'एक राष्ट्र एक चुनाव' पर आगे क्या, मोदी सरकार का किन- किन चुनौतियों से होगा सामना?
एक राष्ट्र, एक चुनाव पहल की सफलता संसद द्वारा दो संविधान संशोधन विधेयकों को पारित करने पर निर्भर करती है. जिसके लिए विभिन्न राजनीतिक दलों से व्यापक समर्थन की जरूरत होगी. भाजपा के पास लोकसभा में अपने दम पर बहुमत नहीं है इसलिए उसे न केवल NDA सहयोगियों बल्कि विपक्षी दलों को भी शामिल होगा.;
जैसा की सभी को मालूम होगा की हमारे देश में हर साल किसी न किसी राज्य में विधानसभा का चुनाव होता है वहीं बीते दिन 18 सितंबर को एक देश, एक चुनाव को लेकर एक खबर सामने आई है जिसका मतलब है की पांच साल में एक बार चुनाव होगा यानी आसान शब्दों में कहें तो पांच साल में एक बार ही वोट देना होगा. चुनाव सुधारों के तहत एक साथ चुनाव कराने का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के चुनाव घोषणापत्र में रहा है तो आइए इस खबर में जानते हैं कि अभी एक देश, एक चुनाव को लेकर का बिल पास में तक में कितनी चुनौतियां का सामना कैबिनेट को करना पड़ेगा.
एक राष्ट्र, एक चुनाव पहल की सफलता संसद द्वारा दो संविधान संशोधन विधेयकों को पारित करने पर निर्भर करती है. जिसके लिए विभिन्न राजनीतिक दलों से व्यापक समर्थन की जरूरत होगी. भाजपा के पास लोकसभा में अपने दम पर बहुमत नहीं है इसलिए उसे न केवल NDA सहयोगियों बल्कि विपक्षी दलों को भी शामिल होगा. NDA के प्रमुख घटक जनता दल ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इस तरह के उपाय से देश को बार- बार चुनाव से मुक्ति मिलेगी. सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और नीतिगत निरंतरता आएगी.
देश के कब तक होगा एक देश, एक चुनाव?
अगर एक राष्ट्र, एक चुनाव की नीति संभवतः 2029 तक असल में बन जाती है और लोकसभा या राज्य विधानसभा नियत डेट के बाद बहुमत खोने के कारण अपने पांच साल के कार्यकाल से पहले भंग हो जाती है तो समिति ने नए चुनाव कराने की सिराफिश की है. इन्हें मध्य चुनाव माना जाएगा और नई सरकार बनती है तो बचे हुए समय में काम करेगी. बात करें एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया की तो अविश्वास प्रस्ताव भी समाप्त हो सकते हैं क्योंकि विपक्षी दलों को सरकार गिराने में कोई खास लाभ नहीं नजर आएगा क्योंकि आने वाली सरकार पूरा पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी.
एक राष्ट्र एक चुनाव व्यवस्था लागू होने के कई फायदे हैं वहीं बात करें फायदे की तो देश में बार- बार चुनाव नहीं होंगे और सरकारें नीति और प्रशासन पर सहीं से ध्यान केंद्रीय कर पाएंगी. बार-बार चुनाव कराने से सरकार पर काफी वित्तीय बोझ पड़ता है जो कम होगा. संसाधन कम खर्च होंगे और पैसा भी बचेगा. इसके साथ ही एक राष्ट्र एक चुनाव से राजनीतिक भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगेगी. साल दर साल चुनाव कराने का खर्च बढ़ता जा रहा है जिस पर शिकंजा कसेगा.
साल 2024 के आम चुनाव में कितना खर्चा आया?
बात करें चुनावी खर्चो की तो आम चुनाव में हुए उस समय चुनाव का खर्चा करीब 10 करोड़ का आया था तो वहीं साल 2014 की बात करें तो 3870 करोड़. साल 2019 में 50 हजार करोड़ से अधिक था इसके साथ साल 2024 के आम चुनाव में खर्चे की बात करें तो 1 लाख 35 हजार करोड़ के आस पास हुआ यह रिपोर्ट पर आधारित पर चुनावी अनुमान का खर्चा है.मुफ्त उपहारों की घोषणा करने का दबाव भी कम होगा.
एक देश, एक चुनाव के लाभ और चुनौतियां
एक देश, एक चुनाव के साथ संवैधानिक बाधाएं आएंगी. संविधान अनिवार्य करता है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं दोनों को पांच साल का कार्यकाल पूरा करना चाहिए. जब तक कि उन्हें पहले भंग न कर दिया जाए. यदि कोई सरकार बीच में गिर जाती है, तो इससे समन्वित चुनाव चक्र बाधित हो सकता है. अगर यह फैसला लागू होता है तो अगले कुछ सालों में कुछ विधानसभाओं का टर्म कम हो जाएगा तो कहीं टर्म समाप्त होने पर राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ सकता है. इसे लागू करने के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों की आवश्यकता होगी. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की तादाद काफी ज्यादा बढ़ानी होगी और सैकड़ों लोगों की जरूरत पड़ेगी.