सुप्रीम कोर्ट को वक्फ संशोधन अधिनियम की किन 10 बातों पर है आपत्ति? CJI ने पूछे तीखे सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कई प्रावधानों पर आपत्ति जताई. मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय पीठ ने वक्फ बाय यूजर और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति जैसे प्रावधानों पर चिंता व्यक्त की है.;
Supreme Court Waqf objections: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कई महत्वपूर्ण आपत्तियां और टिप्पणियां की हैं. मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता में गठित पीठ ने विशेष रूप से वक्फ बाय यूजर (Waqf By User) और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति जैसे प्रावधानों पर चिंता व्यक्त की है.
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने दो घंटे से अधिक समय तक मामले की सुनवाई की. इस दौरा उन्होंने वक्फ अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर चिंता जताई.
सुप्रीम कोर्ट की 10 प्रमुख आपत्तियां
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'वक्फ बाय यूजर' को समाप्त करने से ऐतिहासिक मस्जिदों और धार्मिक स्थलों की वैधता पर प्रश्न उठ सकते हैं, जिनके पास प्राचीन दस्तावेज नहीं है.
- कोर्ट ने पूछा कि क्या कलेक्टर, जो कार्यपालिका का हिस्सा हैं, को न्यायिक भूमिका देना संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन नहीं होगा. सीजेआई खन्ना ने कहा कि अनुच्छेद 26 विधायिका को कानून बनाने से नहीं रोकता है. यह अनुच्छेद सार्वभौमिक है, धर्मनिरपेक्ष है और सभी समुदायों पर लागू होता है. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और हिंदू संरक्षकता अधिनियम आदि अधिनियमित किए गए हैं.
- केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर न्यायालय ने पूछा कि क्या सरकार हिंदू धार्मिक बोर्डों में मुस्लिम सदस्यों को नियुक्त करेगी. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि एक्ट के मुताबिक, वक्फ बोर्ड में 8 मुस्लिम सदस्य हैं. दो सदस्य गैर- मुस्लिम हो सकते हैं. फिर बाकी भी क्या गैर-मुस्लिम हो सकते हैं. सीजेआई ने कहा- हिंदू बंदोबस्ती के सलाहकार बोर्ड में मुस्लिम सदस्य क्यों नहीं हैं? क्या आप मुस्लिमों को बोर्ड का हिस्सा बनने की इजाजत देंगे?
- मुख्य न्यायाधीश ने उल्लेख किया कि उन्हें बताया गया है कि दिल्ली उच्च न्यायालय वक्फ भूमि पर स्थित है, जिससे 'वक्फ बाय यूजर' की वैधता पर चिंता बढ़ी है.
- न्यायालय ने वक्फ अधिनियम के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों में हिंसा को 'बहुत परेशान करने वाला' बताया और कहा कि जब मामला न्यायालय में लंबित है, तब ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए.
- न्यायालय ने पूछा कि जो वक्फ संपत्तियां वर्षों से अस्तित्व में हैं, उन्हें नए दस्तावेज़ों के बिना कैसे पुनः पंजीकृत किया जाएगा.
- न्यायालय ने कहा कि विधायिका किसी न्यायालय के निर्णय को अप्रभावी नहीं कर सकती, और 'वक्फ बाय यूजर' को समाप्त करना न्यायिक निर्णयों की अवहेलना होगा.
- मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 'वक्फ बाय यूजर' को पहले भी न्यायिक निर्णयों में मान्यता दी गई है. इसे समाप्त करना समस्याग्रस्त होगा.
- न्यायालय ने चिंता जताई कि कई ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियों के पास प्राचीन दस्तावेज़ नहीं हैं. ऐसे में नए कानून के तहत उन्हें वक्फ के रूप में मान्यता नहीं मिल पाएगी.
- न्यायालय ने कहा कि वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता को बनाए रखना आवश्यक है. सरकार को इसमें अत्यधिक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने किन बातों पर जताई चिंता?
- सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि क्या सभी वक्फ बाय यूजर संपत्तियां वक्फ के रूप में अस्तित्व में ही नहीं रह गई हैं.
- शीर्ष अदालत ने इस पर बात भी चिंता जताई कि कई सालों से मौजूद वक्फ बायू यूजर संपत्तियों को कैसे पंजीकरण करने के लिए कहा जाता है. सीजेआई ने दिल्ली के जामा मस्जिद का हवाला दिया.
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि क्या यह कहना उचित है कि जब तक सरकार का अधिकृत अधिकारी इस विवाद की जांच पूरी नहीं कर लेता कि यह सरकारी संपत्ति है कि नहीं, तब तक संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा.
- शीर्ष अदालत ने इस पर भी चिंता जताई कि धारा 2 ए का प्रावधान कोर्ट के उन फैसलों को कैसे रद्द कर सकता है, जो संपत्तियों को वक्फ घोषित करते हैं.
- सर्वोच्च अदालत ने इस बात भी चिंता जताई कि क्या नए संशोधनों के बाद केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों के अधिकांश सदस्य मुस्लिम होंगे.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इन मुद्दों पर केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल को निर्धारित की है. याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी सी यू सिंह और राजीव धवन समेत कई वकील पेश हुए. वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की.