मुस्लिम महिला के 'खुला' मांगने पर पति नहीं कर सकता इनकार, पत्‍नी को कुछ साबित करने की जरूरत नहीं

तेलंगाना हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिम पत्नी द्वारा मांगे गए 'खुला' तलाक को पति अस्वीकार नहीं कर सकता. कोर्ट ने कहा कि खुला एक ‘नो-फॉल्ट’ तलाक है जिसमें पत्नी को तलाक के लिए कारण बताने या मुकदमे का सामना करने की जरूरत नहीं. अदालत की भूमिका केवल विवाह विच्छेद को मान्यता देने तक सीमित है.;

Edited By :  प्रवीण सिंह
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मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर एक ऐतिहासिक निर्णय में तेलंगाना हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि किसी मुस्लिम महिला द्वारा ‘खुला’ (Khula) की मांग किए जाने पर पति को उसे अस्वीकार करने का कोई अधिकार नहीं है. कोर्ट ने कहा कि खुला एक ऐसा तलाक है जो पत्नी की ओर से होता है, और इसमें कोर्ट की भूमिका केवल विवाह विच्छेद को मान्यता देने की होती है न कि इसे वैध या अवैध ठहराने की.

क्या है 'खुला' तलाक?

‘खुला’ इस्लामी कानून में एक वैवाहिक अनुबंध को समाप्त करने की वैकल्पिक प्रक्रिया है, जिसमें पत्नी अपने पति से तलाक की मांग करती है और सामान्यतः मेहर लौटाकर मामला सुलझाती है. यह प्रक्रिया प्रायः एक मुफ्ती या काज़ी की सलाह से निजी तौर पर निपटाई जाती है.

क्‍या है पूरा मामला

  • पति-पत्नी की शादी 2012 में हुई थी
  • 2017 में घरेलू हिंसा के बाद पत्नी को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा
  • पत्नी ने 'खुला' की मांग की, लेकिन पति सुलह बैठकों में शामिल नहीं हुआ
  • अक्टूबर 2020 में एक मुफ्ती, अरबी प्रोफेसर और मस्जिद के इमाम की निगरानी में 'खुला नामा' जारी हुआ
  • पति ने इस 'खुला' को अदालत में चुनौती दी कि मुफ्ती को ये अधिकार नहीं था
  • परिवार न्यायालय ने फरवरी 2024 में याचिका खारिज कर दी, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई

हाईकोर्ट का दो टूक फैसला

न्यायमूर्ति मौसुमी भट्टाचार्य और बी आर मधुसूदन राव की पीठ ने क़ुरान, हदीस और पहले के फैसलों का हवाला देते हुए कहा, "खुला एक 'नो-फॉल्ट तलाक' है जो पत्नी की ओर से होता है. पति सिर्फ मेहर लौटाने की शर्तों पर बातचीत कर सकता है, लेकिन खुला को अस्वीकार नहीं कर सकता. कोर्ट या काज़ी की भूमिका सिर्फ विवाह की स्थिति को औपचारिक रूप से मान्यता देना होती है. मुफ्ती का फतवा कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होता, इसलिए उस पर बहस की ज़रूरत नहीं. खुला के लिए पत्नी को कोई वजह साबित करने की जरूरत नहीं, न ही ट्रायल की आवश्यकता है."

महिला पक्ष के वकील ने क्या कहा?

एडवोकेट मुबाशिर हुसैन अंसारी, जो पीड़िता का पक्ष रख रहे थे, ने कहा, “इस फैसले की सबसे अहम बात यह है कि अब खुला तलाक के मामलों में कोर्ट को पूरा मुकदमा चलाने की जरूरत नहीं होगी. इससे हजारों लंबित मामलों को जल्दी निपटाया जा सकेगा.”

क्यों है यह फैसला ऐतिहासिक?

  • यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के तलाक के अधिकार को स्पष्ट और मजबूत करता है
  • यह महिला को न्यायिक प्रणाली के लंबे ट्रायल से राहत दिलाता है
  • यह निर्णय भविष्य में अदालतों द्वारा खुला के मामलों को तेजी से निपटाने का रास्ता खोलता है

तेलंगाना हाईकोर्ट का यह निर्णय न सिर्फ मुस्लिम पर्सनल लॉ की आधुनिक व्याख्या करता है, बल्कि महिला अधिकारों के लिए संविधान और शरीयत के बीच संतुलन स्थापित करने की एक बड़ी कोशिश भी है. यह फैसला आने वाले समय में देशभर के खुला मामलों में नज़ीर के तौर पर देखा जाएगा.

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