ये Lust नहीं Love का नतीजा है... SC ने पॉक्सो एक्ट के दोषी को किया बरी, लड़की के नाबालिग होने पर मिली थी 10 साल की सजा
कोर्ट ने बताया कि यह पहला ऐसा फैसला नहीं मई में भी इसी तरह पोक्सो के एक दोषी को अनुच्छेद 142 के तहत राहत दी गई थी, जहां पीड़िता ने भी अपने प्रेमी के रिहा होने की इच्छा जताई थी.;
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 की खास शक्तियों का इस्तेमाल कर एक ऐसे युवक को बरी किया जिसे पोक्सो अधिनियम के तहत 10 साल की सजा हुई थी. मामला इस तरह था कि दोनों युवक-युवती प्रेम में थे, लेकिन घटना के वक्त लड़की नाबालिग थी. बाद में दोनों ने शादी कर ली और उनका एक बच्चा भी है. न्यायालय (जस्टिस दीपांकर दत्ता व जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह) ने कहा कि कानूनी रूप से वह दोषी माना गया है, पर सच यह है कि यह अपराध वासना का नहीं, बल्कि लव अफेयर का नतीजा था.
कोर्ट ने देखा कि पीड़िता जो अब उसकी पत्नी बन गई है. अब वह पति और बच्चे के साथ शांतिपूर्ण जीवन चाहती है. जेल में रखने से परिवार और बच्चे को ज्यादा नुकसान होगा इसलिए दया और व्यावहारिकता के आधार पर सजा माफ की गई. साथ ही अदालत ने कुछ शर्तें राखी पति को पत्नी और बच्चे का साथ और पालन-पोषण निभाना होगा; भविष्य में कोई गलत व्यवहार हुआ तो सख्त कार्रवाई होगी.
कैसे मामलों में होता इसका इस्तेमाल
कोर्ट ने बताया कि यह पहला ऐसा फैसला नहीं मई में भी इसी तरह पोक्सो के एक दोषी को अनुच्छेद 142 के तहत राहत दी गई थी, जहां पीड़िता ने भी अपने प्रेमी के रिहा होने की इच्छा जताई थी. अनुच्छेद 142 का उपयोग कभी-कभी ऐसे मामलों में होता है जहां क़ानून का कठोर एप्लीकेशन निष्पक्षता या राजकीय हित के विपरीत परिणाम दे सकता है. उदाहरण: सरकारी आदेशों को सुधारना, मानवतावादी रिहाई, या न्याय की तत्काल पूर्ति जहां नियमें बनकर बच सकती हैं.
पोक्सो के तहत कड़ी सजा देना
पोक्सो (Protection of Children from Sexual Offences) 2012 में बना. इसका लक्ष्य बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को कड़ी सजा देना और रक्षा-व्यवस्था मजबूत करना है. बावजूद इसके, कोर्ट-केसों में कभी-कभी पीड़िता की इच्छा, पारिवारिक परिस्थितियां और हितों को मिलाकर न्याय का लचीलापन अपनाया जाता है.
पहले भी आएं ऐसे मामले
इस साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के एक युवक को पोक्सो अधिनियम के तहत दोषी ठहराए जाने के बावजूद अनुच्छेद 142 के तहत बरी कर दिया. घटना के समय लड़की नाबालिग थी, लेकिन बाद में दोनों ने शादी कर ली. लड़की को परिवार और समाज ने त्याग दिया, फिर भी उसने अकेले अदालत में लड़ाई लड़ी ताकि उसका पति जेल से रिहा हो सके. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम पीड़िता पर और अन्याय नहीं होने देंगे. वह पहले ही समाज और कानून दोनों से पीड़ा झेल चुकी है.' कोर्ट ने माना कि यह अपराध प्रेम का परिणाम था, न कि यौन शोषण का.
2023 में एक और मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 17 साल की लड़की और 19 साल के लड़के के प्रेम संबंध को अपराध नहीं माना. दोनों ने एक-दूसरे की सहमति से संबंध बनाए थे, लेकिन लड़की नाबालिग होने के कारण युवक पर पोक्सो केस दर्ज हुआ. बाद में दोनों ने शादी कर ली और उनके दो बच्चे हुए. मद्रास हाईकोर्ट ने सजा बरकरार रखी थी, पर सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल कर युवक को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि 'कानून का उद्देश्य बच्चों को शोषण से बचाना है, न कि ऐसे प्रेम संबंधों को दंडित करना जहां कोई बल या दबाव नहीं था.'