अच्छी बात नहीं है पितरों की पूजा! श्रीमद भगवतगीता में ऐसा क्यों कहते हैं भगवान
गीता में भगवान श्रीकृष्ण साफ तौर पर पितरों की पूजा का विरोध करते हैं. वह कहते हैं कि जो व्यक्ति भूत-प्रेत या पितरों की पूजा करते हैं, वह उन्हीं के लोक की प्राप्ति करता है. इसलिए इसे श्रेष्ठ कर्म नहीं कहा जा सकता.;
पितृपक्ष चल रहा है, तमाम लोग अनेकानेक विधियों से पितरों की पूजा कर रहे हैं. उन्हें संतुष्ठ करने के लिए तर्पण कर रहे हैं. हालांकि सनातन धर्म के महान ग्रंथ गीता में इस तरह के कर्म को निषिद्ध माना गया है. कुरुक्षेत्र के मैदान में जब कौरवों और पांडवों की सेनाएं आमने सामने खड़ी थीं और भगवान नारायण युद्ध के मैदान की ठीक बीच में अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, उस समय उन्होंने यहां तक कह दिया था कि इस तरह की कोई भी पूजा नहीं करनी चाहिए. हो सकता है कि यह पढ़ कर आपको हैरानी हो रही हो, लेकिन यही सत्य है. आइए हम उसी प्रसंग पर चलते हैं.
यह प्रसंग श्रीमद भगवत गीता के नौवें अध्याय में मिलता है. इस अध्याय के 25वें श्लोक में भगवान कृष्ण खुद अपने मुख से अर्जुन को संबोधित करते हुए कहते हैं कि 'यान्ति देवव्रता देवान् पितृ़न्यान्ति पितृव्रताः। भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।' मतलब जो व्यक्ति देवता की पूजा करता है तो वह देवलोक जाता है और जो पितरों की पूजा करता है उसे पितृलोक की प्राप्ति होती है. ठीक इसी प्रकार जो व्यक्ति भूत-प्रेत की उपासना करता है उसे उसी योनी कि प्राप्ति होती है. भगवान नारायण अर्जुन के संदेह का निवारण करते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति पितरों की या भूत प्रेत की उपासना करता है, उनकी पूजा करता है, उनका व्यवहार इसी जन्म में भूत प्रेतों जैसा होता है.
भगवान कहते हैं कि केवल मेरा चिंतन करो
इसी प्रकार जो व्यक्ति मेरी पूजा करता है, वह इस जन्म में भी देवरूप जैसा होता है और जीवन के बाद मेरे ही साथ वैकुंठ में वास करता है. श्रीमद भगवत गीता के नौवें अध्याय में ही भगवान इसी बात को दूसरे रूप में कहते हैं. इस अध्याय के 34वें श्लोक में भगवान कहते हैं कि 'मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।' मतलब इंसान को किसी तरह की चिंता नहीं करनी चाहिए. बल्कि उसे सदैव मेरा ही चिंतन करना चाहिए. भगवान अर्जुन को जरिए पूरी सृष्टि को समझाते हुए कहते हैं कि कहीं भटकने की जरूरत नहीं है. मेरे भक्त बनो, मुझे नमस्कार करो, मेरी पूजा करो, मुझे अर्पण करो.
विद्वानों ने भी इस विषय पर रखी अपनी राय
यदि तुम ऐसा करते हो तो अंतत: मुझे ही प्राप्त हो जाओगे. अब आपके मन में सवाल उठ सकता है कि वेद व्यास ने ही श्रीमदभागवत लिखी और उसमें पितरों के लिए पिंडदान का प्रावधान किया और उन्होंने ही महाभारत लिखी, जिसका गीता एक खंड है. इसमें वह पितरों की पूजा को निषिद्ध बता रहे हैं. ऐसा कैसे संभव ? इस सवाल के जवाब में कई विद्वानों ने अपनी राय रखी है. माना है कि पिंडदान कोई पूजा नहीं है. यह तो बस पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए उनकी मुक्ति का उपाय भर है. इसलिए पिंडदान करने में कोई दिक्कत नहीं है.