100+ सांसदों का समर्थन, फिर भी महाभियोग प्रस्ताव नामंज़ूर! आखिर क्यों बच गए जस्टिस वर्मा? अब बवाल होना तय

राज्यसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्ष द्वारा लाया गया महाभियोग प्रस्ताव 100 से अधिक सांसदों के समर्थन के बावजूद स्वीकार नहीं किया गया. सूत्रों के अनुसार, सभापति ने इसे नियमों के तहत नामंज़ूर कर दिया. विपक्ष इसे न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही का सवाल बता रहा है. अब विपक्ष इस फैसले को लेकर और आक्रामक रुख अपनाने की तैयारी में है.;

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By :  सागर द्विवेदी
Updated On : 25 July 2025 5:29 PM IST

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्ष द्वारा पेश किया गया महाभियोग प्रस्ताव राज्यसभा में स्वीकार नहीं किया गया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त जांच समिति की रिपोर्ट के बाद, जिसमें उनके सरकारी आवास से जले हुए नोटों की भारी मात्रा में बरामदगी का उल्लेख था, विपक्ष ने यह प्रस्ताव पेश किया था. लेकिन अब सूत्रों के मुताबिक यह प्रस्ताव औपचारिक रूप से स्वीकार ही नहीं किया गया, जिससे इसकी वापसी का सवाल ही नहीं उठता.

जांच के बावजूद राज्यसभा में प्रस्ताव नहीं हुआ स्वीकार

सूत्रों ने बताया कि पूर्व उपराष्ट्रपति और तत्कालीन राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनखड़ द्वारा एक प्रारंभिक प्रस्ताव को स्वीकृति दी गई थी, लेकिन उनके अचानक इस्तीफे के पीछे इसे एक प्रमुख कारण माना जा रहा है. अब यह प्रस्ताव रद्द कर दिया जाएगा. अब अगला निर्णय लोकसभा अध्यक्ष द्वारा लिया जाएगा, जो राज्यसभा की सहमति से एक समिति के गठन पर विचार करेंगे. सूत्रों के अनुसार, 'ऑपरेशन सिंदूर' पर चर्चा के बाद ही महाभियोग से संबंधित कार्रवाई आगे बढ़ेगी.

किरण रिजिजू बोले- ये सिर्फ सरकार नहीं, सभी दलों की पहल

संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से पहले केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार एक गंभीर मुद्दा है और सभी दलों के सांसद इसके खिलाफ एकजुट हैं. उन्होंने कहा कि 'मैंने सभी प्रमुख दलों के नेताओं से बात की है और छोटे दलों से भी संपर्क करूंगा, ताकि यह संसद का एक सामूहिक निर्णय बन सके.

100 से ज्यादा सांसदों ने किया समर्थन

सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अब तक सत्ताधारी एनडीए और उसके सहयोगी दलों के 100 से अधिक सांसद इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। विपक्षी सांसदों के हस्ताक्षर भी जल्द आने की संभावना है. अगर प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया, तो एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन होगा जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट के जज, एक हाई कोर्ट के जज और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होंगे. यही समिति जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करेगी और संसद के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी.

क्या है मामला?

मार्च में जब जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत थे, तब उनके सरकारी आवास से भारी मात्रा में जले हुए नकद नोट बरामद हुए. इस पर उन्होंने अनभिज्ञता जताई थी. इसके बाद उन्हें उनके मूल उच्च न्यायालय, इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया. इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधवाला और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन की तीन सदस्यीय समिति का गठन किया.

दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की प्रारंभिक रिपोर्ट, जस्टिस वर्मा का जवाब और पुलिस द्वारा लिए गए फोटो-वीडियो पहले ही सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए जा चुके हैं, लेकिन अंतिम जांच रिपोर्ट को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस प्रकरण को लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था, जिसमें जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की गई थी. सूत्रों के अनुसार, CJI ने जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने को भी कहा था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया.

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