हजरत बल दरगाह में अशोक स्तंभ लगाए जाने पर क्या कह रहे इस्लामिक स्कॉलर? जानिए मामले में क्यों तेज हुई सियासत
श्रीनगर स्थित हजरतबल दरगाह में जीर्णोद्धार के दौरान लगाए गए अशोक स्तंभ (राष्ट्रीय प्रतीक) को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. इस्लामिक स्कॉलर्स और स्थानीय लोगों ने इसे धार्मिक सिद्धांतों के खिलाफ बताया, जबकि कुछ विद्वानों ने इसे गैर-धार्मिक प्रतीक मानते हुए बचाव किया. विवाद के बाद भीड़ ने पट्टिका को क्षतिग्रस्त कर दिया, जिस पर प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए कई लोगों को हिरासत में लिया. राजनीतिक दलों ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं दीं, जिससे मामला और गरमा गया है.;
Hazaratbal Shrine Srinagar Controversy : जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर स्थित हजरतबल दरगाह (जिसे हजरतबल श्राइन भी कहा जाता है) में हाल ही में एक संगमरमर की पट्टिका (शिलापट्ट) पर भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ (अशोक चिह्न) को उकेरने से बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. यह घटना 3 सितंबर 2025 को वक्फ बोर्ड द्वारा दरगाह के जीर्णोद्धार कार्य के उद्घाटन के दौरान हुई, लेकिन 5 सितंबर को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के मौके पर कुछ लोगों ने इस चिह्न को पत्थर से क्षतिग्रस्त कर दिया.
इस घटना ने न केवल धार्मिक भावनाओं को छुआ, बल्कि राजनीतिक बहस भी छेड़ दी. इस एक्सप्लेनर में हम समझेंगे कि आखिर यह विवाद क्यों भड़का, इस्लामिक स्कॉलर्स क्या कह रहे हैं, और इसकी पृष्ठभूमि क्या है...
विवाद की पृष्ठभूमि: क्या हुआ और क्यों?
- घटना का विवरण: हजरतबल दरगाह डल झील के किनारे बनी एक प्रसिद्ध इस्लामी तीर्थस्थल है, जहां पैगंबर मुहम्मद साहब के पवित्र अवशेष (मोई-ए-मुकद्दस) रखे हुए हैं. यह जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों का आध्यात्मिक केंद्र है. हाल ही में वक्फ बोर्ड ने दरगाह के प्रार्थना हॉल के बाहर नए हिस्से (जैसे गेस्ट हाउस या दरवाजों का विस्तार) का निर्माण कराया. उद्घाटन पट्टिका पर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ (सारनाथ के अशोक स्तंभ से प्रेरित, जिसमें चार शेर हैं) उकेरा गया था. जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष डॉ. दरख्शां अंद्राबी (बीजेपी नेता) ने इसका उद्घाटन किया.
- विरोध का कारण: कई मुसलमानों और नेताओं ने इसे इस्लाम के मूल सिद्धांत 'तौहीद' (एकेश्वरवाद) का उल्लंघन बताया. उनका तर्क है कि धार्मिक स्थल (मस्जिद या दरगाह) पर जीव-जंतुओं की आकृति (जैसे शेर) लगाना मूर्तिपूजा जैसा है, जो इस्लाम में सख्ती से निषिद्ध है. विरोधियों ने कहा कि यह भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला कदम था. जुमे की नमाज के बाद भीड़ ने पट्टिका पर पत्थर फेंके, जिससे चिह्न क्षतिग्रस्त हो गया.
- प्रशासनिक कार्रवाई: पुलिस ने 25-30 लोगों को हिरासत में लिया (कुछ रिपोर्ट्स में 50 तक), और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धाराओं के तहत FIR दर्ज की. वक्फ बोर्ड ने इसे 'आतंकी कृत्य' बताया और PSA (पब्लिक सेफ्टी एक्ट) लगाने की मांग की.
इस्लामिक स्कॉलर्स क्या कह रहे हैं?
इस विवाद ने इस्लामिक विद्वानों (उलेमा और मुफ्ती) के बीच दो गुटों को जन्म दिया है. एक तरफ वे हैं जो इसे धार्मिक उल्लंघन मानते हैं, दूसरी तरफ वे जो राष्ट्रीय प्रतीक को गैर-धार्मिक बताते हुए इसका बचाव करते हैं.
विरोध करने वाले स्कॉलर्स (धार्मिक उल्लंघन का तर्क)
- मौलाना शहाबुद्दीन रजवी (ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष) ने साफ कहा कि मस्जिद या दरगाह में मूर्ति या जीव-जंतु की आकृति लगाना इस्लाम के सिद्धांतों के पूरी तरह खिलाफ है. उन्होंने उदाहरण दिया कि जहां नमाज पढ़ी जाती है, वहां ऐसी आकृति होने पर नमाज ही अमान्य हो जाती है. यह सदियों पुरानी परंपरा है, और इसे तोड़ना नाजायज है.
- मुफ्ती ओसामा नदवी (प्रमुख इस्लामिक स्कॉलर) ने तोड़फोड़ को गलत बताया, लेकिन पट्टिका लगाने पर भी सवाल उठाए. उनका कहना है कि दरगाह पर फातिहा पढ़ना इबादत नहीं है, लेकिन मस्जिद में ऐसी आकृति से टकराव हो सकता है. हालांकि, उन्होंने राष्ट्रीय प्रतीकों को पूरी तरह हराम नहीं माना.
- मुताहिदा मजलिस-ए-उलेमा (MMU) (मिर्वेज उमर फारूक के नेतृत्व में, कश्मीर के प्रमुख मुस्लिम संगठनों का समूह) ने पट्टिका को तुरंत हटाने की मांग की. उनका बयान है कि हजरतबल जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों का आध्यात्मिक केंद्र है, और इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार मस्जिद या दरगाह में कोई प्रतीक, चिह्न या जीव-जंतु की आकृति नहीं होनी चाहिए. उन्होंने वक्फ बोर्ड से कहा कि भविष्य में धार्मिक विद्वानों से सलाह लें. यह सिद्धांत पीढ़ियों से चला आ रहा है, और पिछले जीर्णोद्धारों में भी कोई पट्टिका नहीं लगाई गई थी.
- ग्रैंड मुफ्ती (कश्मीर) ने राष्ट्रीय प्रतीक लगाने के फैसले की आलोचना की. उन्होंने कहा कि बिना सोचे-समझे ऐसा करना गलत था. वक्फ अधिकारियों को समुदाय की भावनाओं का अंदाजा लगाना चाहिए था.
समर्थन करने वाले या संतुलित राय वाले स्कॉलर्स
कुछ स्कॉलर्स (जैसे मुफ्ती ओसामा नदवी) कहते हैं कि राष्ट्रीय प्रतीक धार्मिक नहीं, बल्कि सत्य, न्याय और अहिंसा का सार्वभौमिक प्रतीक है. उन्होंने सवाल उठाया, "अगर दरगाह पर अशोक स्तंभ से तकलीफ है, तो जेब में रुपये (जिनमें यही चिह्न होता है) रखना कैसे सही?" उनका मानना है कि शरियत के लिहाज से इसका इस्तेमाल गलत नहीं, खासकर अगर यह इबादत का हिस्सा न हो.
कुल मिलाकर, अधिकांश स्कॉलर्स तोड़फोड़ को गलत मानते हैं, लेकिन पट्टिका लगाने को असंवेदनशील बताते हैं. उनका जोर इस्लाम की मूल शिक्षाओं (कोई मूर्ति या जीव-आकृति न हो) पर है.
सियासी बयानबाजी हुई तेज
- जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (नेशनल कॉन्फ्रेंस) ने कहा, "धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीक लगाने की क्या जरूरत? यह सरकारी समारोहों के लिए है, न कि मंदिर-मस्जिद के लिए." पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती (पीडीपी) ने भी इसे 'गलती' और 'ईशनिंदा' बताया. उन्होंने वक्फ बोर्ड प्रमुख दरख्शां अंद्राबी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.
- बीजेपी ने इसे 'राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान' बताया. दरख्शां अंद्राबी ने तोड़ने वालों को 'आतंकी' कहा और कहा, "अगर चिह्न से दिक्कत है, तो नोट भी न रखें." उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इसे 'व्यथित करने वाला' बताया. बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने INDIA गठबंधन पर हमला बोलते हुए इसे 'भारत की आत्मा पर प्रहार' कहा.
कानूनी और सामाजिक निहितार्थ
- कानूनी पक्ष: राष्ट्रीय प्रतीक (अशोक स्तंभ) का अपमान राज्य प्रतीक आदेश 1950 के तहत दंडनीय है. पुलिस जांच कर रही है, और PSA लगाने की बात हो रही है, लेकिन स्कॉलर्स और नेता कहते हैं कि भावनाओं को समझना जरूरी है.
- सामाजिक संदेश: यह विवाद धर्मनिरपेक्षता vs धार्मिक संवेदनशीलता का टकराव दिखाता है. विशेषज्ञ (जैसे इतिहासकार रुचिका शर्मा) कहते हैं कि अशोक स्तंभ धार्मिक नहीं, बल्कि सार्वभौमिक मूल्यों का प्रतीक है। भारतीय मस्जिदों में भी स्थापत्य कला (नक्काशी) होती है, लेकिन पूजा के उद्देश्य से नहीं.
आगे क्या?
वक्फ बोर्ड ने पट्टिका हटाने पर विचार किया है. इलाके में सुरक्षा बढ़ा दी गई है. यह घटना कश्मीर में शांति बनाए रखने की चुनौती को उजागर करती है. यह विवाद दिखाता है कि धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीकों का इस्तेमाल कितना संवेदनशील मुद्दा है. स्कॉलर्स की राय मुख्य रूप से धार्मिक शुद्धता पर केंद्रित है, लेकिन राष्ट्रीय एकता की अपील भी हो रही है. स्थिति पर नजर बनी हुई है.