AMU का अल्पसंख्यक दर्जा नए सिरे से होगा तय, SC ने रद्द कर दिया 57 साल पुराना फैसला
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जा की बहाली की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के फैसले को खारिज कर दिया है. उन्होंने अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर नई बेंज का गठन किया है. अब तीन जंजो की बेंच उसके मानदंड तय करेगी.;
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जा की बहाली की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के फैसले को खारिज कर दिया है. उन्होंने अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर नई बेंज का गठन किया है. अब तीन जंजो की बेंच उसके मानदंड तय करेगी.
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि धार्मिक समुदाय संस्थान बना सकते हैं लेकिन चला नहीं सकते. अनुच्छेद 30 में मिले अधिकार संपूर्ण नहीं है. धार्मिक समुदाय को संस्थान चलाने का असीमित अधिकार नहीं है. अनुच्छेद 30 (1) को कमजोर नहीं कर सकते. अल्पसंख्यक संस्थाओं को भी रेगुलेट कर सकते हैं.
किन जजों ने क्या कहा?
कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से फैसला सुनाया है. इस मामले पर CJI समेत चार जजों ने एकमत फैसला सुनाया दिया है जबकि तीन जजों ने डिसेंट नोट दिया है. इस मामले पर CJI और जस्टिस पारदीवाला एकमत हैं. वहीं जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का फैसला अलग है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आगे चलकर यह तय होगा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप मे दर्जा दिया जाए या नहीं.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का इतिहास
AMU की स्थापना का इतिहास भी बताता है कि इसका मूल उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को आधुनिक और उच्च शिक्षा प्रदान करना था. 1875 में सर सैयद अहमद खान की अगुवाई में मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में इसकी नींव रखी गई थी, जो बाद में 1920 में एक विश्वविद्यालय के रूप में परिवर्तित हुआ. इस परिवर्तन ने इसे एक प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थान का दर्जा दिलाया, जो शिक्षा के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए जाना जाता है.
सुप्रीम कोर्ट का यह विचार कि 1981 का संशोधन पूरी तरह से प्रभावी नहीं था, यह संकेत देता है कि अदालत इस मसले पर व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत को महसूस करती है। यह निर्णय संस्थान के भविष्य और देश में अल्पसंख्यक अधिकारों के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.