सुप्रीम कोर्ट ने कॉमेडियंस को दिव्यांगों पर जोक्स के लिए फटकारा, सोशल मीडिया पर माफी मांगने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ कॉमेडियनों को दिव्यांगों (PwDs) पर असंवेदनशील जोक्स बनाने के लिए फटकार लगाई और कहा कि उन्हें केवल कोर्ट में ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर भी माफी मांगनी होगी. SMA Cure Foundation की याचिका के बाद यह कार्रवाई हुई. न्यायमूर्ति सूर्या कांत और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि हास्य या मनोरंजन के नाम पर किसी वर्ग की भावनाओं का अपमान स्वीकार्य नहीं है.;
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कुछ कॉमेडियनों को दिव्यांग व्यक्तियों (Persons with Disabilities - PwDs) पर 'असंवेदनशील जोक्स' बनाने के लिए कड़ी फटकार लगाई और कहा कि उन्हें केवल कोर्ट में माफी मांगना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर भी माफी मांगनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश SMA Cure Foundation द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान दिया. याचिका में आरोप लगाया गया कि कॉमेडियनों - समय रैना, विपुन गोयल, बलराज परमजीत सिंह घाई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर - ने अपने स्टैंड-अप शो में दिव्यांग लोगों का मजाक उड़ाया.
न्यायमूर्ति सूर्या कांत और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कॉमेडियनों से कहा, “जिस माफी आपने कोर्ट में दी है, वही माफी अपने सोशल मीडिया पर भी दो.”
हंसाने के नाम पर कुछ भी नहीं चलेगा
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश देते हुए स्पष्ट किया कि हास्य या मनोरंजन के नाम पर किसी वर्ग की भावनाओं का अपमान नहीं किया जा सकता. अदालत ने यह भी जोर दिया कि यह आदेश सभी प्लेटफॉर्म्स पर लागू होता है और सोशल मीडिया पर उपयुक्त माफी देना अनिवार्य है.
याचिका की सुनवाई अन्य मामलों के साथ हुई, जिनमें रणवीर अल्लाहबादिया और आशीष चंचलानी शामिल थे. ये कॉमेडियन समय रैना के "India’s Got Latent" विवाद से जुड़े अलग-अलग एफआईआर को एक साथ जोड़ने की मांग कर रहे थे.
कॉमेडी के मंच पर संवेदनशीलता जरूरी
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यह संदेश देता है कि कॉमेडी और मनोरंजन के मंच पर भी सामाजिक जिम्मेदारी और संवेदनशीलता जरूरी है. अदालत ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि किसी भी वर्ग के अधिकार और सम्मान की अनदेखी न हो. इस मामले में अब कॉमेडियनों को कोर्ट में और सोशल मीडिया पर माफी मांगने के बाद ही आगे की कार्रवाई तय की जाएगी.
मंत्रालय को गाइडलाइन बनाने के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इस्तेमाल होने वाली भाषा के लिए व्यापक दिशा-निर्देश तैयार करने का निर्देश दिया है. इन नियमों का उद्देश्य सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से दिव्यांगों, की गरिमा की रक्षा करना है. अदालत ने कहा कि ये दिशा-निर्देश केवल एक घटना पर प्रतिक्रिया नहीं होने चाहिए, बल्कि व्यापक और तकनीकी प्रगति से उत्पन्न चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए तैयार किए जाएं. मंत्रालय को निर्देश दिया गया है कि नियम बनाते समय नेशनल बोर्ड फॉर वेलफेयर ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज़ (NBDSA) और अन्य हितधारकों से परामर्श किया जाए.
समय रैना पर दिव्यांग व्यक्तियों का मजाक उड़ाने का आरोप
कॉमेडियन समय रैना पर दिव्यांग व्यक्तियों का मजाक उड़ाने का आरोप है. उनके दो वीडियो में स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) पीड़ित मरीजों के इलाज का मजाक बनाने और अंधे तथा क्रॉस-आई व्यक्तियों के बारे में असंवेदनशील टिप्पणियां करने का दावा किया गया. इस मामले में Cure SMA Foundation ने याचिका दायर कर विशेष सुरक्षा प्रावधान लागू करने की मांग की. फाउंडेशन का कहना है कि ये वीडियो केवल 'बूंद भर' हैं और यह एक बड़े पैमाने पर चल रही प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, जिसमें दिव्यांगों को उपहास, दया या सार्वजनिक मनोरंजन का विषय बनाया जाता है. इनमें से एक वीडियो में दो महीने के SMA मरीज के 16 करोड़ रुपये की जीवनरक्षक इंजेक्शन पर टिप्पणियां भी शामिल थीं.
सुप्रीम कोर्ट ने रणवीर अल्लाहबादिया और अन्य कॉन्टेंट क्रिएटर्स को उनके पोडकास्ट और यूट्यूब चैनल पर माफी पोस्ट करने का आदेश दिया. साथ ही, उन्हें हलफनामा देने को कहा गया कि वे अपने सोशल मीडिया प्रभाव का उपयोग कैसे दिव्यांग अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में करेंगे. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रभावितों के खिलाफ सटीक दंड बाद में तय किया जाएगा और हर सुनवाई के लिए उन्हें व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी.
कोई भी कुछ भी कह सकता है. समाज कहां तक जाएगा?
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सोशल मीडिया क्रिएटर्स अक्सर अपनी स्वतंत्रता का लाभ उठाकर फॉलोअर्स और व्यस्तता को नैतिक विचारों पर प्राथमिकता देते हैं. न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची ने कहा कि ऐसे कंटेंट को 'कॉमर्शियल स्पीच' माना जा सकता है, जिसे फ्री स्पीच की तरह संवैधानिक संरक्षण प्राप्त नहीं है. न्यायमूर्ति सूर्या कांत ने चेतावनी दी कि यदि विशेष परिणाम नहीं तय किए गए, तो कंटेंट क्रिएटर्स आपत्तिजनक भाषा का उपयोग जारी रखेंगे. उन्होंने कहा, “सजा को हुए नुकसान के अनुपात में होना चाहिए.” बेंच ने कहा कि अनियंत्रित आपत्तिजनक सामग्री के व्यापक निहितार्थ हैं. न्यायमूर्ति सूर्या कांत ने कहा, “आज यह दिव्यांगों के अपमान का मामला है, कल यह महिलाएं, वरिष्ठ नागरिक या अन्य कमजोर वर्ग हो सकते हैं. कोई भी कुछ भी कह सकता है. समाज कहां तक जाएगा?”
NBDSA के वकील ने बताया कि बोर्ड ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के खिलाफ 4,000 से अधिक शिकायतों को सफलतापूर्वक संभाला है, लेकिन ऑनलाइन प्रभावशाली और पोडकास्टर्स लगभग बिना नियंत्रण के हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि NBDSA जैसे विशेषज्ञ निकाय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नियमों के पालन और प्रवर्तन में मंत्रालय की मदद कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यूट्यूब सहित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स भी जिम्मेदार ठहराए जा सकते हैं यदि उनके प्लेटफॉर्म पर दिव्यांगों के सम्मान का उल्लंघन करने वाला कंटेंट हो. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को निर्देशित किया गया है कि वह दिशा-निर्देशों के साथ-साथ दंड प्रणाली भी तैयार करे ताकि जवाबदेही सुनिश्चित हो सके.