हिंदू राष्ट्र में हर किसी के लिए बराबरी, कोई भेदभाव नहीं, संघ के 100 साल पूरे होने पर मोहन भागवत ने क्या- क्या बताया
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने शताब्दी समारोह के मौके पर कहा कि हिंदू राष्ट्र का विचार राजनीति या सत्ता से संबंधित नहीं है, बल्कि यह समानता और समरसता पर आधारित है. उन्होंने संघ की स्वतंत्र पहचान और भाजपा से अलगाव पर जोर दिया. भागवत ने समावेशिता, धार्मिक सहिष्णुता और सभी नागरिकों की जिम्मेदारी की बात की. संघ का उद्देश्य भारत को वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाना और अपने मूल संस्कारों और परंपराओं की ओर लौटना है.;
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को पश्चिमी राष्ट्रवाद या राजनीतिक नजरिए से नहीं समझा जा सकता. उनका कहना था कि यह किसी पार्टी या सत्ता से संबंधित नहीं है, बल्कि यह समानता और समरसता पर आधारित है. भागवत के अनुसार, हिंदू राष्ट्र में धर्म, जाति या भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं होगा.
भागवत यह बातें दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला ‘न्यू होराइजन्स’ के पहले दिन कर रहे थे, जिसे संघ की शताब्दी समारोह के हिस्से के रूप में आयोजित किया गया है. इस अवसर पर उन्होंने संघ के मूल विचारों, उसकी स्वतंत्र पहचान और उसकी भूमिका पर विस्तार से चर्चा की.
संघ की स्वतंत्र पहचान
मोहन भागवत ने जोर देकर कहा कि संघ का कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है और यह सरकार से स्वतंत्र है. उन्होंने कहा कि संघ में “आचार, विचार और संस्कार” पर चर्चा होती है, लेकिन यह किसी पर अपनी राय थोपता नहीं है. हालांकि भाजपा के लिए यह संगठन वैचारिक आधार का काम करता है, भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ चुनावी राजनीति में सीधे शामिल नहीं होता है.
उन्होंने बताया कि संघ ने अपने इतिहास में “चुनौतियों और झूठे आरोपों” का सामना किया है, लेकिन इसका गठन किसी विरोध या किसी व्यक्ति या समुदाय के खिलाफ नहीं हुआ था. उन्होंने एमएस गोलवलकर के एक कथन का हवाला देते हुए कहा कि अगर किसी क्षेत्र में मुसलमान या ईसाई न भी हों, तो भी एक हिंदू समाज और संघ शाखा वहां मौजूद रहेगी.
सभी लोग एक-समान, कोई भेदभाव नहीं
भागवत ने कहा, “हम एकरूपता से एकता में विश्वास नहीं करते. कोई हिंदू और गैर हिंदू का भेद नहीं है. समावेशिता की कोई सीमा नहीं है. हम मतभेद स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन कलह नहीं. जो लोग हमसे असहमत हैं, वे भी हमारे अपने हैं.” उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में पिछले 40,000 वर्षों से बसने वाले लोगों की डीएनए को “एक” बताया.
उनका यह बयान उन आलोचनाओं के बीच आया है, जिनमें संघ और भाजपा पर भारत को हिंदू राष्ट्र या हिंदू बहुलता वाला राज्य बनाने का आरोप लगाया जाता है. भागवत ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि संघ का उद्देश्य देश को वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाना है और इसके लिए अपने मूल संस्कारों और परंपराओं की ओर लौटना जरूरी है.
पूजा करने को लेकर लड़ाई न करें
भागवत ने कहा कि संघ का संदेश दूसरों के विश्वास को स्वीकार करना है. उन्होंने कहा कि 'किसी को बदलने की कोशिश मत करो, अपने विश्वास पर भरोसा रखो, दूसरों को स्वीकार करो, अपमान मत करो. पूजा के तरीके को लेकर लड़ाई मत करो. जो ऐसा करते हैं, वे नहीं हिंदू हैं.”
वे भारत के इतिहास का हवाला देते हुए बोले कि पहले भारत समृद्ध और सुरक्षित था. वहां अस्तित्व के लिए संघर्ष और ‘सर्वश्रेष्ठ का जीवित रहना’ लागू नहीं होता था. भागवत ने कहा कि पहले धैर्य था, बहुतायत थी और लड़ाई करने का कारण नहीं था.
सभी नागरिकों से अपील
भागवत ने सभी नागरिकों से देश के लिए एकजुट होने की अपील की. उन्होंने कहा कि “एक साथ आना शुरुआत है, साथ रहना प्रगति है और साथ काम करना सफलता है. उन्होंने यह भी कहा कि देश की जिम्मेदारी केवल नेताओं या किसी पार्टी को नहीं दी जा सकती है. उन्होंने सभी से आग्रह किया कि वे अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाएं.
संघ किसी चीज का क्रेडिट लेने के लिए नहीं
उन्होंने कहा कि संघ किसी चीज का क्रेडिट लेने के लिए नहीं है, बल्कि समाज और राष्ट्र की भलाई के लिए काम करता है. उन्होंने कहा कि यह संगठन कठिन परिस्थितियों में, बिना पर्याप्त संसाधन, पैसा या साधन के बढ़ा है. संघ को तीन बार प्रतिबंधित किया गया था,1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद, 1975 में आपातकाल के दौरान और 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय.
तथ्यों पर आधारित हो चर्चा
इस व्याख्यान श्रृंखला का उद्देश्य संघ की पहुंच बढ़ाना है. उद्घाटन सत्र में कई केंद्रीय मंत्री जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया, रवीनीत सिंह बिट्टू और अनुप्रिया पटेल, विदेशों के राजनयिक, पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, शिक्षाविद, डॉक्टर और अन्य राजनीतिक नेता उपस्थित थे. भागवत ने कहा कि 2018 में भी ऐसी ही पहल की गई थी ताकि संघ के बारे में चर्चा केवल धारणाओं पर न हो, बल्कि तथ्यों पर आधारित हो. उन्होंने साफ किया कि संघ का काम लोगों को मनाना नहीं है, बल्कि तथ्य पेश करना और उन्हें स्वयं निर्णय लेने देना है.
संघ के मूल उद्देश्य
भागवत ने संघ के मूल मूल्यों को दोहराया, जिसमें देश की सेवा, सामाजिक समरसता, आत्म-विश्वास और अपनी परंपराओं के प्रति सम्मान शामिल है. उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य भारत को एक ऐसा देश बनाना है जो वैश्विक स्तर पर नेतृत्व कर सके. इसके लिए युवाओं और नागरिकों को अपनी भूमिका निभानी होगी.
भागवत ने कहा कि संघ का DNA किसी धर्म विशेष या राजनीतिक विचारधारा से नहीं, बल्कि संस्कृति, संस्कार और राष्ट्रभक्ति से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि संघ का दृष्टिकोण सभी भारतीयों के लिए समान है और किसी को बाहर या अलग नहीं किया जाता है.