क्‍या गोरखालैंड बनेगा केंद्रशासित प्रदेश? केंद्र के साथ गोरखा नेताओं की बैठक से टेंशन में ममता बनर्जी

Gorkhaland to UT: गोरखा नेता इस बात से नाराज हैं कि बंगाल सरकार ने 3 साल बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय की बैठक में भाग नहीं लिया. इस बैठक में 11 गोरखा समूहों के लिए ST दर्जे की मांग पर भी चर्चा की गई थी. अगले साल बंगाल विधानसभा चुनाव है और इससे पहले गोरखालैंड की मांग सीएम ममता बनर्जी के लिए टेंशन से भरी खबर है.;

Gorkhaland to UT
Edited By :  सचिन सिंह
Updated On : 5 April 2025 3:09 PM IST

Gorkhaland to UT: गोरखालैंड के गोरखा पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार से काफी नाराज चल रहे हैं. उनका शिकायत है कि सरकार उनकी मांगों और उन्हें दरकिनार करके उनके साथ सौतेला व्यवहार करती है. हाल में ही दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्रालय में गोरखा नेताओं ने एक बार फिर से गोरखा लैंड की मांग कर दी है. इसके साथ ही अपनी कई समस्याओं और मांगों को सरकार के सामने रखा है.

ममता बनर्जी की सरकार से नाराज गोरखा नेताओं की नाराजगी और बढ़ चुकी है, क्योंकि केंद्र सरकार ने इस बैठक में ममता सरकार के मुख्य सचिव मनोज पंत को भी आमंत्रित किया था और वह इसमें शामिल नहीं हुए. मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (TMC) सुप्रीमो ममता बनर्जी बंगाल से अलग गोरखालैंड राज्य के गठन के सख्त खिलाफ हैं. इसके कई राजनीतिक कारण हैं. हालंकि, इससे भी गोरखा का गुस्सा ममता बनर्जी पर फूटता रहता है.

गोरखालैंड को केंद्रशासित प्रदेश बनाने की चल रही तैयारी!

बीजेपी के दार्जिलिंग सांसद राजू बिस्टा ने बताया कि बैठक में गोरखा प्रतिनिधिमंडल ने दार्जिलिंग, तराई और दोआर्स जैसे क्षेत्रों के रणनीतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा पर बात की, जहां गोरखा समुदाय का वर्चस्व है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर यहां का मसला सुलझाया नहीं गया तो राजनीतिक, जातीय या आर्थिक संघर्ष के कारण राष्ट्रीय एकीकरण और सुरक्षा के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते है.

बैठक के बाद एक सरकारी प्रेस रिलीज जारी किया गाय, जिसमें कहा गया कि प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया है कि केंद्र सरकार पश्चिम बंगाल सरकार के साथ बातचीत के जरिए संवैधानिक ढांचे के भीतर गोरखाओं के मुद्दों को हल करेगी. वहीं सूत्रों के हवाले से खबर ये भी है कि केंद्र सरकार अपने भविष्य की रणनीति में गोरखालैंड की मांग को केंद्र शासित प्रदेश के रुप में देख रही है. ऐसे में ममता सरकार की टेंशन बढ़ती दिख रही है.

80 के दशक से उठ रही गोरखालैंड की मांग

गोरखालैंड (Gorkhaland) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के उत्तरी भाग में स्थित एक प्रस्तावित राज्य है, जो मुख्य रूप से दार्जिलिंग, कलिम्पोंग, और ऊत्तरी पश्चिम बंगाल के अन्य पहाड़ी क्षेत्रों को शामिल करता है. यह क्षेत्र अपनी सुंदर पहाड़ियों, चाय बागानों, और विविध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है.

गोरखालैंड की मांग पहली बार 1980 के दशक में उठी थी जब गोर्खा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) के नेता चंद्रकांत यादव और बलराज बहल ने इस आंदोलन की शुरुआत की थी. इसके बाद यह आंदोलन और भी प्रबल हुआ, विशेष रूप से 1990 के दशक में, जब बिप्लब कुमार देब जैसे नेताओं ने इस आंदोलन को नई दिशा दी.

गोरखा का इतिहास

दार्जिलिंग क्षेत्र को ब्रिटिशों ने 1835 में एक हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया था. यहां गोरखा समुदाय को बसाया गया और उनकी भाषा व संस्कृति को विशेष स्थान मिला. 1950 के दशक में दार्जिलिंग को पश्चिम बंगाल में शामिल कर दिया गया लेकिन वहां के गोरखा समुदाय को लगा कि उनकी पहचान और भाषा को नजरअंदाज किया जा रहा है.

1988-1992 के दौरान गोरखालैंड आंदोलन चरम पर था, जिसमें हड़तालें, सड़क जाम, और हिंसक घटनाएं घटीं. 1992 में सरकार ने गोरखा जनजातीय प्रशासन (GTA) की स्थापना की, जो एक आंशिक स्वायत्त प्रशासनिक इकाई थी. 2007-2013 में आंदोलन फिर से तेज हुआ, जिसमें बिप्लब कुमार देब और प्रदीप कुमार रॉय जैसे नेताओं ने नेतृत्व किया. 2017 में दार्जिलिंग में 104-दिन की लंबी हड़ताल हुई, जिसमें स्थिति बेहद तनावपूर्ण रही. ये गोरखा की आखिरी बार किया गया आंदोलन था.

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