तिरुपति मंदिर के जिस लड्डू को लेकर हुआ विवाद आखिर क्या है उसका इतिहास, कैसे विराजे भगवान

Tirupati laddu row: तिरुपति लड्डू सिर्फ एक मिठाई नहीं है, बल्कि यह भगवान वेंकटेश्वर स्वामी का आशीर्वाद माना जाता है. हर साल लाखों श्रद्धालु तिरुमला मंदिर में दर्शन करने आते हैं और लड्डू प्रसाद के रूप में घर ले जाते हैं.;

Tirupati laddu row
By :  स्टेट मिरर डेस्क
Updated On : 26 Sept 2024 5:36 PM IST

Tirupati laddu row: तिरुपति मंदिर, जिसे वेंकटेश्वर मंदिर भी कहा जाता है, दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में स्थित है. यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार वेंकटेश्वर को समर्पित है और यह विश्व के सबसे धनी और लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है. हर साल लाखों श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं, जो इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है. हाल ही में मंदिर में बने लड्डू को लेकर विवाद हुआ था सत्ताधारी पार्टी ने पूर्व सरकार पर आरोप लगाया कि उसके समय लड्डू बनाने में जानवरों की चर्बी और मछली के तेल का इस्तेमाल हुआ करता था. 

मंदिर का प्राचीन इतिहास और लड्डू की कहानी 

तिरुपति मंदिर का इतिहास लगभग हजारों साल पुराना है. इसका निर्माण 9वीं सदी में किया गया माना जाता है, लेकिन इसके पीछे की किंवदंती और मान्यताएँ इससे भी पुरानी हैं. विभिन्न शासकों ने इस मंदिर को समय-समय पर विकसित और पुनर्निर्मित किया. विशेष रूप से, चालुक्य, चोल, और विजयनगर साम्राज्य के दौरान इस मंदिर का विस्तार हुआ. इस दौरान, मंदिर के गर्भ गृह और अन्य संरचनाओं का निर्माण और सौंदर्यीकरण किया गया. 

एक शिलालेख मंदिर के ‘आनंद निलयम’ के प्रथम प्राकारम (आंतरिक परिसर) की उत्तरी दीवार पर पाया जाता है, जो गर्भगृह के ऊपर छत्र है. इसे आज भी ‘विमान वेंकटेश्वर’ मूर्ति के पास पाया जा सकता है. राजेंद्र चोल-I के सातवें शासनकाल वर्ष 1019 ई. का यह शिलालेख मंदिर को दिए गए दान और दान का उल्लेख करता है.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), मैसूर के निदेशक (एपिग्राफ) के मुनिरत्नम रेड्डी ने बताया कि 'परिचारकम' सेवा के लिए, जो कुल मिलाकर 23 पोन है, घी को अच्छी तरह से पैक किया जा सकता है और दैनिक प्रावधान के लेखों के साथ तिरुमाला ले जाया जा सकता है और इस ओर से काम करने वाले सेवकों को बिना किसी बाधा के दीप जलाने में सक्षम बनाया जा सकता है, "शिलालेख के अनुवादित संस्करण में कहा गया है. "यह पहला शिलालेख है जिसमें भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर में पूजा और भोजन प्रसाद के संचालन और उचित रखरखाव में खामियों की जांच के लिए एक समिति के गठन का उल्लेख है," 

तिरुपति लड्डू का इतिहास

तिरुपति लड्डू का इतिहास लगभग सैकड़ों साल पुराना है. इस प्रसाद का वितरण तिरुमला मंदिर में 18वीं शताब्दी से शुरू हुआ था. ऐसा माना जाता है कि इस लड्डू को भगवान वेंकटेश्वर स्वामी को अर्पित किया गया और तब से यह मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में दिया जाने लगा. लड्डू का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसे मंदिर के पारंपरिक तरीकों से बनाया जाता है, जो इसे विशिष्ट और पवित्र बनाता है. 

तिरुपति लड्डू का महत्व

तिरुपति लड्डू बालाजी मंदिर में प्रसाद के रूप में दिया जाता है और इसका धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है. भक्तगण इसे आशीर्वाद के रूप में लेते हैं, और यह मान्यता है कि यह प्रसाद भगवान वेंकटेश्वर की कृपा का प्रतीक है. लड्डू का स्वाद और उसकी निर्माण प्रक्रिया भी खास है. इसे शुद्ध घी, बेसन, चीनी, सूखे मेवे और काजू से तैयार किया जाता है. यह प्रसाद वर्षों से तिरुपति बालाजी मंदिर की पहचान का हिस्सा बना हुआ है, और भक्त इसे आस्था के साथ ग्रहण करते हैं. 

 गर्भ गृह में भगवान वेंकटेश्वर

गर्भ गृह में भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति की विशेषता यह है कि यह मूर्ति स्वर्ण और अन्य कीमती धातुओं से निर्मित है मूर्ति की विशेषता है कि यह प्रतिदिन भक्तों के लिए विभिन्न पूजा अर्चनाओं के माध्यम से सजीव और प्रत्यक्ष अनुभव कराई जाती है. कहा जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर ने इस स्थान पर भक्तों की कठिनाइयों को सुनने और उन्हें दूर करने का प्रण लिया है.

तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान का विराजना

तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है. यह माना जाता है कि भगवान विष्णु ने कलियुग में अपने भक्तों का उद्धार करने के लिए इस मंदिर में वेंकटेश्वर रूप में निवास किया है. मंदिर की मुख्य मूर्ति भगवान वेंकटेश्वर की है, जिसे ‘स्वयंभू’ यानी स्वयंसिद्ध मूर्ति माना जाता है. यह मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी और इसका कोई निर्माण नहीं हुआ था. भगवान बालाजी की इस मूर्ति के दर्शन के लिए देश-विदेश से भक्त आते हैं.

मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की पूजा अत्यंत नियमपूर्वक की जाती है. प्रतिदिन सुबह से लेकर रात तक विशेष अनुष्ठान होते हैं, जिनमें भगवान के अभिषेक, भोग और आरती शामिल होते हैं. भक्तगण भी इस पूजा में हिस्सा लेते हैं और भगवान के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं.

तिरुमाला की महत्ता

तिरुपति मंदिर तिरुमाला पर्वत पर स्थित है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक वातावरण के लिए प्रसिद्ध है. तिरुमाला पर्वत पर पहुँचने के लिए भक्तों को कई तरह के मार्ग उपलब्ध हैं, जिनमें पैदल यात्रा का मार्ग भी शामिल है. यह यात्रा अपने आप में एक धार्मिक अनुभव होता है, जिससे भक्तों का मनोबल और बढ़ता है. 

तिरुपति मंदिर भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का प्रतीक है. यह न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का स्थान है, बल्कि यह भारतीय इतिहास और वास्तुकला की एक महत्वपूर्ण मिसाल भी है. समय के साथ, तिरुपति मंदिर ने अपने भक्तों के दिलों में एक विशेष स्थान बना लिया है, जो हर वर्ष बढ़ती जा रही है. 

डिस्क्लेमर: इस खबर को सामान्य जानाकारी और मान्यताओं के आधार पर लिखा गया है. हम इसके सही या गलत होने की पुष्टि नहीं करते. 

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