सुहागिनों के सौभाग्य का प्रतीक है करवा चौथ, जानिए व्रत का महत्व और पुराणों में इसके पीछे की कहानी
करवाचौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती हैं. इस व्रत का धार्मिक और सामाजिक दोनों दृष्टिकोण से बड़ा महत्व है. सुहागिन महिलाओं के साथ कई कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए करती हैं. जहां सुहागिन महिलाएं चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत तोड़ती हैं.;
Karwa Chauth 2024: करवाचौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती हैं. इस व्रत का धार्मिक और सामाजिक दोनों दृष्टिकोण से बड़ा महत्व है. सुहागिन महिलाओं के साथ कई कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए करती हैं. जहां सुहागिन महिलाएं चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत तोड़ती हैं, वहीं कुंवारी कन्याएं तारे देखकर अपना व्रत समाप्त करती हैं.
व्रत की पूजा विधि
करवाचौथ के दिन व्रती महिलाओं को प्रातः स्नानादि करके संकल्प लेना चाहिए कि वे अपने पति के सुख, सौभाग्य और लंबी आयु के लिए यह व्रत कर रही हैं. वामनपुराण के अनुसार, पूजा के लिए शिव, पार्वती, और स्वामी कार्तिक की मूर्तियों को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. पूजन में काली मिट्टी से बने करवे में चीनी की चासनी या घी में सेंके लड्डुओं का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए. पूजन के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा है, जिसके बाद व्रती महिलाएं जल और भोजन ग्रहण करती हैं.
इस व्रत में विशेष रूप से 13 करवे या लड्डू बनाकर भगवान को अर्पित करने की परंपरा है. इसके साथ ही एक करवा, एक लोटा और एक वस्त्र पति के माता-पिता को भी अर्पित करना चाहिए. यह व्रत अखंड सौभाग्य और समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है.
पुराणों में करवाचौथ की कथा
करवाचौथ व्रत की एक प्रसिद्ध कथा वीरवती नामक ब्राह्मण कन्या की है. वीरवती ने अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखा, लेकिन भूख से व्याकुल होकर उसने समय से पहले भोजन कर लिया, क्योंकि उसके भाइयों ने उसे झूठे चंद्र दर्शन करवाए थे. इसका परिणाम यह हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो गई. वीरवती ने अपने पति को पुनर्जीवित करने के लिए बारह महीने तक हर चतुर्थी का व्रत किया और अंत में उसे सफलता मिली.
करवाचौथ
करवाचौथ न केवल सुहागिनों के लिए सौभाग्य का प्रतीक है, बल्कि यह दांपत्य जीवन में प्रेम, समर्पण और विश्वास को भी प्रकट करता है. यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने के साथ-साथ धार्मिक आस्था और परंपरा की गहरी जड़ों को भी दर्शाता है.
डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसके सही या गलत होने की पुष्टि नहीं करते.