Chhath 2025 : नहाय-खाय से शुरू हुआ लोक आस्था का महापर्व, जानें पूरी विधि और शुभ मुहूर्त

छठ का पहला दिन नहाय-खाय आत्मशुद्धि और भक्ति का प्रतीक माना जाता है. इस दिन व्रती स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करते हैं. गंगा नदी में स्नान सर्वश्रेष्ठ माना गया है, लेकिन यदि संभव न हो तो सामान्य जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करना शुभ होता है.;

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Edited By :  रूपाली राय
Updated On : 25 Oct 2025 11:00 AM IST

देशभर में आस्था, भक्ति और अनुशासन के प्रतीक छठ महापर्व की शुरुआत आज 25 अक्टूबर, शनिवार से हो गई है. यह पर्व सूर्य उपासना और माता छठी (उषा) की आराधना को समर्पित है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत आज 'नहाय-खाय' से हो रही है, जिसे छठ पूजा का पहला और सबसे पवित्र दिन माना जाता है. इस साल छठ पूजा का आरंभ शोभन योग और रवि योग जैसे शुभ संयोग में हुआ है, जो पूजा के लिए अत्यंत फलदायी माने जाते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, छठ महापर्व हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होता है और सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सम्पन्न होता है. 

छठ पूजा 2025 की प्रमुख तिथियां

पहला दिन (25 अक्टूबर, शनिवार): नहाय-खाय

दूसरा दिन (26 अक्टूबर, रविवार): खरना

तीसरा दिन (27 अक्टूबर, सोमवार): डूबते सूर्य को अर्घ्य

चौथा दिन (28 अक्टूबर, मंगलवार): उगते सूर्य को अर्घ्य और पारण

नहाय-खाय का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि आज 25 अक्टूबर को रात 01:19 बजे से शुरू हुई है और 26 अक्टूबर को सुबह 03:48 बजे तक रहेगी. इस प्रकार उदयातिथि के आधार पर नहाय-खाय आज ही मनाया जा रहा है. 

शोभन योग: 25 अक्टूबर, सुबह 5:55 बजे से 26 अक्टूबर, सुबह 3:48 बजे तक

रवि योग: 25 अक्टूबर, सुबह 7:51 बजे से 26 अक्टूबर, सुबह 6:29 बजे तक

अनुराधा नक्षत्र: प्रातःकाल तक, उसके बाद ज्येष्ठा नक्षत्र रहेगा

अभिजीत मुहूर्त (48 मिनट का शुभ समय): सुबह 11:42 बजे से दोपहर 12:27 बजे तक सबसे शुभ समय

नहाय-खाय की विधि और महत्व

छठ का पहला दिन नहाय-खाय आत्मशुद्धि और भक्ति का प्रतीक माना जाता है. इस दिन व्रती स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करते हैं. गंगा नदी में स्नान सर्वश्रेष्ठ माना गया है, लेकिन यदि संभव न हो तो सामान्य जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करना शुभ होता है. इसके बाद घर और रसोई की पूरी सफाई की जाती है। पूजा के स्थान को पवित्र कर सूर्य देव और छठी मइया की आराधना की जाती है. इस दिन व्रती एक बार भोजन करते हैं, जिसमें चने की दाल, लौकी की सब्जी और चावल होते हैं. यह भोजन पूरी तरह सात्विक और शुद्ध घी व सेंधा नमक से तैयार किया जाता है. इसी दिन से व्रती 36 घंटे के कठिन निर्जला व्रत की मानसिक तैयारी करते हैं. इस दौरान सात्विक आचरण, ब्रह्मचर्य और संयम का पालन जरूरी होता है. शराब, मांस, तंबाकू, पान आदि जैसे तामसिक पदार्थों का सेवन पूर्ण रूप से वर्जित होता है. 

छठ पूजा का दूसरा दिन: खरना

26 अक्टूबर को छठ का दूसरा दिन 'खरना' मनाया जाएगा. इस दिन शाम के समय व्रती पूरे दिन उपवास रखने के बाद गुड़ वाली खीर, रोटी और केले का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसके बाद ही 36 घंटे का निर्जला उपवास प्रारंभ होता है, जो अगले दो दिनों तक चलता है. 

अर्घ्य देने की तिथियां

27 अक्टूबर (सोमवार): शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य

28 अक्टूबर (मंगलवार): सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पारण, यानी व्रत पूरा होता है 

अर्घ्य देने के समय महिलाएं और पुरुष घाटों या तालाबों के किनारे खड़े होकर सूर्य देव और छठी मइया से परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की रक्षा और स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं. 

छठ पूजा का महत्व और आस्था

छठ महापर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि शुद्धता, आत्मसंयम और कृतज्ञता का प्रतीक है. माना जाता है कि जो भक्त पूरी श्रद्धा से छठी मइया की पूजा करते हैं, उनके जीवन से संकट दूर होते हैं और परिवार में सुख-शांति आती है. सूर्य देव की उपासना से नेत्र और चर्म रोग दूर होते हैं तथा शरीर में ऊर्जा बढ़ती है. वहीं छठी मइया की कृपा से संतान की दीर्घायु और समृद्धि प्राप्त होती है. आज पूरे उत्तर भारत, विशेषकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में घाटों पर छठ गीतों की गूंज है- 'केलवा जे फरेला घवद से ओही पे चढ़ीहे सखिया...' हर ओर दीपों की रोशनी और भक्ति का उजाला है. 

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