'मोदी से नफरत हिंदी के बहाने निकाला जा रहा', भाषा विवाद के बीच पवन कल्याण ने ये क्या कह दिया
तेलुगु स्टार और जन सेना पार्टी प्रमुख पवन कल्याण ने हालिया भाषा विवाद पर प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा को थोपना गलत है, लेकिन हिंदी एक संपर्क भाषा के रूप में आज की जरूरत बन चुकी है. पवन कल्याण ने स्पष्ट किया कि वह क्षेत्रीय भाषाओं के सम्मान के पक्षधर हैं, लेकिन राष्ट्र की एकता और संवाद के लिए एक साझा भाषा आवश्यक है. उनके बयान ने संतुलन की नीति को दर्शाया है.;
आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और अभिनेता-राजनीतिज्ञ पवन कल्याण ने एक अहम बयान देते हुए कहा है कि किसी भी भाषा को किसी पर थोपना नहीं चाहिए. उन्होंने यह टिप्पणी हाल ही में हिंदी थोपे जाने को लेकर हो रहे विवादों के संदर्भ में की. इंडिया टुडे से बातचीत करते हुए कहा कि, राष्ट्रीय एकता के पक्षधर हैं और किसी भी भाषा के विरोध में नहीं हैं, लेकिन जबरदस्ती किसी भाषा को लागू करना सही नहीं है.
पवन कल्याण का यह बयान उस समय आया है जब देश के कई हिस्सों में विशेष रूप से दक्षिण भारत में हिंदी को लेकर राजनीतिक बयानबाज़ी तेज हो गई है. पवन ने कहा कि भाषा को लेकर फैलाए जा रहे नकारात्मक माहौल के पीछे कई बार राजनीतिक स्वार्थ होते हैं.
हिंदी नहीं थोपना चाहिए, लेकिन आज के समय में ज़रूरी है: पवन
पवन कल्याण ने कहा, 'कोई भाषा किसी पर थोपी नहीं जानी चाहिए. मैं राष्ट्रीय एकता का समर्थन करता हूं. हम हिंदी भाषी राज्यों से घिरे हुए हैं, इसलिए हिंदी मेरे लिए एक ज़रूरत है, उन्होंने आगे बताया कि जब वे स्कूल में थे, तब हिंदी एक द्वितीय भाषा थी और उसी समय उन्होंने इसे सीखा. उन्होंने सवाल उठाया कि अचानक हिंदी को लेकर इतना विरोध क्यों हो रहा है, खासकर आंध्र प्रदेश में, जो छत्तीसगढ़, ओडिशा और कर्नाटक से घिरा है. “तेलंगाना में उर्दू और तेलुगु साथ-साथ चलते हैं. ‘हॉस्पिटल’ की जगह लोग ‘दवाखाना’ कहते हैं, इसमें गलत क्या है?”
भाषा को नफरत की राजनीति से जोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण
पवन कल्याण ने तेलंगाना में हिंदी विरोध को राजनीतिक स्वार्थ बताया, उन्होंने कहा, “यह नफरत वास्तव में बीजेपी या मोदी जी के प्रति है, जिसे हिंदी के बहाने निकाला जा रहा है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है, पवन ने यह भी कहा कि जैसे अंग्रेज़ी आज की वैश्विक भाषा बन गई है, वैसे ही हिंदी भी भारत के भीतर संवाद की एक आवश्यक भाषा बन चुकी है, “मुझ पर किसी ने अंग्रेज़ी थोपी नहीं, यह समय की मांग बन गई. हम इसे इसलिए बोल रहे हैं क्योंकि यह ज़रूरी है, प्यार के कारण नहीं. ठीक वैसे ही हिंदी भी अब ज़रूरी है.
बहुभाषिक भारत ही एकता की पहचान
पवन कल्याण ने अपने बहुभाषी अनुभव को साझा करते हुए कहा कि वे चेन्नई में पले-बढ़े और तमिल उन्होंने अपनी रुचि व आवश्यकता से सीखी. “कर्नाटक, महाराष्ट्र जाने पर मैं स्थानीय भाषा बोलने की कोशिश करता हूं. यही अप्रोच हमें अपनानी चाहिए, बहुभाषिक सोच ही भारत को एक सूत्र में बांध सकती है.
तमिलनाडु में भी दी थी यही बात
तमिलनाडु जैसे राज्य में जहां हिंदी विरोध सबसे ज़्यादा होता है, पवन ने दोहराया कि उन्होंने वहां भी यही बात कही थी.'मैं हिंदी से प्रेम करता हूं, उसका सम्मान करता हूं। यह मेरी स्कूली शिक्षा में दूसरी भाषा थी. भाषा का उपयोग संवाद और एकता के लिए होना चाहिए, न कि बंटवारे के लिए. पवन कल्याण ने जबरन भाषा थोपने के परिणामों पर चेताया. उन्होंने कहा, 'मां भी अगर बच्चे को ज़बरदस्ती कुछ देती है, तो बच्चा विरोध करता है. हमें हिंदी के महत्व को समझाना होगा, उसे जबरदस्ती नहीं सिखाना चाहिए.