क्या 'वन नेशन, वन इलेक्शन' बनेगा हकीकत? जानिए 5 बड़े विपक्षी दलों का रुख
वन नेशन वन इलेक्शन पर देश में चर्चा चल रही है. अभी कई राज्यों के चुनाव होने वाले हैं. फिलहाल हरियाणा, जम्मू-कश्मीर में चुनाव और साल के अंत तक महाराष्ट्र, झारखंड राज्यों में चुनाव होने वाले हैं. अभी वन नेशन वन इलेक्शन लागू नहीं होगा पर इसको लागू करने की प्रक्रिया की शुरूआत हो गई है. कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने इसका विरोध किया हैं.;
वन नेशन, वन इलेक्शन (एक राष्ट्र, एक चुनाव) के प्रस्ताव पर देशभर में गहन चर्चा चल रही है. यह मुद्दा केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया है और कांग्रेस समेत कई प्रमुख विपक्षी दलों ने इसका कड़ा विरोध किया है. इस प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंडल से हरी झंडी मिल गई है, और इस पर चर्चा के लिए एक समिति का गठन किया गया है. यह समिति पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में काम कर रही है. सरकार ने कुल 62 राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर संपर्क किया, जिनमें से 47 दलों ने प्रतिक्रिया दी. इन दलों में से 32 दलों ने एक राष्ट्र, एक चुनाव के विचार का समर्थन किया, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया.
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट बैठक के बाद मीडिया को जानकारी देते हुए कहा कि यह प्रस्ताव, कोविंद समिति की रिपोर्ट का हिस्सा है और इसे स्वीकार कर लिया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से इस विचार के समर्थक रहे हैं. उनका कहना है कि यह कोई बहस का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह भारत की आवश्यकता है. मोदी का तर्क है कि इससे चुनावों पर खर्च कम होगा, सरकारें अधिक समय तक काम कर सकेंगी और बार-बार आचार संहिता लागू करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, जिससे विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी. इस मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं और उनके रुख को जानना महत्वपूर्ण है.
आइए जानते हैं पांच प्रमुख पार्टियों की प्रतिक्रियाएं:
- कांग्रेस पार्टी ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे "जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश" बताया. उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि "एक राष्ट्र, एक चुनाव" सिर्फ भाजपा की एक चाल है जो लोगों का ध्यान वास्तविक मुद्दों से भटकाने के लिए लाई जा रही है. खड़गे ने कहा, "यह संविधान और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है. यह संघवाद के खिलाफ है, और देश इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा."
- राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता मनोज झा ने भी इसका विरोध करते हुए सवाल उठाया कि किन 80% लोगों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है. उन्होंने कहा, "हम एक राष्ट्र, एक चुनाव के विचार का विरोध करते हैं. अश्विनी वैष्णव का कहना है कि परामर्श के दौरान 80 प्रतिशत लोगों ने इसका समर्थन किया, लेकिन हम जानना चाहते हैं कि ये 80 प्रतिशत लोग कौन हैं. क्या किसी ने हमसे पूछा या हमारी राय ली?"
- शिवसेना (ठाकरे गुट) के नेता आदित्य ठाकरे ने इस प्रस्ताव को मजाक करार दिया. उन्होंने कहा, "यह एक मजाक है. चुनाव आयोग जो चार राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं करा सकता, वह पूरे देश में एक साथ चुनाव की बात कर रहा है."
- समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है. पार्टी का मानना है कि यदि एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो क्षेत्रीय और राज्य स्तरीय पार्टियां राष्ट्रीय पार्टियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगी. इससे चुनावी रणनीति और खर्च के मामले में क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा और मतभेद बढ़ेंगे.
- आम आदमी पार्टी (AAP) ने कहा कि "एक राष्ट्र, एक चुनाव" संसदीय लोकतंत्र की मूल अवधारणा, संविधान के ढांचे और देश की संघीय राजनीति को कमजोर करेगा. आप ने तर्क दिया कि यह प्रणाली त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति से निपटने में असमर्थ होगी और दलबदल विरोधी कानून को कमजोर करेगी, जिससे विधायकों और सांसदों की खरीद-फरोख्त की संभावना बढ़ेगी.
- इसके विपरीत, एनडीए और कुछ सुप्रीम कोर्ट के जजों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है. एनडीए का मानना है कि एक साथ चुनाव से प्रशासनिक स्थिरता बढ़ेगी और बार-बार चुनावों की वजह से आने वाली आर्थिक और प्रशासनिक समस्याएं खत्म होंगी.
इस योजना को लागू करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, क्योंकि इसमें संविधान में संशोधन की आवश्यकता है. इसे लागू करने के लिए कम से कम छह संवैधानिक संशोधन होंगे, जिनमें लोकसभा, विधानसभा, नगर पालिका और पंचायत चुनावों को एक साथ कराने के लिए प्रावधान किए जाएंगे. इसके अलावा, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के कार्यकाल को भी संशोधित किया जाएगा.
एनडीए के पास बहुमत
हालांकि, एनडीए के पास संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत है, लेकिन दो-तिहाई बहुमत हासिल करना सरकार के लिए एक चुनौती साबित हो सकता है. राज्यसभा में एनडीए के पास 245 सीटों में से 112 हैं, जबकि विपक्षी दलों के पास 85 सीटें हैं. दो-तिहाई बहुमत के लिए सरकार को कम से कम 164 वोटों की आवश्यकता होगी.
इसके पहले भी एक साथ चुनाव कराने की कोशिशें की गईं, लेकिन विपक्ष के विरोध के चलते यह सफल नहीं हो पाई. विपक्ष का तर्क है कि यह प्रस्ताव लोकतंत्र विरोधी, संविधान के खिलाफ और अव्यावहारिक है.