Chaitra Navratri 2025: मां कुष्मांडा की पूजा करने से मिलती हैं ये शक्तियां

चैत्र नवरात्रि हिन्दू कैलेंडर के पहले महीने 'चैत्र में मनाई जाती है. इसे भारतीय नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है, जो विशेष रूप से उत्तरी भारत में प्रचलित है. इस दौरान माता दुर्गा के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है.;

Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 2 April 2025 9:33 AM IST

मां कुष्मांडा देवी हिंदू धर्म की नौ दुर्गाओं में से एक हैं और उन्हें विशेष रूप से चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन पूजा जाता है. वे देवी दुर्गा का एक रूप हैं और उन्हें शक्ति, सुख-शांति, और समृद्धि की देवी माना जाता है.

मां कुष्मांडा का नाम संस्कृत शब्द कुष्मांडा से लिया गया है, जिसका अर्थ है कुश्मांडा यानी एक प्रकार का फल, जो अच्छाई और शांति का प्रतीक है और अंडा सृष्टि का प्रतीक है. उन्हें सृष्टि की उत्पत्ति करने वाली और "सृष्टि को बनाए रखने वाली के रूप में पूजा जाता है.

मां कुष्मांडा का स्वरूप

मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं होती हैं. वे एक हाथ में कमल का फूल, दूसरे में धन की थाली, तीसरे में गदा (बल) और चौथे में अमृत कलश (जीवन और ऊर्जा का प्रतीक) पकड़े हुए हैं. मां कुष्मांडा का वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है.

मां की शक्ति

मां कुष्मांडा को अंधकार को दूर करने वाली और भक्तों को आशीर्वाद देने वाली माना जाता है. वह अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं और उन्हें जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाने का वरदान देती हैं.

पूजा और महत्व

मां कुष्मांडा की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि यह दिन शक्ति के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है. भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं  और देवी के मंत्रों "ॐ कुष्माण्डायै नमः" का जाप करते हैं. मां कुष्मांडा का आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि, और शारीरिक-मानसिक शक्ति की प्राप्ति होती है. उनकी पूजा से व्यक्ति के जीवन में सभी प्रकार के विघ्न दूर होते हैं.

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