Karwa Chauth 2024: क्यों सरगी की परंपरा मानी जाती है शुभ, जानें इससे जुड़ी रोचक कथा
करवाचौथ का व्रत हर सुहागन स्त्री के लिए बेहद खास होता है और इस व्रत के दौरान सरगी खाने की परंपरा का विशेष महत्व है. सरगी के बिना करवाचौथ का व्रत अधूरा माना जाता है. यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसे देवी पार्वती से जोड़ा जाता है. आइए, जानते हैं इस साल सरगी का शुभ समय, इसकी परंपरा और इससे जुड़ी रोचक कथा.;
Karwa Chauth 2024: करवाचौथ का व्रत हर सुहागन स्त्री के लिए बेहद खास होता है और इस व्रत के दौरान सरगी खाने की परंपरा का विशेष महत्व है. सरगी के बिना करवाचौथ का व्रत अधूरा माना जाता है. यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसे देवी पार्वती से जोड़ा जाता है. आइए, जानते हैं इस साल सरगी का शुभ समय, इसकी परंपरा और इससे जुड़ी रोचक कथा.
क्या है सरगी और इसका महत्व?
करवाचौथ के व्रत की शुरुआत सरगी से होती है, जो सूर्योदय से पहले खाई जाती है. सरगी का अर्थ है वह भोजन जो सास अपनी बहू को व्रत रखने से पहले देती है. इसमें मुख्य रूप से फल, मिठाई, ड्राई फ्रूट और पूजा की सामग्री शामिल होती है. इसके अलावा, 16 श्रृंगार की वस्तुएं भी सरगी का हिस्सा होती हैं. सरगी सास के प्यार और आशीर्वाद का प्रतीक मानी जाती है, जिससे बहू पूरे दिन निर्जला व्रत रखने की शक्ति प्राप्त करती है.इस परंपरा के अनुसार, सास द्वारा दी गई सरगी को खाकर ही महिलाएं करवाचौथ का व्रत शुरू करती हैं.
सरगी खाने का शुभ समय
सरगी खाने का सबसे शुभ समय ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह 4 से 5 बजे के बीच माना जाता है. इस समय सरगी खाना विशेष रूप से शुभ और लाभकारी माना जाता है. सरगी सूर्योदय से पहले खानी चाहिए, क्योंकि सूर्योदय के बाद इसे खाने का नियम नहीं है. इस समय के बाद सरगी खाना व्रत की पवित्रता को प्रभावित कर सकता है, इसलिए सभी महिलाएं इस नियम का पालन करती हैं.
सरगी की परंपरा से जुड़ी कथा
सरगी की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है और इससे दो महत्वपूर्ण कथाएं जुड़ी हुई हैं. पहली कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती ने भगवान शिव के लिए पहली बार करवाचौथ का व्रत रखा था तब उनकी मां मैना ने उन्हें सरगी दी थी. चूंकि पार्वती जी की सास नहीं थीं, इसलिए यह परंपरा शुरू हुई कि जिन महिलाओं की सास नहीं होती, उन्हें मां द्वारा सरगी दी जा सकती है. दूसरी कथा महाभारत काल से जुड़ी है. इसमें कहा जाता है कि द्रौपदी ने पांडवों के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था और उस समय उनकी सास कुंती ने उन्हें सरगी दी थी. इस प्रकार, ससुराल पक्ष से सरगी देने की परंपरा की शुरुआत हुई.
डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसके सही या गलत होने की पुष्टि नहीं करते.