आखिर क्यों कोर्ट ने सुनाई खरी-खरी, फैक्ट चेक यूनिट की A टू Z स्टोरी
मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में हस्तक्षेप किया था और केंद्र सरकार द्वारा फैक्ट चेक यूनिट बनाने की घोषणा करने वाली अधिसूचना पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक बॉम्बे हाई कोर्ट इस मामले की संवैधानिकता पर निर्णय नहीं ले लेता, तब तक केंद्र सरकार इस फैक्ट चेक यूनिट को लेकर आगे कोई कार्रवाई नहीं कर सकती.;
8 अगस्त को बॉम्बे हाईकोर्ट के एक (टाईब्रेकर) जज ने आईटी नियमों में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें सोशल मीडिया पर फर्जी, झूठी और भ्रामक सूचनाओं की पहचान करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट (एफसीयू) की स्थापना की गई थी. अब, शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा आईटी नियमों में किए गए संशोधनों को असंवैधानिक करार देते हुए इन्हें खारिज कर दिया है.
केंद्र सरकार ने 2023 में आईटी नियमों में संशोधन किया था, जिसके तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित होने वाली 'फर्जी और भ्रामक' सूचनाओं की पहचान करने के लिए एक फैक्ट चेक यूनिट बनाने का प्रावधान किया गया था. इस फैक्ट चेक यूनिट को केंद्र सरकार से संबंधित झूठी और भ्रामक सूचनाओं की पहचान करने और उसे खारिज करने का अधिकार दिया गया था. इस संशोधन का मकसद सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं के प्रसार को रोकना और सरकारी कामकाज के बारे में सही जानकारी जनता तक पहुंचाना था.
नियम के खिलाफ याचिका
इस संशोधन के खिलाफ स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने एक याचिका दायर की थी. उनका तर्क था कि यह संशोधन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुचित प्रतिबंध लगाएगा और सरकार को सेंसरशिप का अधिकार देगा.
इस मामले की सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एएस चंदुरकर ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023, जो केंद्र सरकार को ऑनलाइन फर्जी खबरों की पहचान करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट स्थापित करने का अधिकार देता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन करता है. जस्टिस चंदुरकर ने कहा कि इस संशोधन में 'नकली', 'झूठा', और 'भ्रामक' जैसे शब्दों की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है, जिससे यह नियम अस्पष्ट और असंवैधानिक हो जाते हैं.
टाईब्रेकर फैसला
उल्लेखनीय है कि इस मामले में पहले बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ ने विभाजित फैसला सुनाया था. न्यायमूर्ति गौतम पटेल और नीला गोखले की खंडपीठ में न्यायमूर्ति पटेल ने इस संशोधन को खारिज कर दिया था, जबकि न्यायमूर्ति गोखले ने इसे बरकरार रखा था. न्यायमूर्ति पटेल ने अपने फैसले में कहा था कि यह नियम सेंसरशिप जैसा है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है, जबकि न्यायमूर्ति गोखले ने तर्क दिया था कि इसका फ्री स्पीच पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
फैसले के बाद यह मामला तीसरे जज के पास भेजा गया, जिन्होंने अब इस पर अपना निर्णय दिया है. जस्टिस चंदुरकर के फैसले ने केंद्र सरकार के संशोधनों को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि यह नियम अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है.