सुप्रीम कोर्ट में 'घड़ी' विवाद: शरद पवार ने लगाया भ्रम फैलाने का आरोप, क्या कहता है चिह्नों का इतिहास

शरद पवार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में आरोप लगाया कि अजित पवार गुट ने 'घड़ी' प्रतीक का इस्तेमाल कर मतदाताओं के बीच भ्रम फैलाया. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो जब भी किसी पार्टी में विभाजन हुआ, तो मूल प्रतीक उस गुट को चुनावी लाभ दिलाता है, जो जनता से जुड़ा होता है.;

By :  अमन बिरेंद्र जायसवाल
Updated On : 26 Nov 2024 5:37 PM IST

हाल ही में शरद पवार ने सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दायर किया है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि अजित पवार गुट ने 'घड़ी' चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करके मतदाताओं के बीच भ्रम पैदा किया. शरद पवार ने कोर्ट को बताया कि अजित पवार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए उनकी छवि और प्रतीक से जुड़े भावनात्मक जुड़ाव का लाभ उठाने की कोशिश की. उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि अदालत 'घड़ी' प्रतीक के उपयोग पर रोक लगाए, जब तक कि मामला पूरी तरह से सुलझ नहीं जाता.

भारत में राजनीतिक दलों का विभाजन और चुनावी प्रतीकों का विवाद कोई नई बात नहीं है. जब भी किसी दल में फूट पड़ती है, पार्टी के प्रतीक का मुद्दा सबसे बड़ा राजनीतिक दांव बन जाता है. प्रतीक, केवल एक चिह्न नहीं, बल्कि जनता के साथ नेता के भावनात्मक और ऐतिहासिक जुड़ाव का प्रतीक होता है. इतिहास बताता है कि मूल प्रतीक अक्सर उस नेता को बढ़त देता है, जो जनता के दिलों में बसा हो.

ऐतिहासिक घटनाएं जहां प्रतीक बने विवाद का केंद्र

कांग्रेस विभाजन (1969):

इंदिरा गांधी और कांग्रेस संगठन के बीच संघर्ष में, इंदिरा के गुट ने “गाय और बछड़ा” प्रतीक चुना. बाद में, जब यह प्रतीक छिन गया, तो उन्होंने “हाथ” अपनाया, जो आज भी कांग्रेस का प्रमुख प्रतीक है. इंदिरा का व्यक्तित्व और उनकी योजनाओं ने इस प्रतीक को बेहद प्रभावी बनाया.

समाजवादी पार्टी (2017):

अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के बीच संघर्ष में, चुनाव आयोग ने 'साइकिल' अखिलेश गुट को दी. साइकिल जनता के बीच जानी-मानी थी, जिससे अखिलेश को एक युवा और प्रगतिशील नेता की छवि स्थापित करने में मदद मिली.

शिवसेना विभाजन (2022):

उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच 'धनुष-बाण' प्रतीक को लेकर विवाद हुआ. हालांकि शिंदे को चुनाव आयोग से प्रतीक मिला, लेकिन ठाकरे के पास शिवसेना की मूल पहचान थी, जो उनके समर्थकों के लिए अहम साबित हुई.

शरद पवार बनाम अजित पवार

भारत के चुनाव आयोग का नियम है कि जब भी किसी पार्टी में फूट पड़ती है, तो प्रतीक उसे दिया जाता है, जो बहुमत और मूल पार्टी सिद्धांतों के करीब होता है. महाराष्ट्र चुनाव 2024 में अजित पवार गुट को 'घड़ी' चुनाव चिह्न का अधिकार दिया गया था. शरद पवार ने कोर्ट में आरोप लगाया कि अजित पवार ने मतदाताओं में भ्रम पैदा करने के लिए इस प्रतीक का लाभ उठाया. सुप्रीम कोर्ट में अभी यह मामला विचाराधीन है, और प्रतीक को लेकर बहस जारी है.

प्रतीक क्यों महत्वपूर्ण होते हैं?

प्रतीक मतदाताओं के लिए पहचान का माध्यम होते हैं. जनता अक्सर प्रतीक को नेता के व्यक्तित्व और उसकी नीतियों से जोड़ती है. जब किसी गुट को मूल प्रतीक नहीं मिलता, तो वह जनता को अपनी नई पहचान समझाने में संघर्ष करता है. दूसरी ओर, प्रतीक का मालिकाना हक रखने वाले गुट को जनता के साथ स्वाभाविक बढ़त मिलती है.

चुनाव आयोग का भूमिका

भारत के चुनाव आयोग ने बार-बार यह सुनिश्चित किया है कि प्रतीकों को लेकर न्यायपूर्ण फैसला हो. जब भी पार्टी में फूट पड़ती है, आयोग उस गुट को प्रतीक देता है, जो बहुमत और मूल सिद्धांतों का पालन करता हो.

राजनीतिक प्रतीक न केवल चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा हैं, बल्कि जनता के विश्वास और पार्टी की पहचान का केंद्र भी हैं. जब तक नेता और प्रतीक का भावनात्मक जुड़ाव मजबूत रहता है, जनता का समर्थन मिलना तय है. 

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