गजब! आर्मी ने जमीन पर कर रखा था कब्जा, अब 46 साल बाद देना होगा पूरा रेंट; हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने आर्मी को एक शख्स को 46 साल का बकाया रेंट देने का आदेश दिया है. इस शख्स की जमीन पर आर्मी ने कब्जा कर रखा था. मामला कुपवाड़ा जिले का है.;

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जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने सेना को एक याचिकाकर्ता को 46 साल का बकाया किराया देने का निर्देश दिया है. याचिकाकर्ता की जमीन पर सेना ने 1978 से कब्जा कर रखा है. हाईकोर्ट ने कहा कि संपत्ति का अधिकार अब न केवल संवैधानिक या वैधानिक अधिकार माना जाता है, बल्कि यह मानवाधिकार के दायरे भी आता है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के तंगधार इलाके के अब्दुल मजीद लोन ने सेना से किराया वसूलने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति वसीम सादिक नरगल की अध्यक्षता वाली पीठ ने 11 नवंबर को बड़ा फैसला सुनाया. जमीन तंगधार गांव में स्थित है.

याचिकाकर्ता के संवैधानिक अधिकार का हुआ उल्लंघन

उच्च न्यायालय ने कहा कि मानवाधिकारों को व्यक्तिगत अधिकारों के दायरे में माना जाता है, जैसे- आश्रय, आजीविका, स्वास्थ्य, रोजगार आदि का अधिकार. न्यायालय ने आदेश में कहा कि राजस्व अधिकारियों द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, जमीन सेना के कब्जे में है. प्रतिवादियों ने कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना याचिकाकर्ता की भूमि का अधिग्रहण कर लिया है, लेकिन उसे किराया मुआवजा नहीं दिया. यह याचिकाकर्ता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है.

केंद्र और सेना का दावा खारिज

केंद्र और सेना के इस दावे को खारिज करते हुए कि सेना ने कभी भी भूमि पर कब्जा नहीं किया था, अदालत ने कहा कि यह दावा कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरता और खारिज किया जाता है. इसके अतिरिक्त, कुपवाड़ा के उपायुक्त को दो सप्ताह के भीतर संबंधित तहसीलदार की अध्यक्षता में राजस्व अधिकारियों की एक टीम गठित करने का निर्देश दिया गया है, ताकि सेना द्वारा संबंधित भूमि पर कब्जे के संबंध में किराये के मुआवजे के आकलन के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकें.

अदालत ने कहा कि मूल्यांकन रिपोर्ट के आधार पर किराया मूल्यांकन रिपोर्ट प्राप्त होने की तारीख से एक-तिहाई अवधि के भीतर याचिकाकर्ता को भुगतान किया जाना चाहिए. आदेश में यह भी कहा गया है कि राज्य और उसकी एजेंसियां ​​कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही किसी नागरिक को उसकी संपत्ति से बेदखल कर सकती हैं. मुआवज़ा देने की बाध्यता, हालांकि अनुच्छेद 300ए में स्पष्ट रूप से शामिल नहीं है, लेकिन उक्त अनुच्छेद से इसका अनुमान लगाया जा सकता है.

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