'सजा पूरी करने के बाद रिहाई ज़रूरी': SC का अहम फैसला, नितीश कटारा हत्याकांड के दोषी सुखदेव पहलवान की रिहाई के आदेश - 10 बातें
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक और अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि अगर किसी दोषी को निश्चित अवधि की ‘आजीवन कारावास’ की सजा सुनाई गई है, तो तय अवधि पूरी होने के बाद उसे जेल से रिहा किया जाना चाहिए. इस मामले में किसी प्रकार की ‘रिमिशन’ (सजा में छूट) की जरूरत नहीं है, जैसा कि उन मामलों में होता है जहां आजीवन कारावास का मतलब दोषी की पूरी प्राकृतिक उम्र जेल में बिताना होता है.;
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नितीश कटारा हत्याकांड के दोषी सुखदेव पहलवान की रिहाई का आदेश देते हुए एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत स्पष्ट किया कि अगर किसी दोषी को निश्चित अवधि का ‘आजीवन कारावास’ दिया गया है, तो वह अवधि पूरी होने के बाद उसे स्वतः रिहा किया जाना चाहिए, और इसके लिए रिमिशन की आवश्यकता नहीं है. अदालत ने कहा कि यह नियम उन मामलों से अलग है, जहां आजीवन कारावास का अर्थ दोषी की पूरी प्राकृतिक आयु जेल में बिताना होता है.
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने दिल्ली सरकार और सज़ा समीक्षा बोर्ड को फटकार लगाते हुए कहा कि अदालत के आदेश की अवहेलना करना न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि न्याय के मूल सिद्धांतों के भी विपरीत है. अदालत ने चिंता जताई कि देशभर में ऐसे कई कैदी हो सकते हैं जिन्होंने अपनी निर्धारित सजा पूरी कर ली है लेकिन प्रशासनिक या तकनीकी कारणों से अब भी जेल में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि ऐसे सभी मामलों की तुरंत समीक्षा कर कैदियों को रिहा किया जाए. कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला न केवल पहलवान के लिए राहत है, बल्कि भविष्य में न्यायिक आदेशों के समयबद्ध अनुपालन को भी सुनिश्चित करेगा. आइए इस फैसले से जुड़ी 10 बड़ी बातें जान लेते हैं...
- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी दोषी को निश्चित अवधि की आजीवन कारावास की सजा दी गई है, तो उस अवधि की समाप्ति के बाद स्वतः रिहाई अनिवार्य है.
- अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में ‘रिमिशन’ की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह प्रावधान केवल उन मामलों में लागू होता है, जहां सजा पूरी प्राकृतिक आयु तक चलती है.
- जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने दिल्ली सरकार और सज़ा समीक्षा बोर्ड को आदेश की अवहेलना पर कड़ी फटकार लगाई.
- पीठ ने चेतावनी दी कि यदि यह रवैया जारी रहा, तो हर दोषी अपनी सजा पूरी करने के बावजूद जेल में ही मर जाएगा, जो न्याय के खिलाफ है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई अन्य कैदी भी सजा पूरी करने के बावजूद जेल में हो सकते हैं, और ऐसे मामलों में तुरंत रिहाई सुनिश्चित की जानी चाहिए.
- सुखदेव पहलवान ने मार्च 2024 में 20 साल की निश्चित अवधि वाली सजा पूरी कर ली थी, जिसमें किसी प्रकार की रिमिशन का प्रावधान नहीं था.
- जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने पहलवान की अस्थायी रिहाई का आदेश दिया, लेकिन सज़ा समीक्षा बोर्ड ने आचरण को आधार बनाकर रिहाई पर रोक लगा दी.
- दिल्ली सरकार ने तर्क दिया कि सजा में केवल 20 साल के बाद रिमिशन पर विचार करने का प्रावधान था, स्वतः रिहाई का नहीं.
- बचाव पक्ष ने कहा कि सजा स्पष्ट रूप से 20 साल की निश्चित अवधि के लिए तय थी, जो 9 मार्च 2024 को पूरी हो चुकी है.
- सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि निश्चित अवधि की सजा पूरी होने के बाद अतिरिक्त कारावास अवैध है और दोषी को तुरंत रिहा करना होगा.