितृ तीर्थ से होकर जल पिंड तक जाता है तो पितरों को इसका पूरा फायदा होता है. इसी प्रकार कुशा को सबसे पवित्र होने की वजह से उसे अंगूठी बनाकर धारण करने का विधान है.;
पितरों के श्राद्ध की विधियां अलग अलग पौराणिक ग्रंथों में वर्णित हैं. इन्हीं में एक विधि है अंगूठे से तर्पण और अनामिका उंगली में कुशा की अंगूठी पहनने का. क्या आप जानते हैं कि यह परंपरा क्यों है? इस सवाल का जवाब अग्निपुराण में मिलता है. इसमें कहा गया है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान अंगूठे से पितरों को जल अर्पित करने से उनकी आत्मा तृप्त हो जाती है. दरअसल यहां हथेली के जिस भाग पर अंगूठा होता है, उसे पितृ तीर्थ कहा गया है. मान्यता है कि पितृ तीर्थ से होता हुआ जल पितरों के पिंडों तक पहुंचता है और इस प्रकार से किए गए तर्पण का पूरा भाग पितरों को प्राप्त होता है.
इसी लिए जहां कहीं भी श्राद्ध कर्म होता है, तर्पण हमेशा अंगूठे के माध्यम से किया जाता है. अब दूसरा सवाल यह कि कुशा की अंगूठी क्यों पहनते हैं, तो इसका भी जवाब गरुड़ पुराण में दिया गया है. इस पुराण में कुशा को बहुत ही पवित्र माना गया है. कहा गया है कि कुशा वास्तव में वाराह भगवान के शरीर के रोएं हैं. यह रोएं हिरण्याक्ष के वध के समय भगवान के शरीर से गिरे थे. गरुड़ पुराण के मुताबिक जब गरुड़ देव अमृत कलश स्वर्ग से पृथ्वी पर लेकर आए तो उन्होंने कुछ समय के लिए इस कलाश को कुशा के ऊपर रखा था. यही वजह है कि चाहें धार्मिक अनुष्ठान हों या श्राद्धकर्म, हमेशा कुशा की अंगूठी धारण की जाती है.
अनामिका उंगली में होता है त्रिदेवों का वास
इसे अनामिका उंगली में धारण किया जाता है.दरअसल इस उंगली में तीनों देवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास रहता है. इस उंगली के मूल भाग में शिव तो मध्य भाग में विष्णु भगवान रहते हैं और अग्रभाग में ब्रह्मा जी का निवास है. चूंकि कुशा एक पवित्र चीज है और फिर तीनों देवताओं का उसे स्पर्श मिल जाता है तो इससे शरीर की भी शुद्धि होती है. इस कर्म का एक संदेश यह भी है कि अनामिका उंगली में कुशा धारण कर हम पूर्ण रूप से पवित्र होने के बाद ही अपने पितरों का ध्यान कर रहे हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक ऐसा करने से पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों पर कृपा बरसाते हैं.