वो दिन जब एक ‘डोगरा योद्धा’ ने बदल दी भारत की किस्मत, कहानी कश्मीर को हिंदुस्तान से जोड़ने वाले ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह की

27 अक्टूबर 1947- वो दिन जब ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह ने महज 100 डोगरा सैनिकों के साथ पाकिस्तानी कबायलियों को रोककर कश्मीर को भारत से जोड़ने की नींव रखी. महाराजा हरि सिंह को श्रीनगर सुरक्षित पहुंचाने और भारत के साथ विलय कराने में उनकी वीरता निर्णायक साबित हुई. उनकी शहादत ने कश्मीर की किस्मत बदल दी.;

By :  सागर द्विवेदी
Updated On : 28 Oct 2025 7:17 PM IST

27 अक्टूबर 1947-यह तारीख शायद भारत के अधिकांश लोगों के दिलों में कोई खास भावना नहीं जगाती. यह न कोई त्योहार है, न स्वतंत्रता दिवस, न कोई राष्ट्रीय अवकाश. लेकिन यह वही दिन है जिसने भारत गणराज्य के इतिहास की दिशा ही बदल दी. इसी दिन जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ Instrument of Accession पर हस्ताक्षर किए थे. एक हस्ताक्षर जिसने कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाया और उस हस्ताक्षर को संभव बनाया था एक शूरवीर डोगरा सैनिक की बलिदानगाथा ने ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह.

ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह वह नाम हैं जिन्होंने सिर्फ आदेश का पालन नहीं किया, बल्कि खुद ‘आदेश’ बन गए. जब पाकिस्तान समर्थित कबायली हमलावरों ने जम्मू-कश्मीर पर धावा बोला, उन्होंने असंभव परिस्थितियों में दुश्मन को रोका, ताकि महाराजा हरि सिंह भारत के साथ विलय का फैसला ले सकें.

5,000 पाकिस्तानी हमलावरों के सामने सिर्फ 100 भारतीय

22 अक्टूबर 1947 को करीब 5,000 पाकिस्तानी सैनिक और कबायली हमलावर मुज़फ्फराबाद में घुस आए. उन्होंने शहर को लूट लिया, जला दिया और निर्दोषों की हत्या की. 4th J&K बटालियन के कुछ मुस्लिम सैनिकों ने अपने डोगरा भाइयों से गद्दारी की और दुश्मन का साथ दे दिया. इससे श्रीनगर तक 180 किलोमीटर लंबा रास्ता पूरी तरह खुल गया था. कश्मीर असुरक्षित हो चुका था. इसी बीच, महाराजा हरि सिंह ने अपने सेनाध्यक्ष ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह को आदेश दिया -'राज्य की रक्षा करो, आखिरी आदमी और आखिरी गोली तक.'

सिर्फ सौ सैनिकों और सहायकों की एक छोटी टुकड़ी लेकर राजिंदर सिंह श्रीनगर के बदामी बाग कैंटोनमेंट से उरी की ओर बढ़े. उनके पास सीमित हथियार थे. कुछ मीडियम मशीन गन, 3 इंच के मोर्टार, और गिनी-चुनी गोलियां. लेकिन वे जानते थे, उन्हें जीतना नहीं, समय खरीदना है.

उरी से महूरा तक चार दिन की वो जंग जिसने इतिहास रचा

23 अक्टूबर की सुबह, गढ़ी के पास पहली भिड़ंत हुई. दुश्मन की संख्या बहुत ज्यादा थी, जिससे उन्हें हत्तियां की ओर पीछे हटना पड़ा. रात तक भारतीय टुकड़ी उरी पहुंच गई और वहां उन्होंने मोर्चा संभाला. 24 अक्टूबर को जब दुश्मन ने हमला किया, तो ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह ने उरी ब्रिज उड़ाकर उनकी राह रोक दी. मशीन गन और मोर्टार से जबर्दस्त जवाबी फायरिंग हुई, जिसमें कई पाकिस्तानी मारे गए. लेकिन दुश्मन ने दूसरी दिशा से घेरने की कोशिश शुरू कर दी.

राजिंदर सिंह ने रात में पीछे हटने का आदेश दिया और महूरा में अंतिम रक्षा मोर्चा बनाया. 25 अक्टूबर की सुबह दुश्मन ने फिर हमला किया. दोपहर तक वे पहाड़ियों से घेर चुके थे. शाम तक हालात इतने खराब हो गए कि ब्रिगेडियर सिंह ने रैंपुर-बनियार की ओर पीछे हटने का निर्णय लिया- जहां उनकी आखिरी लड़ाई लड़ी गई.

'ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह'- वो आखिरी आदेश

26 अक्टूबर को दुश्मन ने फिर हमला बोला. भारतीय सैनिकों ने डटकर मुकाबला किया, लेकिन रात में जब वे पीछे हट रहे थे, तो रास्ते में दुश्मन ने घात लगाकर हमला कर दिया. ब्रिगेडियर सिंह की गाड़ी पर फायरिंग हुई, चालक मारा गया और ब्रिगेडियर के पैर में गोली लगी. उन्होंने अपने सैनिकों से कहा कि “मेरे लिए मत रुको, आगे बढ़ो.” वह उनका आखिरी आदेश था. उस रात वे लापता हो गए. उनका शव कभी नहीं मिला, पर उनकी शौर्यगाथा इतिहास में अमर हो गई.

वह बलिदान जिसने कश्मीर को भारत से जोड़ा

ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह के साहस ने असंभव को संभव कर दिखाया. उनके द्वारा दी गई चार दिन की देरी ने महाराजा हरि सिंह को 26 अक्टूबर को भारत के साथ विलय का दस्तावेज़ साइन करने का समय दे दिया. अगले दिन, 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना श्रीनगर में उतरी और पाकिस्तान समर्थित हमलावरों को पीछे धकेल दिया. यही भारत की पहली सैन्य जीत थी पाकिस्तान के खिलाफ. राजिंदर सिंह को मरणोपरांत “महा वीर चक्र” से सम्मानित किया गया. स्वतंत्र भारत के पहले महा वीर चक्र प्राप्तकर्ता के रूप में.

'कश्मीर के उद्धारक'- एक नाम जो हमेशा जिंदा रहेगा

ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह को आज भी जम्मू-कश्मीर में 'The Saviour of Kashmir' कहा जाता है. उनकी चार दिन की रणनीति और वीरता ने साबित किया कि युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि नेतृत्व, बलिदान और अडिग संकल्प से जीते जाते हैं. उन्होंने सिर्फ सीमा की रक्षा नहीं की . उन्होंने एक वादा निभाया. वह वादा कि तिरंगा हमेशा उस धरती पर लहराएगा, जिसके लिए उन्होंने अपना प्राण न्योछावर किया.

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