भारत में नेताओं के मेमोरियल का कैसे होता है चुनाव, इसे लेकर क्या कहता है नियम?
Memorials Rules: मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में काम किया. उससे पहले वित्त मंत्री के रूप में देश के आर्थिक सुधारों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनके मेमोरियल को लेकर सरकार की ओर से मंजूरी मिल गई है.;
Memorials Rules: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) के मोमोरियल की मांग पर केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है. हालांकि, 2013 में जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे, तभी इसे लेकर नियम में बदलाव किए गए थे. यहां इस प्रथा को UPA सरकार ने खत्म करने का निर्णय लिया था.
तत्कालीन मनमोहन सरकार में लिए गए निर्णय में कहा गया था कि मेमोरियल का निर्माण केवल बेहद खास और राष्ट्रीय योगदान देने वाले नेताओं के लिए ही किया जाए. इसके पीछे पर्यावरण संरक्षण और जगह की कमी बताई गई थी और कहा गया था कि इससे भूमि का संतुलन बिगड़ रहा है. कुल मिलाकर पूर्व और दिवंगत पीएम पीवी नरसिंह राव विवाद के बीच सरकार ने ये फैसला लिया था. आइए यहां जानते हैं कि इसे लेकर नियम किया कहता है?
मेमोरियल को लेकर क्या कहता है नियम?
- दिल्ली में मेमोरियल बनाए जाने के लिए कुछ खास नियम और प्रोसेस को फॉलो किया जाता है. इसका निर्धारण भारत सरकार करती है.
- दिल्ली में मेमोरियल केवल उन्हीं व्यक्तियों के लिए बनाया जाता है, जिन्होंने राष्ट्रीय और ऐतिहासिक महत्व का योगदान दिया हो.
- इसमें भारत के राष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री, उप-प्रधानमंत्री और अन्य राष्ट्रीय महत्व के व्यक्तित्व शामिल हैं.
- दिल्ली के राजघाट कैंपस और उसके आसपास के क्षेत्र में मेमोरियल बनाए जाते हैं. यह क्षेत्र राष्ट्रीय स्मारक स्थल के तौर पर स्थापित है.
- राजघाट और उससे जुड़े मेमोरियल का रख-रखाव राजघाट क्षेत्र समिति के तहत आता है. यह समिति संस्कृति मंत्रालय की देखरेख में काम करती है.
- संस्कृति मंत्रालय मेमोरियल बनाने के प्रस्ताव की समीक्षा करता है. शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय के साथ अन्य विभागों से परामर्श लेती है.
- आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय ही इसे लेकर भूमि आवंटन और निर्माण योजना में सहयोग करता है. इसके अलावा गृह मंत्रालय सुरक्षा और राजकीय सम्मान को सुनिश्चित करता है.
- मेमोरियल के लिए भूमि दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और राजघाट क्षेत्र समिति चुनती है.